…तो वर्ष 2015 में इंडिया की हिमायती थी मोदी सरकार!

डॉ. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

देहरादून। जब से विपक्षी गठबंधन इंडिया ( India ) नाम से प्रचलित हुआ है , तभी से मोदी सरकार इंडिया शब्द को लेकर बेचैन है । मोदी सरकार अपने भविष्य को बचाए रखने की गरज से भारतीय संविधान में उल्लखित इंडिया दैट इज भारत मे से इंडिया को हटाकर केवल भारत करना चाहती है,जिसके लिए संसद का विशेष सत्र तक बुलाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( Prime Minister Narendra Modi ) स्वयं भी खुले रूप में इंडिया शब्द को छोड़ने व भारत शब्द को देश के नाम के रूप में स्वीकारने का बयान दे चुके है।

लेकिन शायद वे भूल गए कि उनकी अपनी ही भाजपा सरकार (BJP government ) जिसमे वे स्वयं ही प्रधानमंत्री थे, ने  वर्ष 2015 में  सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा था कि भारत का नाम बदलने की आवश्यकता नहीं है। उस समय केंद्र की भाजपा सरकार ने कहा था कि देश को इंडिया के बजाय भारत करने की आवश्यकता नही है।भारत व इंडिया नाम को लेकर छिड़ी वर्तमान राजनीतिक जंग के दौरान , भाजपा सरकार द्वारा वर्ष 2015 के उंक्त बाबत रुख और वर्तमान में बदले रंग को देखकर हर कोई हैरान है।
तब मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कहा था कि भारत का नाम बदलने की आवश्यकता नहीं है। यानि देश को इंडिया के बजाय भारत नहीं कहा जाना चाहिए।मोदी सरकार ने यह वक्तव्य एक जनहित याचिका को लेकर उसके जवाब में दिया गया था। जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा आधिकारिक और अनौपचारिक उद्देश्यों के लिए भारतीय गणतंत्र को भारत कहे जाने की मांग की गई थी

उस समय  मोदी सरकार ने दावा किया था कि भारतीय संविधान (Indian Constitution)के अनुच्छेद 1 में किसी भी बदलाव पर विचार करने के लिए परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। भारत का संविधान अनुच्छेद 1.1 आधिकारिक और अनौपचारिक उद्देश्यों के लिए देश का नाम कैसे रखा जाए, इस पर संविधान का एकमात्र प्रावधान  कहता है, इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा। जबकि  वर्ष 2015 में मोदी सरकार के केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि जब संविधान का मसौदा तैयार किया गया था और अनुच्छेद 1 में क्लाजेज को सर्वसम्मति से अपनाया गया था, तब संविधान सभा द्वारा देश के नाम से संबंधित मुद्दों पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श किया गया था।

केंद्र सरकार ने यह भी बताया था कि संविधान के मूल मसौदे में भारत का जिक्र नहीं था और बहस के दौरान संविधान सभा ने भारत, भारतभूमि, भारतवर्ष, इंडिया दैट इज़ भारत और भारत दैट इज़ इंडिया जैसे नामों और फॉर्मूलेशन पर विचार किया था। उक्त वक्तव्य में कहा गया था कि संविधान सभा में समीक्षा की आवश्यकता के मुद्दे पर बहस के बाद से परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

गृह मंत्रालय भारत सरकार ने तब कहा था कि जनहित याचिका दायर करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन भटवाल के वकील अजय जी मजीठिया के एक प्रतिनिधित्व की जांच की गई थी और इसे खारिज करने की सिफारिश की गई थी। मजीठिया ने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 1.1 की व्याख्या संविधान सभा की मंशा को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए, जो देश का नाम भारत रखना चाहती थी।उस याचिका में कहा गया था कि इंडिया नाम औपनिवेशिक काल के दौरान गढ़ा गया था और देश को ऐतिहासिक और धर्मग्रंथों में भारत कहा जाता है।

तब याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था, भारत सरकार अधिनियम, 1935 और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 को निरस्त करने के लिए संदर्भ के लिए अनुच्छेद 1 में भारत का उपयोग किया गया था। ऐसी ही एक ओर जनहित याचिका सन 2020 में सुप्रीम कोर्ट के सामने आई थी, लेकिन भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा नहीं कर सकता और याचिकाकर्ता को सरकार के सामने अपनी बात रखने के लिए कहा था।वैसे तो अपने देश को भारत और इंडिया दोनों ही नामों से पुकारा जाता है। विदेशों में तो बहुत कम ही लोग भारत को भारत करते हैं। वह सीधे तौर पर इंडिया  बोलते हैं।   

मोदी सरकार द्वारा इसी माह  संसद का ​एक विशेष सत्र  बुलाया है।जिसमे सरकार संविधान संशोधन विधेयक पेश कर इंडिया को भारत करने यानि देश का नाम बदलने की कार्यवाही कर सकती है। इंडिया दैट इज भारत से केवल भारत करने में देश का करीब खर्च 14, 304 करोड़ रुपये का खर्च हो सकता है। इस आंकड़े की गणना दक्षिण अफ्रीका के वकील डेरेन ऑलिवियर के सुझाए फॉर्मूला से की गई है।  वर्ष 2018 में स्वैजीलैंड का नाम बदलकर इस्वातीनि कर दिया गया था।

उस दौरान ऑलिवियर ने देश के नाम बदलने में आने वाले खर्च की गणना के लिए एक विधि तैयार की थी।उन्होंने इस अफ्रीकी देश के नाम बदलने की प्रक्रिया की तुलना एक बड़े कॉर्पोरेट में होने वाली रीब्रांडिंग से की थी। वकील डेरेन ऑलिवियर के अनुसार, एक बड़े इंटरप्राइज का औसत मार्केटिंग खर्च उसके कुल राजस्व का करीब 6 फीसदी होता है। जबकि, रीब्रांडिंग में कंपनी के कुल मार्केटिंग बजट का 10 फीसदी तक खर्च आ सकता है।

उन्होंने अनुमान लगाया था कि स्वेजीलैंड का नाम इस्वातीनि करने में 60 मिलियन डॉलर का खर्च आएगा। पहले भी कई देश नाम बदलने की प्रक्रिया पर विचार कर चुके हैं। इनकी वजहों में प्रशासन स्तर पर सुधार, औपनिवेशिक प्रतीकों से छुटकारा जैसी बातें शामिल हैं। वर्ष 1972 में श्रीलंका में भी नाम बदलने की प्रक्रिया चली थी और तब जाकर करीब चार दशकों में पुराने नाम सीलोन को  हटाया जा सका। वास्तव में भारत शब्द का अर्थ  है भूमि या भारतीय सभ्यता का देश।

यह नाम भारतीय उपमहाद्वीप के राष्ट्रीय नाम के रूप में उपयोग होता है।हिंदुस्तान शब्द उर्दू व पर्सियाई भाषाओं में भारत के लिए उपयोग होता है। इस नाम का उदय संस्कृत शब्द सिन्धुस्थान से हुआ है, जिसका अर्थ होता है सिन्धु नदी के पास की भूमि। हिंदुस्तान शब्द भारतीय सभ्यता, संस्कृति, और विचारधारा के साथ जुड़ा हुआ है।भारत या इंडिया को आर्यवर्त के नाम से भी जाना व पुकारा जाता थ।

आर्यावर्त शब्द का अर्थ होता है आर्यों का देश। इस नाम का उदय संस्कृत शब्द आर्य से हुआ है जोनोबल या श्रेष्ठ  है।वही अपने देश के लिए जम्बुद्वीप शब्द का अर्थ है जम्बू वृक्षों का द्वीप। यह नाम जैन और हिंदू पुराणों में प्रयोग हुआ है। जबकि भारतखंड शब्द का अर्थ है भूमि का खंड। यह नाम भारत की सामरिक और आर्थिक एकता को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है। भारतवर्ष शब्द का अर्थ है भारतीय भूमि। इस नाम का उपयोग भारत की विविधता, भौगोलिक स्वरूप, और संस्कृति को दर्शाने के लिए किया जाता है।अंग्रेज जब हमारे देश में आए तो उन्होंने सिंधु घाटी को इंडस वैली कहा और उसी आधार पर इस देश का नाम इंडिया हो गया।  तभी से भारत को इंडिया कहा जाने लगा,जो अब परिवर्तित होकर पुनः भारत हो जाएगा।

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