बिहार: चिराग का नया तेवर

प्रमोद झा, नई दिल्ली।

बिहार में जमुई से सांसद चिराग पासवान एक बार फिर नये तेवर के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar ) पर हमलावर हैं। वह कहते हैं कि बिहार की जनता नीतीश कुमार की विदाई का मन बना चुकी है। लोकजन शक्ति पार्टी (राम विलास) प्रमुख चिराग पासवान तीन साल बाद फिर जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा हैं जबकि नीतीश की पार्टी जद(यू) अपने धुर-विरोधी लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav )की पार्टी के सहयोग से सूबे की सत्ता संभाले हुए हैं। बकौल चिराग पासवान (Chirag Paswan), वह (नीतीश कुमार) दूसरे की कृपा से ही मुख्यमंत्री बने हुए हैं। नीतीश की नीतियों की हमेशा आलोचक रहे चिराग युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं।

चिराग पासवान 2020 के विधानसभा चुनाव के पहले से ही नीतीश शासन की कमियां गिनाते रहे हैं और इसी वजह से उनको राजग से अलग होकर चुनाव मैदान में उतरना पड़ा। उस समय वह कुमार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने की कोशिश में विफल रहे। लेकिन उनकी ही वजह से जद(यू) बिहार विधानसभा में सीटों के लिहाज से तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। शायद इसी वजह से आज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उनको सिर आंखों पर बिठा रही है। दरअसल, बिहार (Bihar) में महागठबंधन को शिकस्त देने के लिए भाजपा को चिराग जैसे ऊर्जावान नौजवान नेता की जरूरत है जिनको चाहने वाले लोग समाज के हर बिरादरी में हैं। मोदी का हनुमान बोलकर विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा (BJP)को फायदा पहुंचाने वाले लोजपा नेता अपनी विश्वसनीयता का परिचय पहले ही दे चुके हैं।

युवा मतदाताओं की बहुसंख्यक आबादी वाला  बिहार में इन दिनों युवा चेहरे-मसलन, तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर यानी पीके- सियासी-विमर्श के केंद्र हंै। ये सभी 50 वर्ष से कम उम्र हैं। इनमें से सबसे कम उम्र के तेजस्वी यादव बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं और चिराग पासवान सांसद। वहीं, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और चुनाव रणनीतिकार से जन सुराज अभियान के सूत्रधार बने पीके के पास कोई सियासी विरासत नहीं है, लेकिन वे खुद को राजनीति में स्थापित करने की पुरजोर कोशिश कर रहैं।

तेजस्वी यादव आगे मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। इसलिए नीतीश कुमार जब मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ेंगे तभी तेजस्वी की ताजपोशी हो पाएगी। महागठबंध में शामिल कांग्रेस के नेता कन्हैया कुमार कहीं से भी मुख्यमंत्री के दौर में शामिल नहीं है, लेकिन प्रखर वक्ता के तौर पर उनको भी युवा चाहते हैं। पीके और चिराग पासवान के रास्ते भीले ही अलग-अलग हैं, उनका लक्ष्य एक ही है। दोनों 2025 में बिहार में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं। चिराग पासवान ने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ यात्रा के साथ 2020 में जब अपने चुनावी अभियान का आगाज किया था उस समय भी उनका मकसद नीतीश-शासन का अंत करना था।

पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र के रूप में चिराग पासवान पर उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने की जिम्मेदारी है। वह अपने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं। साफ-सुथरी छवि के चिराग की गिनती पढ़े-लिखे नौजवान नेताओं में होती है, जिनके पास बिहार के विकास को लेकर एक विजन है। वह बिहार में बाढ़ की समस्या का स्थाई समाधान तलाशने की बात करते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य समेत कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए वह मजबूत कार्य-योजना पर काम करना चाहते हैं। यही वह वजह है कि सूबे में समाज के हर वर्ग के लोग उनकी बातों को सुनते हैं।

दरअसल, राम विलास पासवान के निधन के बाद लोजपा का दो फाड़ हो गया और चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस पांच सांसदों के साथ केंद्र की मौजूदा सरकार में शामिल हो गए और वह इस समय केंद्रीय मंत्री हैं। वहीं, राजग में फिर शामिल होने पर उनके समर्थकों को आज भी चिराग पासवान के मंत्री बनाये जाने का इंतजार हैं। हालांकि, चिराग पासवान की नजर बहरहाल 2024 के लोकसभा चुनाव पर है, जिसमें अच्छा प्रदर्शन करने पर ही वह 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में गठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटों का दावा कर पाएंगे। इसलिए, वह अपने पिता की कर्मभूमि हाजीपुर लोकसभा सीट पर अपना दावा पेश कर रहे हैं, लेकिन हाजीपुर से वर्तमान सांसद और केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस अपनी सीट छोड़ने को तैयार नहीं है। पशुपति पारस भले ही खुद को रामविलास पासवान के राजनीतिक उत्तराधिकारी बताएं, लेकिन प्रदेश के लोग चिराग को पिता के राजनीतिक उत्तराधिकार के असली वारिस मानते हैं।

नौजवान नेता के तौर पर उनकी एक अलग छवि भी है। वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करने पर भी मुख्यमंत्री से सवाल करत हैं। वह सूबे की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार की आर्थिक नीति की विफलता मानते हैं।

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