धरती पर बढ़ता आबादी का भार !

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
34वां विश्व जनसंख्या दिवस दुनियाभर में मनाया जा रहा है। इस दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सन 1989 में की गई थी, जिसके बाद सन 1990 में इसे पहली बार वैश्विक स्तर पर 90 से अधिक देशों में जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए  मनाया गया था।
वस्तुतः सन 2011 में दुनिया की आबादी 7 अरब थी, जो इस साल 8 अरब तक पहुंच गयी है। जनसंख्या  वृद्धि इतनी तेजी से हो रही है कि 2030 तक यह संख्या 8.5 अरब तक पहुंचने की संभावना है और अगले 20 सालों में यानि सन 2050 तक यह आंकड़ा  9.7 अरब तक पहुंच सकता है।भारत की अनुमानित जनसंख्या वर्ष 2020 के मध्य में लगभग एक अरब 38 करोड़ लोगों की थी तो वही चीन की जनसंख्या लगभग एक अरब 43 करोड़ लोगों की थी।अप्रैल सन 2023 में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी किए गए ताज़ा आंकड़ों के अनुसार अब भारत चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बना गया है, जहाँ चीन की कुल आबादी 142.57 करोड़ है, तो वहीं भारत की जनसंख्या 142.86 करोड़ पर पहुंच गई है।जुलाई सन 2023 की शुरूआत में सबसे अधिक जनसंख्या वाले टॉप 10 देशो में चीन – 145 करोड़,भारत – 142 करोड़,अमेरिका – 33 करोड़,इंडोनेशिया – 28 करोड़, पाकिस्तान – 23 करोड़, नाइजीरिया – 22 करोड़,ब्राज़ील – 21 करोड़,बांग्लादेश – 16 करोड़,रूस – 14 करोड़, मक्सिको – 13 करोड़ है।जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण मृत्यु दर का कम होना और जन्म दर का तेजी से बढ़ना है। इसके अलावा गर्भनिरोधक दवाओं का कम उपयोग, महिलाओं में साक्षरता की कमी, लिंग असमानता और गरीबी भी आबादी बढ़ने के मुख्य कारणों में से हैं।दुनिया में हर साल औसतन 12 से 14 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं। यानि हर एक मिनट में 270 बच्चों का जन्म होता है।18वीं सदी तक एक महिला औसतन छह बच्चों को जन्म देती थी। 19वीं सदी में इसमें थोड़ी गिरावट आई।सन 1951 के आंकडो के अनुसार एक महिला औसतन पांच बच्चों को जन्म देती थी। लेकिन सन 2021 में यह आंकड़ा 2.5 पर आ गया है।अर्थात अब एक महिला दो या तीन बच्चों को ही जन्म देती है। भारत में  18वीं सदी से लेकर अब तक के आंकड़ों को देखें तो जन्मदर में लगातार गिरावट हुई है।सन 1880 में भारत में जन्मदर 5.95 प्रतिशत थी, जो 1900 में घटकर 5.73 प्रतिशत हो गई। 1950 में जन्मदर 5.9 प्रतिशत थी। आजादी के बाद इसमें जबरदस्त गिरावट हुई। सन 2000 में भारत में जन्मदर घटकर 3.48 प्रतिशत रह गई, जो अब 2.0 प्रतिशत है। यानि बच्चों के पैदा होने की गति में लगातार गिरावट हो रही है।
तो अब सवाल यह उठता है कि जन्म तेजी से घटने के बावजूद भारत समेत दुनिया की आबादी इतनी तेजी से कैसी बढ़ रही है। दरअसल जब भी आबादी बढ़ने की बात होती है तो हम लोग सिर्फ जन्म दर पर फोकस करते हैं। जबकि आबादी का एक दूसरा पहलु मृत्यु दर में भी समाहित है। मौजूदा समय में हर साल एक हजार लोगों पर करीब 18 बच्चों का जन्म होता है। इसके विपरीत एक हजार की आबादी पर  7.6 लोगों की मौत होती है। मतलब जन्म दर का आंकड़ा मृत्यु दर से दो गुने से भी ज्यादा है।
आर्थिक दृष्टि से भारत चीन से काफी पीछे है। चीन के अर्थव्यवस्था का आकार जहां 17.73 ट्रिलियन डॉलर है वहीं भारत के अर्थव्यवस्था का साइज केवल 3.18 ट्रिलियन डॉलर है। यानि भारतीय अर्थव्यवस्था से चीन की अर्थव्यवस्था पांच गुना बड़ी है। भारत में बेरोजगारी दर 7 फीसदी के करीब है, जबकि चीन में ये दर 5 फीसदी से कम है।
जनसंख्या को लेकर जो रिपोर्ट आई है उसके मुताबिक 25 फीसदी आबादी 15 वर्ष से कम की है, तो 25 फीसदी के करीब आबादी 15 से 25 वर्ष के आयु के बीच है। कुल आबादी में 65 फीसदी लोग 35 साल से कम के हैं। हमारे यहां 10 से 24 वर्ष की आयु की आबादी संख्या 26 फीसदी है जबकि चीन में केवल 18 फीसदी है। तीन दशक पहले जब चीन की अर्थव्यवस्था ने रफ्तार भरना शुरू किया तब उसकी कुल आबादी में से 85 फीसदी आबादी वर्कफोर्स में शामिल थी, जबकि भारत में ये केवल 52 फीसदी लोग ही कामकाजी है। वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी भारत में केवल 20 फीसदी है जबकि चीन में 61 फीसदी और ग्लोबल स्तर इसका औसत 47 फीसदी है।भारत को अपनी बड़ी आबादी को वर्कफोर्स में शामिल करने के लिए बेहद कौशल विकास पर जोर देना होगा।हालांकि भारत की बड़ी आबादी भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने की क्षमता रखती है।भारत दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। फिर भी भारत के सामने बड़ी समस्या है तेजी से वर्कफोर्स में शामिल हो रही युवा आबादी को रोजगार मुहैया कराने की है। इन युवाओं की डिग्रियां ही उनके रोजगार पाने की हसरत में रोड़ा बन रही है।सबसे बड़ी समस्या योग्य लोगों की कमी को लेकर है। रोजगार के मौके हैं, कंपनियों को जरूरत भी है, लेकिन कॉरपोरेट जगत को बेहतर स्किल्ड लोग नहीं मिल पा रहे हैं।
 देश में करोड़ों की संख्या में रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। क्योंकि हर वर्ष लाखों लोग वर्कफोर्स में शामिल होते हैं। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए निवेश को आकर्षित करना होगा। विशअव बैंक के रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इंवेस्टमेंट ग्रोथ 2000 से 2010 के बीच 10.5 फीसदी सालाना दर से बढ़ा था, जो 2011 से 2021 के बीच घटकर 5.7 फीसदी रह गया है। केंद्र सरकार अलग-अलग सेकटरों के लिए जो पीएलआई स्कीम लेकर आई है उससे 60 लाख नए रोजगार के अवसर पैदा हों सकते है,बशर्ते यह योजना धरातल पर उतारी जा सके।
संयुक्त राष्ट्र  के मुताबिक, सन 2050 में भारत की जनसंख्या 166 करोड़ तक पहुंचने के आसार हैं। इस अवधि में चीन की आबादी घटकर 131 करोड़ होगी। सन 2064 में भारत अपनी जनसंख्या के चरम 169 करोड़ तक पहुंच जाएगा और इसके बाद गिरावट शुरू होगी। वहीं, चीन में सन 2021 से आबादी घटनी शुरू हो गई है। चीन की तुलना में भारत की बढ़ती आबादी नुकसान के बजाए हमारे विकास के लिए फायदेमंद साबित होगी।सन 1950 और सन1960 के दशक में दोनों देशों की प्रजनन दर भी लगभग एक-सी थी। मगर 1980 में चीन ने एक ही बच्चे की नीति सख्ती से लागू कर दी, जिससे वहां प्रजनन दर अप्रत्याशित रूप से कम होने लगी। वहीं, भारत ने भी आजादी के बाद परिवार नियोजन जैसे कार्यक्रम अपनाए, लेकिन इमरजेंसी को छोड़ दें तो व्यापक स्तर पर इसका सकरात्मक असर ही रहा। भारत को प्रजनन दर में कमी लाने में 46 साल लग गए, जबकि चीन ने राजनीतिक माहौल और सख्त आबादी नियंत्रण के तरीकों से यही काम बहुत तेजी से 26 साल में कर लिया। इसी कारण चीन ने जनसंख्या नियंत्रण में सफलता प्राप्त कर ली है और हम अभी उस ओर कदम बढ़ा रहे है।

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