नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सीमेंट मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन व देश की कुछ प्रमुख सीमेंट उत्पादक कंपनियों को झटका देते हुए सोमवार को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में पंजीकरण कराने के मामले में छूट देने से इनकार कर दिया है और उनके प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है।
प्लास्टिक कचरे के मामले में अल्मोड़ा निवासी जितेन्द्र यादव की ओर से दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की पीठ में सुनवाई हुई। देश की सीमेंट उत्पादक कंपनियों की एसोसिएशन व कुछ सीमेंट कंपनियों की ओर से प्रार्थना पत्र देकर पिछले साल सात जुलाई के आदेश में संशोधन करने की मांग की गयी थी।
कंपनी की ओर से कहा गया कि उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में केन्द्र सरकार के प्लास्टिक नियमों को चुनौती दी गयी है। कंपनियों की ओर से यह भी कहा गया कि अदालत अपने आदेश में संशोधन कर उन्हें सीपीसीबी में पंजीकरण कराने के मामले में छूट प्रदान करे। दूसरी ओर याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उत्तराखंड राज्य की पृथक ईकोलॉजी है और प्रदेश में 70 प्रतिशत वन क्षेत्र है।
दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश उत्तराखंड पर बाध्यकारी नहीं है। साथ ही दिल्ली एचसी ने कंपनियों को पंजीकरण से अभी छूट भी प्रदान नहीं की है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय को संविधान की धारा 206 के तहत पृथक रूप से शक्ति प्रदान है।
इसलिये कंपनियों को छूट प्रदान नहीं की जानी चाहिए। सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कंपनियों के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है। अदालत ने इन कंपनियों को पक्षकार बनाने के निर्देश दिये हैं। इस मामले में अगली सुनवाई 20 फरवरी को होगी। यहां बता दें कि यादव ने पिछले साल 2022 में एक जनहित याचिका दायर कर प्लास्टिकजनित कचरे को चुनौती दी है।
अदालत ने 07 जुलाई को एक आदेश जारी कर देश के सभी उत्पादकों, निर्माता कंपनियों व आयातकों के साथ ही ब्रांड स्वामियों को सीपीसीबी व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकरण कराने के निर्देश दिये थे। अदालत ने यह भी कहा था कि पंजीकरण नहीं कराने की स्थिति में शासन-प्रशासन ऐसे उत्पादकों व निर्माताओं के सामान की बिक्री पर प्रतिबंध लगाये।