अब अंतरिक्ष से ही प्राकृतिक आपदाओं पर नजर रख सकेगा भारत

 योगेश कुमार गोयल
इसरो के वैज्ञानिकों ने बीते कुछ वर्षों में अंतरिक्ष की दुनिया में कई बड़े मुकाम हासिल किए हैं। पिछले दिनों भी इसरो ने अंतरिक्ष में सफलता का ऐसा ही परचम लहराया। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसरो ने महासागरों के वैज्ञानिक अध्ययन और चक्रवातों पर नजर रखने के लिए तीसरी पीढ़ी के ओशनसैट सैटेलाइट का प्रक्षेपण किया।

इसरो ने 44.4 मीटर लंबे अपने विश्वसनीय पीएसएलवी-54 रॉकेट से ईओएस-06 मिशन के तहत कुल 321 टन भार के साथ उड़ान भरी और ओशनसैट-3 सैटेलाइट के अलावा भूटान के एक उपग्रह सहित 8 नैनो उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया। इस वर्ष का इसरो का यह पांचवां और आखिरी मिशन था, जो वैज्ञानिकों द्वारा किए गए सबसे लंबे समय तक चलने वाले मिशनों में से एक था।

इसरो के पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल) रॉकेट का यह 54वां तथा पीएसएलवी-एक्सएल प्रारूप का 24वां मिशन था, इसीलिए इसरो द्वारा अपने इस मिशन को पीएसलीवी सी-54 नाम दिया गया।
पीएसएलवी-54 के जरिये ओशनसैट-3 के अलावा प्रक्षेपित किए गए आठ लघु उपग्रहों में भूटान के खास रिमोट सेंसिंग भूटानसैट सहित बेंगलुरू आधारित निजी कम्पनी पिक्सेल द्वारा निर्मित उपग्रह आनंद, हैदराबाद की निजी स्पेस कम्पनी ध्रुव द्वारा निर्मित दो थायबोल्ट उपग्रह, स्पेसफ्लाइट और यूएसए के चार एस्ट्रोकास्ट उपग्रह शामिल थे।

करीब एक हजार किलोग्राम वजनी ओशनसैट-3 सैटेलाइट को इसरो ने अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट-6(ईओएस-06) नाम दिया है और ईओएस-06 तथा 8 नैनो उपग्रहों का कुल वजन 1117 किलोग्राम था। पीएसएलवी-सी54 ने ईओएस-06 को पृथ्वी से 742 किलोमीटर की ऊंचाई पर अपनी कक्षा में प्रक्षेपण के बाद 17 मिनट में पहुंचाया और अन्य सभी 8 उपग्रह भी अपनी निर्धारित कक्षाओं में करीब 528 किलोमीटर ऊंचाई पर स्थापित किए गए तथा कुल दो घंटे के उड़ान समय में मिशन सफलतापूर्वक पूरा हुआ। इसरो के लिए यह मिशन बेहद खास इसलिए था क्योंकि इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा पहली बार दो कक्षाओं में उपग्रह प्रक्षेपित किए गए, जिसमें ऑर्बिट चेंज थ्रस्टर्स (ओसीटी) उपयोग हुए। ओशनसैट को 742 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचाने के बाद पीएसएलवी-सी54 रॉकेट को नीचे की ओर लाया गया और बाकी 8 उपग्रह 513 से 528 किलोमीटर पर स्थापित किए गए।
इसरो द्वारा अंतरिक्ष की अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किए उपग्रहों की विशेषताओं की बात करें तो आनंद और थायबोल्ट निजी स्पेस कम्पनियों के भारतीय उपग्रह हैं, जिनमें पिक्सल कम्पनी के आनंद उपग्रह का कुल वजन 16.51 किलोग्राम है, जो व्यावसायिक उपग्रह क्षमता और तकनीक के प्रदर्शन के लिए अंतरिक्ष में भेजा गया है। आनंद एक हाइपरस्पैक्ट्रल नैनो सैटेलाइट है, जिसमें 150 से अधिक तरंगदैर्ध्य हैं, जो इसे आज के गैर-हाइपरस्पैक्ट्रल उपग्रहों (जिनकी तरंग दैर्ध्य 10 से अधिक नहीं है) की तुलना में अधिक विस्तार से पृथ्वी की तस्वीरें लेने में सक्षम बनाएंगी। पिक्सल के सीईओ के मुताबिक ह्यआनंदह्ण उपग्रह विस्तृत रूप से पृथ्वी का अवलोकन कर सकता है और पिक्सेल के उपग्रहों से ली गई तस्वीरों का उपयोग कीटों की अधिक संख्या में मौजूदगी तथा तेल पाइपलाइन में रिसाव का पता लगाने में किया जा सकता है।

पिक्सेल अपना तीसरा हाइपरस्पैक्ट्रल उपग्रह प्रक्षेपित करने को भी तैयार है। स्टार्टअप ध्रुव स्पेस कम्पनी के दो उपग्रहों थायबोल्ट-1 और थायबोल्ट-2 का कुल वजन 1.45 किलोग्राम है। एस्ट्रोकास्ट के रूप में तकनीकी प्रदर्शन के लिए अमेरिका की स्पेसफ्लाइट की ओर से भेजे गए 17.92 किलोग्राम वजनी चार उपग्रह इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) तकनीक में उपयोग होंगे।
भूटानसैट भारत और भूटान का ज्वाइंट सैटेलाइट है, जो एक टैक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर है और स्पेस के क्षेत्र में भूटान को भारत द्वारा दिए जा रहे सहयोग का प्रदर्शन है। भूटान का 30 सेंटीमीटर क्यूबिक नैनो सैटेलाइट आईएनएस-2बी 18.28 किलो वजनी है, जिसमें दो उपकरण नैनोएमएक्स और एपीआरएस-डिजिपीटर लगे हैं।

नैनोएमएक्स अंतरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र द्वारा विकसित एक मल्टीस्पैक्ट्रल ऑप्टिकल इमेजिंग पेलोड है जबकि एपीआरएस-डिजिपीटर पेलोड संयुक्त रूप से भूटान के सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार विभाग तथा बेंगलुरू के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर द्वारा विकसित किया गया है। इस सैटेलाइट के माध्यम से भूटान ने अंतरिक्ष में पहला कदम रखा है, जिसमें उसे भारत ने मदद दी है। भूटानसैट में रिमोट सेंसिंग कैमरा लगे हैं और यह सैटेलाइट रेलवे ट्रैक बनाने, ब्रिज बनाने जैसे विकास संबंधी कार्यों में मदद करेगा तथा भारत और भूटान दोनों ही देशों को कवर करेगा।

आईएनएस-2बी के उपकरणों के जरिये भूटान में प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन होगा तथा शौकिया तौर पर रेडियो उपयोग करने वालों को भी सेवाएं मिलेंगी। इसरो के इस मिशन में शामिल भूटान के उपग्रह आईएनएस-2बी को लेकर भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर का कहना है कि भूटान तथा भारत ने इस मिशन से एक ऐतिहासिक पड़ाव पार किया है और अंतरिक्ष तथा तकनीक में हासिल उपलब्धियों के जरिये दोनों देशों का सहयोग 21वीं सदी में प्रवेश कर चुका है।
जहां तक ओशनसैट-3 की बात है तो ओशनसैट श्रृंखला के सैटेलाइट ह्यअर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइटह्ण हैं, जो समुद्र विज्ञान और वायुमंडलीय अध्ययन के काम आते हैं और समुद्री मौसम का पूर्वानुमान करने में भी सक्षम हैं। ओशनसैट सीरीज का पहला सैटेलाइट ओशनसैट-1 पहली बार 1999 में अंतरिक्ष में स्थापित हुआ था, जिसके बाद ओशनसैट-2 2009 में अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। 2016 में ओशनसैट-2 के स्कैनिंग स्केटरोमीटर खराब हो गए थे, जिसके बाद स्कैटसैट-1 लांच किया गया था।

अब अंतरिक्ष में स्थापित किए गए ओशनसैट-3 सैटेलाइट को भारत के लिए बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि आधुनिक तकनीक और कैमरों से लैस ओशनसैट-3 की मदद से समुद्री घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, जिससे किसी भी समुद्री तूफान या चक्रवात का पहले ही पता लगाया जा सकता है। इसकी मदद से न केवल समुद्री सतह के तापमान को नापा जा सकेगा बल्कि इससे समुद्री इलाकों में क्लोरोफिल, फाइटोप्लैंकटन, एयरोसोल तथा प्रदूषण की भी जांच करने में मदद मिलेगी। कलर मॉनीटर, स्कैटरोमीटर तथा सी-सरफेस टेम्परेचर मॉनीटर से लैस यह सैटेलाइट समुद्र और पृथ्वी की बारीकी से निगरानी और रिकॉर्ड करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के मुताबिक पीएसएलवी-सी54 द्वारा ओशनसैट-3 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जा चुका है और अब यह सैटेलाइट करीब 5 वर्ष तक समुद्र और उससे जुड़ी जानकारी देगा। इसरो की स्पेसक्राफ्ट डायरेक्टर थेनमोझी सेल्वी का कहना है कि ओशनसैट-3 सैटेलाइट का उपयोग मछली पकड़ने के क्षेत्रों की पहचान, सामुद्रिक सुरक्षा, मौसम के पूर्वानुमान तथा कई अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में भी किया जा सकेगा।

इसका लक्ष्य महासागर का अध्ययन और डाटा संग्रह, मौसम के बदलावों व चक्रवातों पर नजर रखना तथा हवा के बहाव का डेटा जुटाना है। बहरहाल, अंतरिक्ष की दुनिया में इसरो जिस प्रकार लगातार सफलता का परचम लहरा रहा है, उससे अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में विश्वभर में भारत का दबदबा निरन्तर बढ़ रहा है। इसरो के ऐसे सफल मिशनों की बदौलत भविष्य में इसरो को आर्थिक लाभ तो होगा ही, अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में पूरी दुनिया भारतीय वैज्ञानिकों का दम भी देखेगी और इससे दुनिया के छोटे देश भी अपने अभियानों के लिए भारत की ओर आकर्षित होंगे, जो निश्चित रूप से भारत की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामरिक मामलों के लोकप्रिय विश्लेषक हैं)

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