हेलसिंकी। फिनलैंड और रूस की सीमा पर अभी बहुत कम रूसी सैनिक हैं। इस वजह से फिनलैंड यह मानता है कि अभी उसे रूस की तरफ से कोई खतरा नहीं है। दोनों देशों के बीच भौगोलिक सीमा करीब 830 मील लंबी है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद फिनलैंड ने भी नाटो की सदस्यता लेने का फैसला लिया था।
इस फैसले के तुरंत बाद रूस ने उसे आगाह कर दिया था कि अगर वह अपने तटस्थ रवैये से अलग हटा तो उसे भी इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इस चेतावनी के बाद फिनलैंड में भी युद्ध की आपातकालीन तैयारियों की गयी थी। इसके तहत कई इलाकों में अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त भूमिगत बंकर भी बनाये गये थे। जिनमें वाहन भी चल सकते हैं।
लेकिन अब यूक्रेन का युद्ध लंबा खींच जाने के बाद फिनलैंड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अब फिनलैंड और रूस की सीमा पर बहुत कम सैनिक रह गये हैं। उनके मुताबिक दूसरे माध्यमों से जो सूचनाएं मिल रही हैं उसके मुताबिक जो सैनिक टुकड़ियां इस सीमा पर तैनात थी, उन्हें भी यूक्रेन के युद्ध में भीषण नुकसान हुआ है। इसलिए तुरंत ही रूस की तरफ से नई टुकड़ी यहां तैनात करने की कम संभावना है।
वहां जो नये रंगरूट भर्ती किये जा रहे हैं, उन्हें भी प्रशिक्षित होने में अभी काफी वक्त लगेगा। वैसे इस बीच फिनलैंड और उसका पड़ोसी देश स्वीडन नाटो की सदस्यता लेने वाले हैं। उनके प्रस्ताव पर नाटो के दो सदस्य देश हंगरी और तुर्किश को फैसला लेना है। नाटो की सदस्यता का नियम ही कुछ ऐसा है।
जमीन पर रूसी सैनिकों की मौजूदगी नहीं के बराबर होने के अलावा समुद्र में भी रूसी मौजूदगी खतरे जैसी स्थिति नहीं है। वहां भी रूसी नौसेना बहुत कम नजर आ रही है। अलबत्ता हवाई उड़ान के मामले में रूसी गतिविधियां काफी तेज हैं तो यह यूक्रेन की युद्ध की वजह से हो सकता है।
अब तक रूस की तरफ से ऐसी कोई आक्रामक कार्रवाई भी नहीं हुई है। फिनलैंड का मानना है कि अभी सीमा पर रूसी सेना की जो वर्तमान स्थिति है, उसे पूर्व की हालत में लाने के लिए भी रूस को कमसे कम तीन वर्ष लगेंगे। फिनलैंड और स्वीडन ने यूक्रेन का हाल देखकर ही नाटो की सदस्यता लेने का त्वरित फैसला किया था। इस पर रूस ने गंभीर परिणाम की चेतावनी पहले ही दे रखी है।