आईटीबीपी मामला: उच्च न्यायालय से याचिकाकर्ताओं को नहीं मिली राहत

नैनीताल । उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने चीन सीमा से सटे मिलम जोहार में भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की अग्रिम चौकी के निर्माण से जुड़े भूमि अधिग्रहण के मामले में याचिकाकर्ताओं को फिलहाल राहत नहीं दी है और राज्य सरकार से तीन बिन्दुओं पर जवाब मांगा है।

हीरा सिंह पांगती व अन्य की ओर से दायर विशेष अपील पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ में बुधवार को सुनवाई हुई। इस मामले में आदेश की प्रति आज मिली।

सरकार की ओर से अदालत को बताया गया चीन सीमा सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। भारतीय सीमा में बसे अंतिम गांव मिलम जोहार में आईटीबीपी की अग्रिम चैकी के निर्माण के लिये वर्ष 2015 में अधिसूचना जारी कर 2.4980 जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया अपनायी गयी।

जमीन अधिग्रहण के लिये मानकों का पूरी तरह से पालन किया गया। सरकार जमीन अधिग्रहण के बदले में ग्रामीणों को मुआवजा प्रदान करने को तैयार है। अधिग्रहित जमीन बंजर भूमि है और सीमा की सुरक्षा के लिये यह महत्वपूर्ण है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से हालांकि, एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाने और केन्द्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गयी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से यह भी कहा गया कि वे केन्द्र सरकार की अनुसूची के हिसाब से अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिग्रहीत जमीन के बदले में अन्यत्र भूमि उपलब्ध कराने की मांग की गयी।

अदालत की ओर से हालांकि याचिकाकर्ताओं को फिलहाल कोई राहत नहीं दी गयी और सरकार से पूछा है कि पुनर्वास अधिनियम, 2015 के अनुसार प्रदेश में पुनर्वास निदेशक मौजूद है या नहीं? अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि अधिग्रहीत भूमि कितनी है और आईटीबीपी की ओर से इसके बदले में मुआवजा की धनराशि जमा की गयी है या नहीं? गौरतलब है कि इससे पहले उच्च न्यायालय की एकलपीठ ने भी इस मामले में याचिकाकर्ताओं को झटका देते हुए बेहद महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।

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