उत्तराखंड में सीएम के लिए खट्टे साबित हुए हैं चुनावी अंगूर

राजकिशोर तिवारी
देहरादून। चुनाव के दंगल में सरकार की वापसी का ज्यादा दारोमदार मुख्यमंत्री पर होता है। मुख्यमंत्री के सामने स्वयं के साथ ही पार्टी प्रत्याशियों को जिताने की चुनौती होती है, लेकिन उत्तराखंड में कार्यकाल पूरा करने के बाद चुनाव के अंगूर मुख्यमंत्रियों के लिए खट्टे ही साबित हुए हैं। अब तक भगत सिंह कोश्यारी एकमात्र मुख्यमंत्री रहे हैं जिन्हें विधानसभा चुनाव जीत में जीत मिली।

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उत्तराखंड में अब तक हर विधान सभा चुनाव में सरकार बदली है। प्रदेश में बारी-बारी से भाजपा व कांग्रेस ने राज किया, लेकिन चुनावी रण में जनता के दिल जीतना मुख्यमंत्रियों के लिए आसान नहीं रहा है। पिछले चार में से दो विधान सभा चुनाव में जनता की अदालत में तत्कालीन मुख्यमंत्री फेल साबित हुए।

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2002 में उत्तराखंड के पहले विधान सभा चुनाव में भले ही भाजपा सत्ता से बाहर हो गई थी, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी चुनाव जीत कर जरूर विधान सभा पहुंच गये थे। कपकोट सीट से भगत सिंह कोश्यारी ने 2002 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को 8514 वोटो से हराया।

2002 चुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस ने प्रदेश की कमान नारायण दत्त तिवारी को सौंप दी थी, लेकिन कार्यकाल पूरा करने के बाद नारायणदत्त तिवारी 2007 के चुनावी रण में नहीं उतरे। 2007 में सत्ता परिवर्तन के बाद मेजर जनरल (सेनि.) भुवन चन्द्र खण्डूड़ी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली।

इस दौरान बीच में 2009 से 2011 के बीच भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मुख्यमंत्री की कुर्सी डा. रमेश पोखरियाल निशंक को सौंप दी थी, लेकिन विधान सभा चुनाव से करीब एक साल पहले 2011 में भाजपा ने फिर मेजर जनरल (सेनि.) खण्डूड़ी पर भरोसा जताया। इसके चलते 2012 के विधान सभा चुनाव में खण्डूड़ी है जरूरी नारे के साथ भाजपा चुनाव मैदान में उतरी।

तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल (सेनि.) खण्डूड़ी कोटद्वार विधान सभा क्षेत्र में चुनावी मैदान में उतरे। नतीजा निकला तो कांग्रेस भाजपा से मात्र एक-दो सीट आगे रही है, लेकिन चुनाव मे भाजपा का चेहरा रहे मेजर जनरल (सेनि.) खण्डूड़ी कोटद्वार से चुनाव हार गये। कोटद्वार के रण में मेजर जनरल (सेनि.) खण्डूड़ी को कांग्रेस प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह नेगी से 4623 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।

2012 में मिली जीत के बाद पहले विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2014 में कांग्रेस ने प्रदेश की कमान हरीश रावत को सौंप दी। 2017 में कांग्रेस हरीश रावत के सहारे चुनावी मैदान में उतरी। तत्कालीन हरीश रावत ने दो विधान सभा क्षेत्र हरिद्वार व किच्छा से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन हरीश रावत को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई।

हरिद्वार ग्रामीण सीट पर भाजपा के स्वामी यतीश्वरानंद ने हरीश रावत को करीब 12278 वोटो से हरा दिया, जबकि किच्छा में राजेश शुक्ला ने हरीश रावत को 2127 वोटों से शिकस्त दी। इसके अलावा मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद डा. रमेश पोखरियाल निशंक को विधान सभा चुनाव में जीत मिली।

डा. निशंक ने 2012 के विधान सभा चुनाव में डोईवाला से जीत दर्ज की, जबकि प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे नित्यानंद स्वामी को लगातार 2002 व 2007 के विधान सभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। वहीं मुख्यमंत्री बनाने के बाद नारायण दत्त तिवारी, विजय बहुगुणा, त्रिवेन्द्र सिंह रावत व तीरथ सिंह रावत विधान सभा चुनाव में नहीं उतरे।
2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा से चुनावी मैदान में है जहां से घेरने में कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इन तमाम बाधाओं के बावजूद खटीमा में चुनावी रण जीतने पर पुष्कर सिंह धामी अपने राजनीतिक गुरु भगत सिंह कोश्यारी के बराबरी कर लेंगे। वहीं कांग्रेस प्रचार अभियान समिति के प्रमुख हरीश रावत की साख भी चुनाव में दांव पर लगी है।

हरीश रावत लालकुआं आ से चुनाव मैदान में हैं। यदि रिजल्ट पक्ष में नहीं रहा तो लगातार दो विधान सभा चुनाव हारने वाले मुख्यमंत्री की सूची में शामिल हो जायेंगे।

वर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री रिजल्ट

2002 भगत सिंह कोश्यारी कपकोट से जीत
2007 नारायण दत्त तिवारी चुनाव नहीं लड़ा
2012 भुवन चंद्र खण्डूड़ी कोटद्वार से हार
2017 हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण व किच्छा से हार

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