आरबीआई की महंगाई पर मार, दो साल बाद रिजर्व बैंक महंगाई से निपटने को दे रहा तरजीह

मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में ब्याज दरों के बढ़ने के संकेत

आलोक भदौरिया
नई दिल्ली।साल की शुरुआत से ही महंगाई बेलगाम हो चुकी है। अब तक रिजर्व बैंक ने भी महंगाई पर विकास को तवज्जो दे रखी थी। दो सालों के बाद पहली दफा रिजर्व बैंक अब महंगाई से निपटने को तरजीह दे रहा है। भले ही मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट को एक बार फिर छुआ नहीं गया है। लेकिन, ब्याज दरों के बढ़ने का संकेत दे दिया है।
इस बार केंद्रीय बैंक ने एक नई व्यवस्था लागू की है-स्टैंडिंग डिपोजिट फैसिलिटी (एसडीएफ)। अब तक रिजर्व बैंक बाजार से लिक्विडिटी कम करने के लिए रिवर्स रेपो रेट (बैंकों द्वारा रिजर्व बैंक में रखे जाने की दर) में वृद्धि करता था।
एसडीएफ के लागू होने के बाद अब इसकी अहमियत लगभग खत्म हो गई है। एसडीएफ की ब्याज दर 3.75 रखी गई है। यह मौजूदा रिवर्स रेपो रेट के बराबर ही है।
गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि कोरोना महामारी के चलते पिछले दो सालों में कई कदम उठाए गए थे। इससे बाजार में कोई साढ़े आठ लाख करोड़ रुपए मौजूद थे। ताकि, विकास दर को बढ़ावा दिया जा सके। लेकिन, अब धीरे-धीरे इस लिक्विडिटी को कम किया जाएगा।
ताकि, महंगाई को काबू में रखा जा सके। दो से तीन साल का वक्त लग सकता है।
बाजार पहले से ही कयास लगा रहा था कि इस बार महंगाई को थामने के लिए कम से कम रेपो रेट में थोड़ी वृद्धि जरूर करेगा। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। 10वीं दफा रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया।
एक बात हैरत की है कि रिजर्व बैंक ने 2022-23 वित्तीय वर्ष के लिए महंगाई का अनुमान 5.7 फीसद लगाया है। इससे पहले फरवरी में एमपीसी बैठक में अनुमान 4.5 लगाया था। लेकिन, तब से लेकर अब तक हालात काफी बदल गए। रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद क्रूड ऑयल एक बार तो बढ़कर 135 डॉलर प्रति बैरल की बुलंदियों को छू गया था। इसमें थोड़ी गिरावट जरूर आई। पर, यह अब भी 105 डॉलर प्रति बैरल के इर्द-गिर्द घूम रहा है।
ऐसे हालात में इसे रिजर्व बैंक का आशावादी सोच ही करार दिया जा सकता है। केंद्रीय बैंक का मानना है कि छह फीसदी से कम रहने पर ज्यादा चिंता की बात नहीं है।
सवाल उठता है कि जब थोक महंगाई दर पिछले दस माह से दहाई के आंकड़े पर है। फरवरी में तो यह 13.1 फीसद हो गई थी। लागत बढ़ चुकी है। कंपनियों ने अब तक इसे उपभोक्ताओं को ट्रांसफर नहीं किया है।
देर सबेर बढ़ी कीमतों का भार आम उपभोक्ता पर आना ही है। ऐसी हालत में बाजार में मांग पर भी असर पड़ेगा।
पेट्रोल, डीजल की कीमतों में दस रुपए तक का इजाफा अब तक हो चुका है। यह कहां जाकर थमेगा, कहना फिलहाल मुश्किल है। इसकी वजह रूस-यूक्रेन युद्ध का लंबा खिंचना भी है। इस वृद्धि से रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं।
तो उपभोेक्ताओं को राहत कैसे मिलेगी? यहां यह सवाल भी प्रासंगिक है कि जब दुनिया में कुछ साल पहले तेल के दाम गिरे थे। तब केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी कई दफा बढ़ाई। यदि कोरोना महामारी के पूर्व की तुलना करे तो तब केंद्रीय शुल्क पेट्रोल पर 22.98 रुपए प्रति लीटर था।
यह बढ़ कर अब 27.90 रुपए प्रति लीटर हो गया है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जीएसटी संग्रह भी 1.42 लाख करोड़ रुपए हो चुका है। 2021-22 में कुल टैक्स संग्रह 27.06 लाख करोड़ रुपए हुआ है। जबकि, बजट में अनुमान 22.17 लाख करोड़ रुपए का जताया गया था।
ऐसी सूरत में तो लोगों को राहत देने के लिए केंद्र को एक्साइज ड्यूटी में राहत देनी ही चाहिए। हालांकि पिछले साल पेट्रोल, डीजल में मामूली राहत दी गई थी।
अलबत्ता रिजर्व बैंक ने विकास दर का अनुमान जरूर 7.8 फीसद से घटाकर 7.2 फीसद कर दिया है। पर मौजूदा हालात को देखते हुए यह भी आशावादी सोच ही फिलहाल नजर आता है। काबिले गौर है कि केंद्र सरकार ने छह माह तक मुफ्त राशन की योजना बढ़ा दी है। यानी उसे अहसास है कि करोड़ों लोगों की कमाने की क्षमता प्रभावित हुई है। वैसे भी जीडीपी के आंकड़े आम लोगों की बेहतरी का बयान नहीं करते हैं।
युद्ध के कारण सप्लाई चेन बाधित हो रही है। एस एंड पी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई फरवरी के 54.9 से घट कर मार्च में 54 पर आ गया। यह बता रहा है कि कंपनियों के पास ऑर्डर बुक में कमी आई है। दुआ करें कि यह इससे नीचे न जाए।
वैसे महंगाई दुनिया में सरकारों के लिए चिंता का सबब है।
अमेरिका ने भी महंगाई को काबू में रखने के लिए ब्याज दरों में थोड़ी वृद्धि की थी। ब्रिटेन ने ब्याज दरों में सबसे पहले बढ़ोतरी की थी। रिजर्व बैंक ने भी एसडीएफ की नई व्यवस्था लागू कर लिक्विडिटी को कम करने का रास्ता निकाल लिया है। अब उसे दो माह तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है।

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