अब वोट के गुणा गणित में उलझे राजनीतिक दल व नेता

नेता एक दूसरे को परास्त करने को तमाम हथकंडे अपनाने के बाद आराम के मूड में भी

  • नतीजों के लिए लंबा इंतजार करना होगा, चुनावी नतीजों की चिंता उनकी नींद भी उड़ा रही
देहरादून। चुनाव में सभी दलों ने चुनाव जीतने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया। एक दूसरे को परास्त करने के लिए तमाम नैतिक अनैतिक हथकंडे अपनाए। इस सबकी थकान के चलते अब शायद वे कुछ आराम के मूड में होंगे लेकिन अभी नई चिंता चुनाव नतीजों की है। असली चुनाव नतीजे 10 मार्च को आने हैं यानी नतीजों के लिए लंबा इंतजार करना होगा।
ऐसे में चुनावी इम्तहान के नतीजों की चिंता उनकी नींद भी उड़ा रही है। इसी चिंता के चलते मतदान खत्म हो जाने के बाद तमाम राजनीतिक दल और नेता वोटों के गुणा गणित में उलझ गए हैं। वे अपने कार्यकर्ताओं, बूथ एजेंटों आदि से फीडबैक ले रहे हैं और अनुमान लगा रहे हैं कि उनकी पार्टी को कहां से कितने वोट मिलने की उम्मीद है।
यह भी देख रहे हैं कि उनके उठाए मुद्दों ने कितने मतदाताओं को प्रभावित किया। अपनी हार या जीत को देखते हुए अब पोस्टल बैलेट व ईवीएम जैसे मुद्दे भी उठने लाजिमी हैं।
असल में अब तक चुनाव आयोग से जो आंकड़ा सामने आए हैं उनसे लग रहा है कि मतदान का प्रतिशत बीते यानी 2012 के चुनाव से कम हो सकता है ऐसे में राजनीतिक दलों की पेशानी पर बल पड़ गए है कि कम मतदान का ऊंट किसको लाभ दे दे। वैसे पिछले यानी 2017 के विधानसभा चुनाव में जब पहली बार 2012 के मुकाबले मतदान प्रतिशत में 1.45 फीसद की कमी आई थी तो तब की विपक्षी पार्टी भाजपा को प्रचंड बहुमत यानी 57 सीटें हासिल हुई थी, जबकि सत्तारुढ़ कांग्रेस महज 11 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार अगर मत प्रतिशत सचमुच गिरता है तो वह क्या गुल खिलाएगा यह सवाल दोनो दलों को परेशान कर रहा है।

तो सजने लगी सीएम की सीट की बिसात

सूबे में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। हालांकि भाजपा ने मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी को ही चेहरे के रूप मे पेश किया है और हरीश रावत भी अनाधिकारिक रूप से कांग्रेस के सबसे बड़ा चेहरे हैं लेकिन कुछ नेता चुनाव बाद पैदा होने वाले हालात से फायदा लेने की कोशिश में है। ऐसे में दोनो दलों के नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी की बिसात बिछाने में जुट गए हैं। हालांकि यह बिसात टिकट वितरण के समय से ही बिछाई जाने लगी थी इसी के तहत कुछ नेताओ के टिकट काटे गए या बदलवाए गए।यही नहीं अपने पक्ष के उम्मीदवारों को जिताने और विरोधियों को हराने के लिए भी खूब तिकड़ में की गईं लेकिन अब पार्टियों के नेता अपने दलों के और निर्दलीय संभावित विधायकों से संपर्क में जुट गए हैं ताकि मौका आने पर सीएम की कुर्सी पर अपने दावे को मजबूत किया जा सके।

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