हुकुम का फरमान

वे कहते हैं की सरकारी अधिकारियों को सरकार का प्रचार करने के लिए क्यों लगाया जा रहा है? यह तो नासमझी की बात है। सरकारी महकमा, तो चुनी हुई सरकार की सेवा-टहल की लिए ही होता है। जब संक्रमण काल हो, तो किताबी मर्यादाओं को राष्ट्रहित में तोड़ना भी गुनाह थोड़ा है! लेकिन यह विपक्षी इतना भी नहीं जानते! हर अच्छे कदम पर बाधा बनते हैं। संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देते हैं।

वीरेन्द्र सेंगर ।
मुल्क में बाकी सब खैरियत है। चुनांचे कुछ देशद्रोही किस्म के लोग बढ़ती महंगाई ( Inflation) और नौकरी का राग अलापते रहते हैं। उन्हें राष्ट्र की सेहत की चिंता नहीं है। जबकि जनहित में छोटी-छोटी बातों पर हंगामा नहीं खड़ा किया जाना चाहिए। इनको इतनी बुनियादी (basic) बात का भी इल्म नहीं है। इनका देश प्रेम महज दिखावा है। जबकि हमारी पार्टी कट्टर राष्ट्रवादी ( Staunch nationalist) है। हम तो डंके की चोट पर यह एलान करते हैं। हम कह चुके हैं कि राष्ट्र से बहुत लिया गया है। मांगा गया है। अब वक्त आ गया है कि विश्व गुरु  (World Guru) बनने के लिए कुर्बानी दी जाए। निजी हितों को हाशिए पर रखा जाए, लेकिन ये मानते ही नहीं। विपक्ष नहीं चाहता कि यह महान राष्ट्र एक बार फिर विश्व गुरु बने। पर हम उनकी परवाह नहीं करते। रोजी-रोटी की बात पहले नहीं, पहले राष्ट्रवाद की खुराक देंगे। हर प्राणी के मन में राष्ट्र के लिए कुर्बानी का जज्बा पैदा हो। इसलिए हमारा फरमान है कि सभी अधिकारी विकास के संदेशवाहक बनें। वे गांव गांव-गांव तक जाएं। शहरों की गलियों-गलियों में विकास रथ ले जाएं। लोगों को बताएं कि पिछले नौ-दस सालों में सरकार ने विकास कर दिया है? उसने हर महकमे में क्या-क्या किया है? लोग महसूस करें कि वे भी विकसित हो चुके हैं। उनमें गरीबी और कंगाली की हीन भावना नहीं रहनी चाहिए। हर दिमाग, पेट को संदेश कि वह भरा हुआ है। इससे भूख दूर भागेगी। लोग ये समझ लें कि भारत में आज कोई भूख से नहीं मरता। बल्कि, ज्यादा खाने से लोग मरते हैं।
वे कहते हैं की सरकारी अधिकारियों को सरकार का प्रचार करने के लिए क्यों लगाया जा रहा है? यह तो नासमझी की बात है। सरकारी महकमा, तो चुनी हुई सरकार की सेवा-टहल की लिए ही होता है। जब संक्रमण काल हो, तो किताबी मर्यादाओं को राष्ट्रहित में तोड़ना भी गुनाह थोड़ा है! लेकिन यह विपक्षी इतना भी नहीं जानते! हर अच्छे कदम पर बाधा बनते हैं। संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देते हैं। सरकार संविधान का बहुत सम्मान करती है। उसे राष्ट्र का पवित्र ग्रंथ मानती है, रामायण और गीता सा। इस पर भी इन्हें आपत्ति है। कहते हैं कि जब सेक्यूलर देश है, तो कुरान और बाइबल की भी बात होनी चाहिए। हम डंके की चोट पर कहते हैं कि बहुसंख्यक हिंदुओं की आस्था पर कोई माई का लाल आघात नहीं कर सकता। जो विदेशी धर्म है और संस्कृति है, उनको हम गले क्यों लगाए? हम तो पुरानी सनातन संस्कृति को ही मूल सभ्यता संस्कृति मानते हैं। वैसे भी हमारे संघ प्रमुख कितनी बार कह चुके हैं कि भारत में रहने वाला हर शख्स हिंदू है। भले ही कुछ की पूजा पद्धति अलग हो।
इसके बाद भी छदम सेकुलर, अल्पसंख्यकों के नाम पर स्यापा करते रहते हैं। इसीलिए आशंका है कि हिंदू, महा खतरे में हैं। उसे दोयम दर्जे का बनाने की कोशिश की गई। पिछले नौ सालों में हालात बदले हैं। हिंदू चेतना संपन्न हुआ है। कुछ-कुछ खतरा टला है। ध्यान रखिए खतरा खत्म नहीं हुआ, टला भर है। इसलिए जरूरी है कि देश में कम से कम 50 साल तक यही राष्ट्रवादी सरकार बरकरार रहे। वैसे भी 2047 तक विकास एजेंडा तय है। हमारे अवतारी प्रधान सेवक दिन-रात जुटे हैं। पूरी दुनिया को पता है कि वे बगैर छुट्टी लिए हर दिन 18-18 घंटे काम करते हैं। तब कहीं जाकर दुनिया में उनकी धाक जमी है। वे जिस मुल्क में जाते हैं, वहां लोग घंटा बजाते हैं और आरती करते हैं। वे फोन कर देते हैं तो कुछ देर के लिए रूस-यूक्रेन का युद्ध रुक जाता है। इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जो युद्ध है, इसे भी अंतिम संस्कार तक हमारे महासेवक की पहुंचा सकते हैं। वही अंत में शांति के हथियार बनेंगे भी। हमारे मोदी जी कोई गांधी जी से कम तो नहीं हैं।
दुनिया जानती भी है और मानती भी है। लेकिन यहां का नालायक विपक्ष घरेलू मुद्दों पर ही हंगामा करता रहता है। बात-बात में संविधान की दुहाई देता है। वो नहीं जानता कि देश चलाना महज किताबी खेल नहीं है। ऐसे में किताब छोड़ो, रिजल्ट देखो। 2047 तक देश विकसित मुल्कों में गिना जाएगा। अर्थव्यवस्था तीसरे नंबर पर पहुंच जाएगी। पांचवें पर आ भी गई है।
विपक्ष सवाल उठाता है कि प्रति व्यक्ति आय तो घाना और बांग्लादेश से कम है। आंकड़ों में ऐसा भी हो सकता है। लेकिन एक राष्ट्र के रूप में हम तेजी से अमीर हो रहे हैं। वेदों की मदद से हमारा विज्ञान तेजी से बढ़ रहा है। अध्यात्म के जागरण से लोग शांति महसूस कर रहे हैं। सुख-दुख महज मानसिक अवस्था है। ये बात जनता जानती है, विपक्ष नहीं। सरकार ने अधिकारियों को रथ प्रभारी बनाया है। वे अब तक हुए विकास का एहसास कराएंगे। इसमें बुरा क्या है! लोग अमीर हैं। उन्हें बताने भर की जरूरत है!

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