राजेंद्र शर्मा
थैंक यू मोदी जी‚ औचक का महात्म्य स्थापित करने के लिए। सत्तर साल के बाकी सब उपेक्षितों की महत्ता स्थापित करने के बाद ही सही, सावरकर ( Savarkar) से लेकर गोलवलकर तक की महत्ता स्थापित करने के बाद ही सही‚ आखिर औचक का भी नंबर आ ही गया।
सही कहा है‚ मोदी जी के घर देर है‚ अंधेर नहीं है। और औचक की महत्ता स्थापित की है, तो कैसेॽ एकदम टॉपम–टॉप लेवल पर। संसद का विशेष सत्र और बिल्कुल औचक! मोदी औचक क्या कर देगा‚ इंडिया ( India) वालो सोचते ही रह जाओगे!
बेचारे औचक ने सत्तर साल उपेक्षा सही। उपेक्षा भी ऐसी–वैसी नहीं‚ घनघोर टाइप की। सब नेहरू जी का किया–धरा था। धर्मनिरपेक्षतावादी, जनतंत्रवादी ( Democrat) ‚ विज्ञानवादी वगैरह तो खैर थे ही‚ जिस सब के चक्कर मेें इतनी सारी चीजों की उपेक्षा करा डाली कि बेचारे मोदी जी‚ उनकी महत्ता बहाल कर–कर के हलकान हो रहे हैं। इस सब के ऊपर से जनाब छुपे हुए समाजवादी भी थे। और समाजवादी( socialist) बोले तो‚ जिस भी चीज में देखो‚ उसी में प्लानिंग। हर चीज की पहले से प्लानिंग। और जब प्लानिंग होगी‚ तो चर्चा भी होगी ही होगी। हर चीज की पहले से प्लानिंग (Planning) ‚ हर चीज पर पहले से चर्चा। उद्योगों की प्लानिंग। खेती की प्लानिंग। सिंचाई की प्लानिंग। शिक्षा की प्लानिंग (Education Planning) ।
चिकित्सा की प्लानिंग। सालाना प्लानिंग। पांच साला प्लानिंग। रिटायरमेंट प्लानिंग। और तो और फेमिली प्लानिंग भी। प्लानिंग‚ प्लानिंग‚ प्लानिंग। ससुरी प्लानिंग और हर चीज पर पहले से चर्चा के चक्कर में‚ पूरी लाइफ एकदम बोर बनाकर रख दी – एकदम प्रिडिक्टेबल। और पैसे से पैसा बनाने वालों की लाइफ तो एकदम झंड ही कर के रख दीॽ वह तो जब मोदी जी आए, तब प्लानिंग के चक्कर से बेचारों की पूरी तरह से जान छूटी और बेचारे औचक की रुकी हुई सांस लौटी।
जब प्लानिंग ही नहीं रही‚ तो फिर खामखां में इससे‚ उससे‚ हर किसी से चर्चा क्यों करनीॽ फैसला करने के लिए तो एक बंदा ही काफी है‚ यहां तो फिर भी बोनस के तौर पर हम दो‚ हमारे दो हैं।
औचक‚ मोदी जी की नोटबंदी आयी। औचक‚ मोदी जी की तालाबंदी आई। औचक, मोदी जी के कृषि कानून आए। अब औचक‚ संसद का विशेष सत्र। औचक को और कितना महात्म्य दिलाएं मोदी जी!