नैनीताल । नैनीताल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को सभी नगर पालिका क्षेत्रों में एक -एक विद्युत शव दाह गृह बनाने के निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने सरकार से इससे जुड़ी रिपोर्ट हरेक माह न्यायालय में पेश करने को कहा है। इसके साथ ही कोरोना से जुड़ी बीस जनहित याचिकाओं को अंतिम रूप से निस्तारित कर दिया है।
बृहस्पतिवार को यह निर्देश ज्वालापुर (हरिद्वार) निवासी ईश्वर चन्द्र वर्मा की एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की संयुक्त खंडपीठ ने जारी किया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि कोरोना के समय हरिद्वार में शवों का दाह संस्कार करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो थी।
जिसकी वजह से श्मशान घाटों में शवों को अधजला कर छोड़ दिया जा रहा था। हरिद्वार में अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार ने 25 साल पहले शवों का दाह संस्कार करने के लिए एक विद्युत शवदाह गृह बनाया था। याचिका में कहा गया है कि अभी तक इसका संचालन नहीं किया गया है।
दाह संस्कार सेवा समिति के कार्यकर्ता दुर्गेश पंजवानी ने भी कहा है कि लकड़ी से दाह संस्कार करने में ढाई से तीन हजार रुपये का खर्च आता है। कभी लकड़ियां नहीं मिलने पर लोग शव को नदी में बहा देते हैं जिसकी वजह से पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है।
उनका यह भी कहना है कि अगर विद्युत शवदाह गृह संचालित किया जाता है तो एक-एक शव का दाह संस्कार करने के लिए पांच सौ रुपये का खर्च व एक बस एक घंटा लगता है। लकड़ी से शव का दाह संस्कार करने के लिए तीन से साढ़े तीन घंटे का समय लगता है।
याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका में प्रदेश के कम से कम सभी नगर पालिका के परिक्षेत्र में एक विद्युत शवदाह गृह बनाने का अनुरोध किया है। इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार से राज्य के हरेक नगर पालिका क्षेत्र में एक एक विद्युत शव दाह गृह बनाने के निर्देश दिए हैं।