कांग्रेस अंतिम अवसर के रूप में देख रही 2024 का चुनाव!

  • लोकसभा चुनाव के लिए फिर से कांग्रेस को सींचने का काम शुरू किया हरीश रावत ने
  • कार्यकर्ता के लिए उनके विरोधियों से भी भिड जाते है हरदा

डॉ. श्रीगोपाल नारसन, रुड़की ।

नौसाल से मोदी सरकार (Modi government) के सत्ता में रहने से मजबूत विपक्ष की भूमिका के लिए जोर मारती रही कांग्रेस अब 2024 के लोकसभा चुनाव को अंतिम अवसर के रूप में देख रही है। जिसके लिए विपक्षी गठबंधन इंडिया पर दांव लगाया जा रहा है। देश के प्रमुख कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Former Chief Minister Harish Rawat) का कहना है कि 2024 की लड़ाई देश को आजादी दिलाने वाली कांग्रेस व उसके सहयोगी गठबंधन दलों तथा आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों की मुखबिरी करने वाले लोगों के बीच है, इनमें से किसी चुनना है यह देश की जनता तय करेगी।

 उन्होंने कांग्रेस को भारत के विकास का प्रतीक बताते हुए कांग्रेस ( Congress ) शासनकाल की उपलब्धियों को अभूतपूर्व बताया तो मोदी सरकार के समय देश के प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों के निजीकरण को देश के लिए घातक बताया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस ही नहीं देश की विपक्षी पार्टियों के लिए देश को बचाने का यह आखिरी मौका है,अन्यथा इस देश के लोकतंत्र को कुचलकर तानाशाही की ओर बढाया जा रहा है। हरीश रावत ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अब फिर से कांग्रेस को सींचने का काम शुरू कर दिया है। इसके लिए उन्होंने लोगों को कांग्रेस से जुड़ने के लिए अपील की है। हरीश रावत (Harish Rawat ) ने अपनी अपील जिसे वे घर घर जाकर बांट रहे है,में कहा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस समाज के सभी वर्गों,समुदायों ,धर्मो और जातियों को साथ लेकर चलती है।

 वहीं, पहले जाति आधारित राजनीति करके और अब हिन्दू-मुसलमान के आधार पर समाज को बांटने वाली पार्टियों ने कांग्रेस के जनाधार को कमजोर किया है। वहीं उक्त पार्टियों के कारण देश भी कमजोर हुआ है। जबकि कांग्रेस सर्वधर्म समभाव अपनाते हुए सबके कल्याण के लिए तत्पर रहकर अमीर गरीब के बीच की खाई को पाटने, देश के किसानों, मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं, दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों, अल्पसंख्यकों, कर्मचारियों, व्यापारियों के प्रति व्याप्त असम्मान व आर्थिक विषमता के प्रतिकूल समय मे कांग्रेस उनके पक्ष में संघर्ष के लिए आगे आ रही है। यही कांग्रेस का संवैधानिक धर्म है और महात्मा गांधी, डॉ भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों को आगे लेकर चलने का संकल्प भी है। जिसके लिए हरीश रावत ने कांग्रेस से जुड़ो अभियान की 51 यात्राएं करने व आने वाले सभी चुनाव में कांग्रेस को ताकत देने का अभियान शुरू किया है।

पहाड़ हो या मैदान,शहर हो या गांव ,घर हो या चौपाल ,शायद  ही ऐसी कोई जगह हो, जहां पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत का अपना कोई कार्यकर्ता मौजूद न हो। प्रत्येक कार्यकर्ता के दु:ख-सुख  के साथी कहे जाने वाले हरीश रावत की एक बडी विशेषता यह भी है कि उन्हें अपने हर कार्यकर्ता का नाम व पता याद रहता है। किस कार्यकर्ता से उन्हें क्या काम लेना है ,कैसे काम लेना है और कार्यकर्ता को क्या सम्मान देना है ,यह भी हरीश रावत को बखूबी आता है।

मुख्यमन्त्री पद पर रहते हुए  और मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद भी वे अपने कार्यकर्ताओ को वही मान सम्मान देते रहे है जो पहले से देते आए है। छोटे से छोटे कार्यकर्ता के महत्व और सम्मान को तरजीह देने में माहिर हरीश रावत को अपने कार्यकर्ताओं के बीच रहकर विशेष उर्जा मिलती है। तभी तो मुख्यमन्त्री आवास रहा हो या उनकी कोई जनसभा या फिर उनका अन्य कोई कार्यक्रम ,जब तक कार्यकर्ताओं से वे घिरे न हो, तब तक उन्हे आनन्द की अनुभूति नही होती। अपने छोटे से छोटे घरेलु कार्यक्रमों में भी वे अपने आम और खास कार्यकर्ताओं को आमन्त्रित करना नही भूलते, वही वे यह भी कौशिश करते है कि सभी कार्यकर्ताओं के यहां उनके सुख दु:ख के अवसरो पर हाजिरी दे सके। उनके इसी गुण के कारण उनके कार्यकर्ता उनके लिए उनके विरोधियों से भी भिड जाते है और हरीश रावत के पैरोकार बनकर चुनाव के समय उन्हे सफलता के सौपान तक पहुंचाते है।

हालांकि   हरीश रावत को कई बार चुनावी असफलताए भी झेलनी पडी है परन्तु न तो हरीश रावत का और न ही उनके कार्यकर्ताओं मनोबल कम हुआ है। आज भी ऐसे कई कार्यकर्ता हैं, जिन्हें हरीश रावत सरकार बन जाने पर भी कुछ नही दे पाए,लेकिन न तो हरीश रावत यह बात भूलते हैं और न ही उनके वे कार्यकर्ता उनसे रूठते हैं। वे फिर भी कन्धे से कन्धा मिलाकर हरीश रावत के उत्तराखण्डियत मिशन में न सिर्फ भागीदार बन रहे हैं, बल्कि आमजन के बीच जाकर हरीश रावत सरकार के समय की उपलब्धियों को भी बता रहे हैं। उनके इस अभियान के साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन महारा जहां संगठन को धार दे रहे हैं, वही कांग्रेस की गुटबाजी दूर करने के लिए राहुल गांधी स्वयं नसीहत दे चुके है।हालांकि गुटबाजी दूर हो पाएगी ऐसा कम से कम फिलहाल तो नही लगता।

वास्तव में पहाड़ के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए उत्तराखंड राज्य के विकास की जो परिकल्पना राज्य के लोगों द्वारा उत्तराखंड आंदोलन के दौरान की गई थी वह विकास परिकल्पना पूरा करने का हरीश रावत दावा कर रहे हंै। कांग्रेस राज्य के समग्र विकास के साथ चार धाम यात्रा,अमरनाथ यात्रा और मानसरोवर यात्रा के माध्यम से पहाड़ पर रह रहे लोगो की रोजी रोटी के साधन बनाने में के लिए भी प्रतिबद्ध होने की बात कर रही है। पर्वतीय क्षेत्र को प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए भी कांग्रेस शासनकाल में कार्ययोजना तैयार की गई थी। जिसके तहत भूस्खलन एवं भूकम्प से होने वाले नुकसान को बचाना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल था। राज्य को विकास व उपलब्यियों के रास्ते पर ले चलने में कामयाब हो जाने पर भी हरीश रावत को पिछले चुनाव में जीत नही मिल सकी थी।

जिसके पीछे  आम जनता तक पहुंच बनाकर आम जनता को कांग्रेस व सरकार की उपलब्धियां न बताने से जीत के लक्ष्य को प्राप्त करने में कांग्रेस विफल रही थी। उत्तराखंड की राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व को बनाये रखने और मिशन 2024 को फतेह करने के लिए कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा,नेताप्रतिपक्ष यशपाल आर्य और पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत एक जुटता के साथ चल रहे हैं। हरीश रावत पार्टी की मजबूती के लिए  चलाये गएं कांग्रेस से जुड़िएं अभियान को सफल बनाने में भी वे कारगर रहे है। कांग्रेस चाहती है कि पहाड़ या मैदान उत्तराखंड के विकास कार्यो में कोई ठहराव न आने पाए।

जिस पहाड और मैदान की संस्कृति तथा उसके भोलेपन पर सारी दुनिया फिदा है ,उसके महत्व को कांग्रेस ने समझा है। जिसका दावा स्वयं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा कर रहे है। पहाड़ की हरियाली ,उसकी खूबसूरती, उसकी जडी बूटी व पहाड़ी व मैदानी व्यंजनों जैसी विरासत को बचाने के लिए हरीश रावत सदैव आगे रहे हैं। पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत की सोच है कि पहाड़ी क्षेत्रों में रहकर पहाड की सांस्कृतिक विरासत को जिन्दा रखा जाए क्योकि जब तक पहाड को अपनी आत्मा समझकर हम पहाड को सरंक्षित करने की पहल नही करेगे, जब तक पहाड़ की मजबूती और सुन्दरता के लिय पहाड़ पर नये वृक्षों का रोपण नहीं करेंगे, जब तक विकास के नाम पर बारूद से पहाड़ तोड़ने के लिय विस्फोट करना बन्द नहीं करेगे, जब तक पहाड मे आत्म स्वावलम्बन के लिय रोजगार का सृजन नहीं करेंगे, तब तक पहाड़ को बचा पाना मुश्किल है।

इसके लिए आम जनमानस की एकजुटता, सगंठन शक्ति, उत्साह ,जोश और स्फूर्ति की आवश्यकता है जो कभी नये राज्य की मांग को लेकर पैदा हुई थी । शायद पहाड़ की रक्षा और स्वयं के स्वाभिमान को बचाने के लिए लोगों को परेशानी भी उठानी पडे, लेकिन पहाड़ की खुशहाली लौटाने के लिए यह जरूरी भी है। तभी पहाड़ का भोलापन ,उसकी महक व संस्कृति बची रह सकती है। इस पुनीत प्रयास को पूरा करने के लिए हरीश रावत  उत्तराखंड के लोगो की चाहत के तहत आगे आ रहे है जो आम जनमानस के उत्थान के साथ ही उत्तराखंड की उन्नति और खुशहाली के लक्ष्य को सहज रूप में प्राप्त करेगा।

इस लिए कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव की खातिर आपसी गुटबाजी को छोड़कर जनता का विश्वास जीतने व लोगो को कांग्रेस से जोड़ने के लिए जिम्मेदार नेताओं को मैदान में उतार रही है। जिसकी पहली परीक्षा बागेश्वर का उपचुनाव है जिसमे भाजपा व कांग्रेस के बीच आमने सामने की टक्कर है। वहीं, दूसरी परीक्षा इस साल राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में होने विधानसभा चुनाव की है। यही चुनाव कांग्रेस व उसके गठबंधन संगठन इंडिया का भविष्य तय करेंगे। तभी 2024 की रणभेरी बज सकती है और कांग्रेस के 70 साल व मोदी सरकार के 9 साल को देखते हुए आमजन देश के व अपने भविष्य का फैसला कर सकते है। इस चुनाव में मणिपुर व हरियाणा के दंगे,महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, किसान उत्पीड़न, महिलाओं पर अत्याचार, देशी विदेशी मुद्दों पर भी गौर किया जाएगा।

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