सुशील उपाध्याय
भारत सरकार के एक उत्साही मंत्री घोषणा करते हैं कि बर्मा से आए शरणार्थी रोहिंग्या मुसलमानों को दिल्ली में आवास दिए जाएंगे। इसके कुछ घंटे के भीतर ही गृह मंत्रालय का स्पष्टीकरण आता है कि ऐसी कोई योजना नहीं है। यह अमृत महोत्सव के 15 अगस्त के आसपास की बात है।
स्वाभाविक तौर पर इन दिनों में हर किसी के मन में आजादी के दिन को लेकर एक अलग तरह का उत्साह रहता है और सामान्य दिनों की तुलना में राष्ट्रगान की ध्वनि ज्यादा बार सुनाई देती है। यह ध्वनि हर तरफ फैली होती है, आम जिंदगी में, मुख्यधारा के मीडिया माध्यमों पर और सोशल मीडिया पर भी।
ध्यान से सुनिए, इस ध्वनि में कुछ ऐसे स्वर सम्मिलित होते दिखते हैं, जो भारत के स्वर नहीं है, लेकिन वे मिलकर इस राष्ट्रगान को गाते हैं। और केवल दिखावे के लिए नहीं गाते, बल्कि आत्मा के गहरे तल से गाते हैं। यह गाने वाले कौन हैं? क्यों गा रहे हैं ? जबकि इनकी तो कोई संवैधानिक या सामाजिक- राजनीतिक बाध्यता भी नहीं है। ये गाने वाले वही लोग हैं जिन्हें अलग-अलग कारणों से अपने पुरखों की धरती छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी है।
सोशल मीडिया पर वायरल हुए राष्ट्रगान के एक वीडियो में सबसे पहले एक अफगानी चेहरा दिखाई देता है। फिर उसके पीछे श्रीलंका की एक तमिल महिला अपना स्वर साझा करती है। साथ में, बर्मा से आए कुछ शरणार्थी चेहरे दिखते हैं और पाकिस्तान से बचकर निकले कुछ हिंदू चेहरे नजर आते हैं। और भी इसी तरह के कई लोग हैं, जिनकी भाषा- संस्कृति, रहन – सहन, शक्ल- सूरत एक दूसरे से पूरी तरह अलग है, फिर भी मिलकर गाते हैं- जन गण मन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता….।
वे इसलिए गाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि एक दिन वे भी इसी जन गण का हिस्सा हो जाएंगे और अंततः भारत ही उनका भविष्य होगा, यही भाग्य विधाता होगा। यदि हालात उनके अनुकूल होते तो वे अपनी धरती पर, अपने मुल्क, अपने वतन में अपने लोगों के बीच, अपने सुरों और स्वरों में अपनी परंपरा को गा और सुन रहे होते, लेकिन उनसे सब छूट गया, लूट गया और अब भारत माता की शरण में हैं।
राष्ट्रगान गाते हुए उनका तालमेल, उनके स्वरों की गहराई और इसकी अंतर्निहित एकजुटता बहुत अद्भुत है, उनके स्वरों की निष्कपटता गहरे तक रोमांचित करती है। इतना रोमांच जो किसी भारतीय मुख से राष्ट्रगान को सुनते हुए कभी नहीं होता। इन्हें सुनते हुए पता ही नहीं लगता कि इनमें कोई पाकिस्तानी है, कोई अफगानिस्तानी अथवा कोई बर्मा या श्रीलंका से आया है! तब, बस एक स्वर सुनाई देता है और वह स्वर भारत माता की आत्मा का स्वर है।
जिज्ञासा का भाव मनुष्य को उन जगहों पर भी लेकर जाता है, जहां आमतौर पर जाने की मनाही होती है या खतरे होते हैं। भला, भारत का राष्ट्रगान सुनते हुए किसी के मन में यह भाव क्यों होना चाहिए कि अटूट भारत के उस टूटे हुए हिस्से, जिसे पाकिस्तान कहते हैं, वहां किन शब्दों में अपने राष्ट्र की अभ्यर्थना यह प्रशंसा की जाती होगी! इस तलाश को सोशल मीडिया ने बहुत आसान कर दिया है।
मैं पाकिस्तान के राष्ट्रगान को ढूंढता हूं तो पता लगता है कि वहां राष्ट्रगान की धुनों को नए सिरे से जीवित करते हुए इसको दोबारा रिकॉर्ड किया गया। राष्ट्रगान की दोबारा रिकॉर्डिंग कोई असामान्य बात नहीं है। भारत में भी ऐसा किया गया है। असामान्य बात कुछ और है। वो यह है कि पाकिस्तान ने अपने राष्ट्रगान को दोबारा रिकॉर्ड करते वक्त इसके वीडियो में उन चेहरों को भी जगह देने की कोशिश की है जो चेहरे समय के साथ गायब हो गए थे या जिन्हें गायब कर दिया गया था।
जैसे-जैसे पाकिस्तान कट्टर इस्लामिक देश बनने की और आगे बढ़ता गया, वैसे ही इसके राष्ट्रगान के साथ जुड़े गैर मुस्लिम चेहरे, उनकी संस्कृति, उनका रहन-सहन आदि सब गायब होते गए। लेकिन ग्लोबलाइज्ड दुनिया में मुख्यधारा में बने रहने की मजबूरी मानिए कि पाकिस्तान को अब अपने राष्ट्रगान के वीडियो में हिंदुओं, सिखों, आदिवासियों और जनजातीय चेहरों को भी शामिल करना पड़ा है।
हालांकि राष्ट्रगान के बोल और उसकी धुनों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यहां तक कि उन म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स में भी कोई बदलाव नहीं किया गया, जिनके साथ 1954 में पाकिस्तान के राष्ट्रगान की रिकॉर्डिंग की गई थी।
अब इन तमाम चीजों को एक साथ मिलाकर देखिए तो बहुत ही उलझा हुआ चित्र बनता है। आसपास के देशों के शरणार्थी भारत में इस उम्मीद में आते हैं कि यहां उनकी जिंदगी वैसी दुश्वार नहीं होगी जैसे कि उनकी अपनी धरती पर है। और यहां आते वक्त उनकी उम्मीद, उनका उत्साह वैसा गहरा होता कि वे ईरान से भगाए गए उन पारसियों की तरह हो जाते हैं जो गुजरात आकर वहां के समाज में दूध – चीनी की तरह घुल मिल गए।
संभव है कि यहां आने वाले लोगों में कुछ शरारती और आपराधिक किस्म के तत्व भी हों, लेकिन हर कोई ऐसा नहीं हो सकता। सच ये ही है कि अफगानिस्तान से भगाए गए या पाकिस्तान से निकाले गए या मजबूरी में श्रीलंका, बर्मा छोड़ने वाले लोग मुख्यतः भारत के जन गण मन का हिस्सा होने आए हैं। इनमें जो खतरनाक तत्व हैं, उन्हें सिस्टम आसानी से चिन्हित भी कर सकता है। और यदि सरकार ऐसा कर पाए तो फिर किसी को यह सफाई देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी कि भारत में किसी रोहिंग्या को या अन्य किसी शरणार्थी को घर नहीं दिए जाएंगे, बल्कि तब राष्ट्रगान के मुख्य स्वरों में सबसे प्रभाव पूर्ण स्वर वह होगा जिसमें न केवल भारत के पड़ोसी देशों, बल्कि दुनिया के अन्य अनेक देशों से आए शरणार्थियों का भिन्न स्वर भी सहज रूप से उसमें समाहित होगा।
तब तुलना करते वक्त हममें से हर कोई यह कह पाएगा कि भारत राष्ट्र के पास वैसी कोई मजबूरी नहीं है कि उसे पाकिस्तान की तरह अपने बिसराए हुए लोगों को ढूंढकर उन्हें राष्ट्रगान की वीडियो का हिस्सा बनाना पड़े।