परदेश में पराक्रम

महाराजा तो नाम के हैं। फिर भी कितने आनंद की बात है। वहां भी थे महाराजा, अब यहां भी छायावादी महाराजा। बस, मामूली फर्क है। वहां पैदल हो गए थे। यहां फुल मंत्री बन गये। विमानन मंत्री। ऐसा विभाग, जिसके पास एक भी अपना विमान नहीं है। बगैर विमान के विमानन मंत्री। एयर इंडिया का महाराजा भी मूछों को संभालते हुए, हमेशा स्वागत में खुश रहता था। अब टाटा का चौकीदार बन गया है। क्या करिए, सब दिनों का फेर है।

वीरेंद्र सेंगर
अ रे! अपने घर-गांव और देश में बकैती दिखाई, तो क्या! आप कैसे विश्व गुरु बनोगे? अकेले चना भाड़ तो नहीं फोड़ सकता! उस महान लोकप्रिय महापुरुष को ही सब करना है, तो स्टार मंत्रियों की टोली किस लिए रखी है! एक जगह इज्जत नहीं संभाल सकते? बड़े महाराजा बनते हैं। हैं तो परिवारवादी नेता ही।

वो तो पप्पू जान को ठेंगा दिखाने के लिए अपने पाले में ले आये थे। कहते हैं, लोहा ही लोहे को काटता है। अजब है मध्य प्रदेश। वहीं, कुछ अर्सा पहले गजब हुआ था। लोहा गरम था, सोने में लिपटा सत्ता का हथौड़ा पड़ गया। बस फिर क्या! जनाब। कायाकल्प हो गया। रातोंरात बाना बदला। जुबान बदली। जुमले बदले। खांटी सेकुलर से पक्के वाले हिंदूवादी बन गये। और खरे राष्ट्रवादी। समय कम था। वफादारी का हर टेस्ट पास करने की चुनौती थी। महाराजा ने देर नहीं लगाई।

पूंछ तो थी ही नहीं, फिर हिलाई। जमकर हिलाई। महाराजा तो नाम के हैं। फिर भी कितने आनंद की बात है। वहां भी थे महाराजा, अब यहां भी छायावादी महाराजा। बस, मामूली फर्क है। वहां पैदल हो गए थे। यहां फुल मंत्री बन गये। विमानन मंत्री। ऐसा विभाग, जिसके पास एक भी अपना विमान नहीं है। बगैर विमान के विमानन मंत्री। एयर इंडिया का महाराजा भी मूछों को संभालते हुए, हमेशा स्वागत में खुश रहता था। अब टाटा का चौकीदार बन गया है। क्या करिए, सब दिनों का फेर है।
किस्सा कोताहा ये कि महाराजा पहुंचे एक छोटे देश रोमानिया में। देवदूत की भूमिका में प्रस्थान हुआ था। युद्धग्रस्त यूक्रेन का पड़ोसी हैं, रोमानिया। यूक्रेन ने महाशक्ति से पंगा ले लिया था, अमेरिका के भरोसे। यही गच्चा खा गया। महा व्यापारी देश के सौदे में प्यादा मारा गया। उस व्यापारी देश ने दूर से ही विजयी भव का आशीर्वाद दिया।

यूक्रेन मदद का इंतजार करता रहा। और बर्बाद होता रहा। व्यापारी देश ने जोश भरा। हे यूक्रेन! तुम बहादुर हो। आखिरी क्षण तक लड़ो और इतिहास बनाओ। ये बात तो रही यूक्रेन की। इतिहास में दर्ज होगा कमीनापन कितना ज्यादा था? चने के झाड़ पर चढ़ाने वाले अमेरिका और नाटो देशों का? या रूसी तानाशाह का? तर्क अपने-अपने हैं। कौन आक्रांता है और कौन मेमना?
कई दिनों तक भीषण युद्ध जारी रहा। पूरी दुनिया तमाशबीन बनी रही। यूक्रेन जलता रहा। ढहता रहा। हजारों लोगों की चीखें आसमान को भी विदीर्ण करती रही। आक्रांता फिर भी नहीं पसीजा। इस युद्ध की विभीषिका दशकों तक सुनी और जानी जायेगी। दुनिया में अरबों डालर का हथियार उद्योग और फलेगा-फूलेगा। हर देश में सेना और खर्चीली होगी। दुधमुंहे बच्चों के दूध का बजट भी बारूद की खपत में जाएगा।

आक्रामक राष्ट्रवाद का प्रेत हमारे सहित तमाम देशों में और अट्ठाहास करेगा। देश मजबूत करने के नाम पर गरीब की रोजी-रोटी पर और हमला होगा। सवाल करने वालों को राष्ट्रद्रोही और सेना का मनोबल कम करने वाला लेबिल किया जायेगा।
उत्तरी कोरिया और पड़ोसी देश पाकिस्तान में यह खेल दशकों से खेला जा रहा है। अब सत्ता महलों से यहां भी प्रवचन दिए जा रहे हैं कि रोजी-रोटी बाद में, पहले राष्ट्रवाद। पहले पुरातन संस्कृति का संरक्षण। बाद में ज्ञान विज्ञान। यह भी विमर्श है कि सेना पर सवाल करना बंद करो। सरकार से सवाल न करो।

वो कहें रामराज, तो विश्वास करो। पूरा विश्वास करो। वो कहें, गाय ही आपकी माता का है तो पवित्र मन से स्वीकार करो। अपनी माता का क्या करोगे? यह तुम्हारा निजी मामला है। ये राष्ट्रीय विमर्श का विषय नहीं है भंते! सो, कोई बहस नहीं।
समझो! देश में पहली खांटी राष्ट्रवादी सरकार है। वो जो करती है, उसी में सबकी भलाई है। आपके परम पूजनीय साहेब को एक-न-एक दिन विश्व गुरु बनना है। इसलिए रोजी-रोटी जैसे पिद्दी सवालों पर सरकार को नहीं उलझाओ। उसे बड़े काम करने हैं।

यदि चाहते हो कि पूरे भारत में रामराजआए! इतने वर्षों के बाद अयोध्या में बेमिसाल मंदिर बन रहा है। ये काम पूरा होने दो रामजी अच्छे दिन ला देंगे। भारत ही दुनिया में अव्वल ध्वजा वाहक बनेगा। वो अकेले ही सब कर रहे है। डेमोक्रेसी बचाने के लिए बूथ प्रबंधन तक कर रहे हैं। रोज अठारह घंटे काम करते हैं। महाराजा जैसे रतन हैं, जो रोमानिया जैसे पिद्दी देश में एक शहर के मेयर से मात खाकर आ जाते हैं। दरअसल, यही दरबारी परम सहिष्णु हैं। जो दुनिया को हर हाल में राम दरबार में बदलने वाले हैं।

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