डॉ रवि शरण दीक्षित
इतिहास विभाग , डीएवी पीजी कालेज देहरादून बौद्धिक ,सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक ,भावनात्मक ,सामाजिक भाव को पर्यावरण के प्रभाव के रूप में हम अपने आसपास महसू स कर रहे हैं lपर्यावरण की उत्कृष्टता हमें सकारात्मक ऊर्जा देती है ,इसके विपरीत पर्यावरण पर दबाव नकारात्मक परिदृश्य को दिखाता है l
भारतीय संस्कृति में जहां पर्यावरण के तत्वों को दैवीय रूप दिया गया है और उनके संरक्षण और सम्मान को बरकरार रखने में सतत प्रयास रहेl 1970 के दशक में प्रदूषण को प्रगति के मानक के रूप में भी देखा गया, जो पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा था , साथ ही साथ संरक्षण पर भी चिंतन शुरू हुआ l
मानव हस्तक्षेप में प्रगति के तत्वों को प्रदूषित करना साथ ही साथ आकाशी तत्वों में ओजोन लेयर में छेद भी पर्यावरण की क्षति के रूप में एक चिंता के विषय में चर्चा किया जाता है l स्रोतों का अत्याधिक दोहन, विकास ,परिवहन, तकनीकी कई ऐसे तत्व है जो पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं ,हालांकि इनके नियंत्रण के लिए भी समुचित प्रयास किए जा रहे हैं l
प्रदूषण करना और नियंत्रण करना इन दोनों चिंतन के बीच में पूरी दुनिया संघर्ष कर रही है कभी कोई किसी पक्ष से सहमत है कोई किसी पक्ष से असहमत है कुल मिलाकर पर्यावरण को हम लगातार क्षति पहुंचाते जा रहे हैं lबीसवीं शताब्दी का एक महत्वपूर्ण तत्व जनसंख्या जो प्रारंभिक समय में लगभग23 करोड़ थी ,और जो अंत तक आते-आते एक अरब के लगभग और वर्तमान में 1.4 अरब पहुंच चुकी है l
बढ़ती जनसंख्या पूरी व्यवस्था पर दबाव डाल रही है, वह चाहे प्राकृतिक संसाधन हो, जनसंचार हो ,प्रशासन हो, व्यवस्था हो, इस बढ़ती जनसंख्या के प्रभाव सभी जगह दिख रहा है, और सीमित संसाधनों का दोहन, समाज में अत्याधिक दबाव पैदा कर रहा है l
साधनों का समुचित प्रयोग ही निश्चित ही हमें 2050 तक या आगे के वर्षों में कुछ ऐसी स्थिति दे पाएगा, जब हम आगे की पीढ़ी को या कहने पर ना मजबूर करें कि हमने यह क्या कर दिया ? इसके लिए आवश्यकता एक सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून की भी है l
पर्यावरण और जनसंख्या का आपसी तालमेल देश को आगामी समय में एक मजबूती प्रदान करेगा, और जहां 2050 तक जाते जाते हम विश्व शक्ति में एक मजबूत स्थान पर खड़े होंगेl