नैनीताल। राज्य आंदोलनकारियों के मामले में सरकार के संशोधन प्रार्थना पत्र को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। प्रार्थना पत्र पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की युगलपीठ में सुनवाई की।
इस दौरान अधिवक्ता रमन साह ने अदालत को बताया कि मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय में अपील लंबित है और सरकार इस प्रकरण में पक्षकार है। सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से 1403 दिन देरी से प्रार्थना पत्र पेश करने का औचित्य भी पूछा। हालांकि सरकार इस मामले को कोई ठोस जवाब नहीं दे पायी।
इसके बाद अदालत ने कोई आधार नहीं पाए जाने पर सरकार के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड सरकार की ओर से वर्ष 2004 में राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का फैसला किया गया।
इसके लिये सरकार ने बकायदा शासनादेश भी जारी कर दिया। इस दौरान कई राज्य आंदोलनकारी इससे लाभान्वित हुए और उन्होंने सरकारी नौकरी मिली थी। सरकार के इस फैसले को विरोधियों ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी और एकलपीठ ने सरकार के दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण संबंधी शासनादेश को खारिज कर दिया।
इसके बाद राज्य आंदोलनकारी इस मामले में कूदे और उन्होंने एकलपीठ के फैसले के खिलाफ विशेष अपील दायर कर दी। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की खंडपीठ में इस मामले पर सुनवाई हुई और 21 जून, 2017 को खंडपीठ ने एक राय के बजाय अलग अलग निर्णय दे दिया।
ऐसी स्थिति में इस मामले में नयी बेंच का गठन किया और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की पीठ को इस मामले को सौंपा गया। अंत में उन्होंने भी सरकार के कदम को गलत ठहरा दिया।
अब दो जजों की पीठ ने क्षैतिज आरक्षण संबंधी शासनादेश को खारिज कर दिया। ऐसे में सरकार के साथ दुविधा है कि नौकरी पा चुके आंदोलनकारियों कैसे हटाया जाये। इसलिये सरकार की ओर से दुबारा उच्च न्यायालय खिलाफ हाल ही में संशोधन र्प्रार्थना पत्र पेश किया गया था।