दिल्ली देहरादून एक्सप्रेस-वे के लिए 11 हजार पेड़ो का चढ़ेगा बली
सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की दिल्ली देहरादून एक्सप्रेस-वे परियोजना को हरी झंडी दी
देहरादून। दिल्ली देहरादून एक्सप्रेस-वे के लिए 11 हजार पेड़ कटने का रास्ता साफ हो गया है। बता दें कि बीते दिनों इस एक्सप्रेस वे के लिए पेड़ काटने के विरोध में दून के कुछ संगठनों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की दिल्ली देहरादून एक्सप्रेस-वे परियोजना को हरी झंडी दे दी है लेकिन इससे होने वाले पर्यावरणीय नुकसान और प्रतिपूरक वनीकरण के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की विशेषज्ञ समिति को पुनर्गठन भी किया है।
परियोजना पूरा होने पर देहरादून से दिल्ली के बीच का सफर का समय आधा हो जाएगा। अभी देहरादून से दिल्ली पहुंचने में पांच से छह घंटे लग जाते हैं।जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने आदेश किया है कि विशेषज्ञ समिति की अध्यक्षता उत्तराखंड के मुख्य सचिव की बजाय केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के महानिदेशक वन सीपी गोयल करेंगे।
एनडीटी ने पिछले साल दिसंबर में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति बनाई थी। पीठ ने एनएचएआई की ओर से पेश एटोर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सलिसिटर जनरल तुषार मेहता की हेस्को(हिमालयन एन्वायरमेंटर स्टडीज एंड कंजरवेशन अर्गेनाइजेशन) के डा. अनिल प्रकाश जोशी को भी समिति में लेने एक सलाह भी मान ली ,जबकि याचिका कर्ता ने इस पर आपत्ति की थी। जोशी सरकारपरस्त पर्यावरणिवद माने जाते हैं।
इसी तरह समिति में पर्यावरण संरक्षकर्ता विजय धस्माना को भी सदस्य बनाया । एनएचएआई व केंद्र का दावा है कि धस्माना ने 380 एकड़ वंजर जमीन को अरावली बायोडाइवर्सिटी पार्क में बदलने में योगदान दिया है। पीठ ने नई समिति को अंडर पास व फ्लाईओवर निर्माण में पर्यावरण संरक्षण के सभी उपायों के कड़ी देखरेख को कहा है।
दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे के लिए सबसे बड़ा रोड़ा उप्र के गणेशपुर से उत्तराखंड में आशारोड़ा के बीच का 20 किमी का हिस्सा था जहां 11 हजार पेड़ काटे जाने हैं। सिटिडंस फर दून ने इसका विरोध किया था।
जिसके बाद एनजीटी ने 13 दिसंबर को परियोजना को रक्षा उद्देश्यों व उत्तराखंड की राजधानी को दिल्ली से जोड़ने वाला अकेला रास्ता बताते हुए उसे हरी झंडी दी थी और पर्यावरण के नुकसान की भरपाई को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 12 सदस्यीय एक विशेषज्ञ समूह बनाया था। जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट अफ इंडिया. फरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ भी रखे गए थे।