बदलाव या बदलेगा रिवाज़?

चुनाव की घोषणा के बाद सभी दलों का सियासी पारा बढ़ा

पवन कुमार शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार।

हिमालय की गोद में बसे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में बढ़ती ठंडक के बीच बाहर का पारा भले ही घट रहा हो लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद यहां का सियासी पारा काफी बढ़ गया है। राज्य में विधान सभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है।

चुनाव आयोग द्वारा घोषित चुनावी कार्यक्रम के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में 25 अक्टूबर तक प्रत्याशी नामांकन कर सकेंगे। 27 अक्टूबर को नामांकन पत्रों की जांच और 29 अक्टूबर तक नाम वापस लिए जा सकेंगे। 12 नवंबर को हिमाचल प्रदेश की सभी 68 सीटों पर एक चरण में मतदान होगा और 8 दिसंबर को चुनाव के नतीजे आएंगे।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 8 जनवरी 2023 को खत्म हो रहा है। राज्य में विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं जिनमें 20 सीटें आरक्षित हैं। 17 सीटें अनुसूचित जाति (एससी) और 3 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए रिजर्व हैं।

हिमाचल प्रदेश विधान सभा के मौजूदा समीकरणों की बात करें तो सत्तारूढ़ बीजेपी के पास 43 विधायक हैं। 2 निर्दलीय विधायक अब बीजेपी के समर्थन में हैं और कांग्रेस के 2 विधायकों ने हाल ही में बीजेपी का थामन थामा है। दूसरी तरफ, कांग्रेस के पास वर्तमान में 20 विधायक और सीपीआईएम के पास एक विधायक है।
बीजेपी ने 2017 का विधान सभा चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नाम पर लड़ा था।

सुजानपुर विधानसभा सीट से हार के बाद बीजेपी हाईकमान ने जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाया था। पांच साल बाद 2022 में बीजेपी अब जयराम ठाकुर के नेतृत्व में चुनावी मैदान में हैं। दिलचस्प ये भी है कि यह बीजेपी के लिए पहला चुनाव है जब पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल मार्गदर्शक की भूमिका में हैं और प्रदेश का युवा नेतृत्व फ्रंट फुट पर है।
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर चुनावी चेहरा हैं। पार्टी उनके नाम पर ही चुनाव लड़ रही है, जबकि सीएम कैंडिडेट के तौर पर पार्टी ने जयराम ठाकुर का नाम फाइनल किया है। हिमाचल प्रदेश में हाल ही में आयोजित रैलियों में पीएम मोदी ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और उनकी टीम की पीठ थपथपा कर इसके साफ संकेत भी दिए हैं।

हिमाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिलचस्पी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने चुनाव की घोषणा से पहले ही प्रदेश में तीन-चार बड़ी जनसभाएं कर डालीं। इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया। प्रधानमंत्री और पार्टी की ये पूरी कवायद ना सिर्फ हिमाचल का किला बचाने के लिए है, बल्कि मिशन रिपीट के लिए भी है।

गौरतलब बात ये भी है कि हिमाचल प्रदेश बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा का गृह राज्य है। लिहाजा, यदि हिमाचल का किला फतेह हो गया तो ना सिर्फ नड्डा की साख बढ़ेगी, बल्कि 2024 के आम चुनाव में बीजेपी विपक्ष पर और धारदार तरीके से वार करने में सक्षम होगी।

हिमाचल में बीजेपी की सत्ता में फिर से वापसी ही पार्टी और प्रधानमंत्री का एकमात्र लक्ष्य है।हिमाचल में अबकी बार सरकार नहीं, रिवाज़ बदलेगाहिमाचल की पुकार, फिर भाजपा सरकार और डबल इंजन सरकार, डबल विकास जैसे नारे बीजेपी के इसी लक्ष्य की तरफ साफ इशारा कर रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी सबसे बड़ी चुनौती है। इसकी मुख्य वजह है 2021 में 3 सीटों पर हुए उपचुनाव, जिसमें बीजेपी तीनों सीटों पर बुरी तरह हार गई थी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने तब बढ़ती महंगाई को इस हार की वजह बताया था।

बड़ा सवाल यही है कि क्या महंगाई अब कम हो गई है? हिमाचल प्रदेश के दुर्गम और दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाला ग्रामीण क्या महंगा घरेलू गैस सिलेंडर खरीदने में सक्षम हो गया है? महंगाई के अलावा ब्यूरोक्रेसी पर कमजोर पकड़ और पुराने निष्ठावान पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिसको लेकर बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व निशाने पर रहा है।
दूसरी तरफ, कांग्रेस की बात करें तो पार्टी पिछले छह दशकों में पहली बार बिना वीरभद्र सिंह के चुनाव में उतरेगी। 2017 में कांग्रेस सत्ता में थी। कांग्रेस ने छह बार के सीएम वीरभद्र सिंह के नाम पर चुनाव लड़ा और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। जुलाई 2021 में वीरभद्र सिंह के निधन के बाद अब कांग्रेस के पास उनके जैसा कोई अनुभवी और दमदार सीएम चेहरा नहीं है।

उनकी धर्मपत्नी प्रतिभा सिंह के पास बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पार्टी की बागडोर जरूर है लेकिन हकीकत यह है कि उनकी अध्यक्षता में कई पुराने कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम रहे हैं। सीएम प्रत्याशी को लेकर भी पार्टी के अंदरखाने कई दावेदार हैं।

इनमें सुखविंद्र सिंह सुक्खू, कौल सिंह ठाकुर, मुकेश अग्निहोत्री, रामलाल ठाकुर और आशा कुमारी शामिल हैं। युवा नेता और वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह भी अपना प्रभाव बनाने में जुटे हैं, हालांकि अनुभव की कमी उनके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है। सीएम पद के दावेदार का नाम सबसे पहले घोषित करने वाली आम आदमी पार्टी भी अब तक हिमाचल के लिए अपना सीएम कैंडिडेट तलाश नहीं कर पाई है लिहाजा पार्टी अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर ही जनता से वोट मांग रही है।

पहाड़ी प्रदेश हिमाचल का चुनावी इतिहास

2017 विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में पूर्ण बहुमत से जीत दर्ज कर सरकार बनाई थी। इस चुनाव में बीजेपी को 44, कांग्रेस को 21 और सीपीआईएम को एक सीट मिली थी। दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में बीजेपी को 48.79 फीसदी, जबकि कांग्रेस को 41.68 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन 2022 के विधान सभा चुनाव में नया यह है कि दिल्ली और पंजाब में सतारूढ़ आम आदमी पार्टी इस बार पहली बार इस पहाड़ी राज्य में दम ठोक रही है।
2014 और 2019 लोक सभा चुनावों में बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में क्लीन स्वीप किया था। 2019 में पार्टी ने 69.7 फीसदी वोट प्रतिशत के साथ चारों लोक सभा सीटों पर बंपर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस को महज 27.5 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि, सांसद रामस्वरूप शर्मा के ना रहने के बाद हुए मंडी लोक सभा उपचुनाव में मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने जीत दर्ज की। वर्तमान में बीजेपी के तीन और कांग्रेस का एक सांसद लोक सभा में हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। राज्य सभा के तीनों संसद सदस्य बीजेपी से संबंध रखते हैं।

हिमाचल विधान सभा चुनाव के बड़े मुद्दे

छोटे राज्य हिमाचल प्रदेश में चुनावी मुद्दों की बात करें तो महंगाई और रोजगार मुख्य मुद्दे हैं। किसान-बागवान अपनी समस्याओं को लेकर आर-पार करने के मूड में हैं तो युवा पुलिस पेपर लीक जैसे मामले को लेकर क्षुब्ध हैं। राज्य का कर्मचारी वर्ग अलग से अपनी समस्याओं को लेकर परेशान है।

एंटी इन्कंबैंसी और हर पांच वर्ष में सरकार में बदलाव की परिपाटी कुछ ऐसी बातें हैं जो सत्तारूढ़ पार्टी के लिए चिंता का सबब है तो विपक्ष के लिए आशा की उम्मीद। इसके अलावा पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने और सवर्ण आयोग का मामला ऐसे दो मुद्दे हैं जिनकी मांग लंबे समय से की जा रही है। चुनावी माहौल में इन दोनों मांगों को लेकर जनता के मुखर होने की पूरी संभावना है।
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अपनी हर जनसभा में हाइवे, पुल, अंडरपास, टनल, वंदेभारत एक्सप्रेस जैसे विकास कार्यों का ज़िक्र कर रहे हैं, वहीं एम्स, आईआईआईटी जैसे राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों का लोकार्पण कर बीजेपी इसके संकेत भी दे चुकी है।

इसके अलावा बीजेपी राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा वीरभूमि हिमाचल में जोर-शोर से उठाती आई है क्योंकि प्रदेश में देश की सेवा कर रहे युवा सैनिकों और पूर्व सैनिकों की अच्छी-खासी संख्या है।
दूसरी ओर, कांग्रेस ने इस चुनाव में किसान और बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाया है। सबसे ज्यादा सेब उत्पादक बागवान हिमाचल में हैं। पिछले दिनों यही बागवान अपनी समस्याओं को लेकर सड़क पर थे। कांग्रेस बागवानों के इसी गुस्से को भुनाने में जुटी है।

इसके अलावा महंगाई और बेरोजगारी ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर कांग्रेस सरकार को लगातार घेरती आई है। कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में 5 लाख बेरोजगारों को रोजगार देने, 300 यूनिट फ्री बिजली और महिलाओं को 1500 रुपये मासिक देने का ऐलान किया है। इसके साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी साफतौर पर कह चुकी हैं कि प्रदेश कांग्रेस के सभी नेता एकजुट होकर चुनाव में उतरें।

हिमाचल कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला और सह प्रभारी संजय दत्त के जरिए वे पार्टी काडर को साफ संदेश दे चुकी हैं कि पंजाब और उत्तराखंड की तरह हिमाचल प्रदेश में गुटबाजी हावी नहीं होने दी जाएगी और बिखराव को रोकने के लिए जिम्मेदारी तय की जाएगी।
पंजाब में बंपर जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी भी शिक्षा-स्वास्थ्य और फ्री बिजली के वादे के साथ पहली बार हिमाचल के चुनावी समर में जोर-आजमाइश कर रही है। आम आदमी पार्टी के नेता दिल्ली मॉडल दिखा कर हिमाचल के स्कूलों और अस्पतालों के हालात सुधारने का वादा कर रहे हैं। पार्टी इन्हीं मुद्दों को लेकर सत्तारूढ़ बीजेपी को घेरने में भी जुटी है।

हिमाचल के भाग्य विधाता: 55.07 लाख वोटर

हिमाचल प्रदेश की कुल 68 विधानसभा सीटों में 55.07 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें 27.80 लाख पुरुष और 27.27 लाख महिला मतदाता शामिल हैं। प्रदेश में 37 थर्ड जेंडर मतदाता भी हैं। प्रदेश में इस बार 1470 नए दिव्यांग वोटर जुड़े हैं और उनकी संख्या बढ़ कर 56,001 हो गई है।

मृत्यु, स्थानांतरण तथा पंजीकरण के दोहराव आदि के चलते 45,073 मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए भी गए हैं। कांगड़ा जिले की सुलह विधानसभा सीट में सबसे ज्यादा 1,04,486 मतदाता हैं, जबकि लाहौल और स्पीति विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम 24744 वोटर हैं।
हिमाचल प्रदेश चुनाव का दिलचस्प पहलू यह भी है कि यहां 80 प्लस आयु वाले 1.22 लाख से ज्यादा बुजुर्ग हैं। इनमें 1184 वोटर्स की उम्र तो 100 वर्ष से ज्यादा है।

चुनाव आयोग इन वरिष्ठ मतदाताओं का ना सिर्फ सम्मान कर चुका है बल्कि चुनाव आयोग ने इस बार 80 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले बुजुर्गों और कोरोना पीड़ितों को घर में ही वोटिंग की सुविधा देने की बात कही है। अब देखना यह है कि चुनाव आयोग की इस पहल का वोटर टर्नआउट पर कितना असर पड़ता है।
हिमाचल प्रदेश में 1.86 लाख मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। इनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच है। इनमें 43,172 वोटर्स ऐसे हैं, जिनकी आयु एक जनवरी 2022 से एक अक्टूबर 2022 के बीच 18 साल पूरी हुई है। जाहिर तौर पर तमाम पार्टियों की नज़र इन युवा मतदाताओं पर है और वे इनको अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।

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