पटना। बिहार (BIHAR) लक्ष्मी के फेरे में वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश को भी ताक पर रखा जा रहा है। अवैध कमाई से चौकीदार ने स्कॉर्पियो खरीदा है जो पूरे बिहार में चर्चा का विषय बना हुआ है। बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार ने कई बार बैठक भी की है।सीएम ने आला अधिकारियों को कानून व्यवस्था की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए निर्देश भी दे चुके हैं ।
शाम होते ही अपने आवास से बाहर नहीं निकलते अधिकारी
हालत यह है कि कुछ वरीय पदाधिकारियों को छोड़कर शाम ढलने के बाद अधिकांश वरीय पदाधिकारी अपने सरकारी आवास से बाहर निकलते ही नहीं हैं। परिणाम स्वरूप सड़कों पर सिपाही से लेकर दारोगा स्तर के पुलिस अधिकारियों की दादागिरी शुरू हो जाती है। इनके निशाने पर अपराधी नहीं लक्ष्मी होती है। इनका सारा ध्यान अवैध बालू, गिट्टी, शराब, मवेशी लदे ट्रकों पर होता है।
एसपी ने बिहटा में चौकदार को पकड़ा, अवैध कमाई से स्कार्पियो खरीद था
पटना के वरीय एसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो ने बिहटा में बालू लदे ट्रक से वसूली करते होमगार्ड जवान, चालक और चौकदार को पकड़ा। जब चौकीदार की संपत्ति की जांच की गई तो पाया गया कि उसने अवैध कमाई से एक स्कार्पियो गाड़ी खरीद रखी है। अब यह विचारनीय सवाल है कि एक चौकीदार जब अपने अवैध संपत्ति से स्कार्पियो जैसी महंगी गाड़ी खरीद सकता है तो अन्य वरीय पदाधिकारियों के संदर्भ में कुछ भी कहना बेमानी होगा।
बिहार के कई जिलों में अवैध धंधे बाज का मनोबल बढ़ा
बांका, भागलपुर, जमुई में कार्रवाई होने के बावजूद बालू की तस्करी का ना रूक पाना, इसका सबसे बड़ा परिणाम है। इन अवैध धंधेबाजों का मनोबल इतना बढ़ गया है कि अब यह सरकारी वाहन से भी तस्करों के अड्डे पर जाकर वसूली करने से बाज नहीं आते। पीरपैंती थाना क्षेत्र में हाल ही में एक सरकारी वाहन पर सवार कुछ लोग वसूली करते पकड़े गए। लेकिन पुलिस पदाधिकारी इस मामले में मौन धारण किए हुए है। शराबबंदी के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुरू से ही आतुर हैं। इसके लिए उन्होंने हर जिले में एनटी लीकर टाक्स फोर्स का गठन किया। लेकिन इसकी उपलब्धि नगन्य है।
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टास्क फोर्स के सदस्य देशी शराब बनाने और पीने वाले को जेल भेजने में तो सफल हैं पर बड़े-बड़े माफिया पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। बालू हो या शराब सबकी तस्करी के पिछे राजनीतिक दल से जुड़े नेताओं आशीर्वाद निश्चित रूप से प्राप्त होता है। इन सफेद पेशों के धौंस के आगे छोटे-मोटे पुलिसकर्मियों की कौन कहे। बड़े पुलिसकर्मी नतमस्तक रहते हैं। क्योंकि इनके तबादले और पोस्टिंग का जुगाड़ इन्हीं सफेदपोशों के हाथ होता है। साइबर अपराध के मामले में बिहार की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय है।
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हालत तो यह है कि दूसरे राज्यों में साइबर अपराध करने वाले अपराधी बैंक खाते का इस्तेमाल बिहार के ही लोगों का करते हैं। क्योंकि साइबर अपराध को रोकने के मामले में यहां की पुलिस पूरी तरह विफल रही है। ना तो इसके साइबर थाने खुले और न ही इसके रोकथाम के लिए पुलिसकर्मियों को बेहतर प्रशिक्षण दिया गया। पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए चाहे लाख बैठकें हो, जब तक पुलिस की कार्य प्रणाली का बेहतर मॉनिटरिंग नहीं होगा तब तक सरकार की कोई भी योजना सफल नहीं होगी।