मिशन 2022 : अकेले दम पर उभरेगी कांग्रेस!

20 साल बाद बिना गठबंधन के चुनाव मैदान में अस्तित्व बचाने की चुनौती

40 फीसद महिलाओं को टिकट देकर चुनावी समर में उतरी कांग्रेस

चाणक्य मंत्र ब्यूरो

नई दिल्ली/लखनऊ। होने को तो उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भी विधानसभा के चुनाव सम्पन्न होने जा रहे हैं। लेकिन, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सिर्फ उत्तर प्रदेश के लोगों में ही नहीं, पूरे देश के लोगों में एक विशेष तरह की उत्सुकता है।

इसकी एक बड़ी वजह यह हो सकती है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों के चलते दिल्ली की सत्ता का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। यही वजह है कि कांग्रेस ने भी इस बार यहां रणनीति बदली है।

प्रियंका गांधी लंबे समय से यूपी की कमान संभाल रही हैं। और लड़की हूं, लड़ सकती हूं के नारे के साथ अन्य दलों के मुकाबले 40 फीसद महिलाओं को टिकट देकर चुनावी समर में उतरी है। यह बात भी काबिलेगौर है कि उसने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं और बिना अन्य दलों के गठजोड़ के अकेले दम पर सत्ता में वापसी का मास्टर स्ट्रोक खेला है।
वैसे तो यूपी में विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी की हालत किसी से छिपी नहीं है। हर चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन पहले से और खराब होता रहा है। इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं क्योंकि पार्टी के कई जिताऊ नेता पाला बदल लिये हैं।

फिर भी इस बार के चुनाव में पार्टी एक ऐसा साहस करने जा रही है जो पिछले बीस सालों में नहीं किया। यूपी की सभी सीटों पर कांग्रेस पार्टी 20 सालों बाद फाइट करने जा रही है।

वैसे तो 1985 के चुनाव में आखिरी बार पार्टी ने सूबे की सभी सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे थे लेकिन, साल 2002 के चुनाव में उसने कुल 403 सीटों में से 402 सीटों पर चुनाव लड़ा था।

साल 1985 में हुआ यूपी विधानसभा का चुनाव वो आखिरी चुनाव था जब कांग्रेस पार्टी ने यूपी में सरकार बनाई थी। तब पार्टी ने कुल 425 सीटें लड़ी थीं। उत्तराखंड के साथ होने के कारण साल 2000 से पहले यूपी में 425 सीटें हुआ करती थी। इनमें से कांग्रेस को 269 सीटें मिली थीं।

यानी पूर्ण बहुमत से कहीं ज्यादा लेकिन पार्टी में कई गुट बन गये थे। नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री रहे। तब से लेकर अब तक पार्टी का ग्राफ गिरता ही चला गया।

अगले ही चुनाव 1989 में कांग्रेस 269 से सिमटकर 94 सीटों पर आ गई थी। 1991 में 46, 1993 में 28 सीटों तक लुढ़क गयी।
1996 में बसपा के समर्थन से पार्टी लड़ी। उसे 33 सीटें मिलीं। 2002 में 25 और 2007 में सिर्फ 22 सीटें मिलीं। बता दें कि 2012 का चुनाव कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर लड़ा लेकिन, ऐतिहासिक पराजय हुई।

कांग्रेस सिर्फ 7 सीटों तक सिमटकर रह गई। इस बार हालात और न बदतर हो जायें। ये कयास इसलिए लगाये जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस के स्थापित कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। फिर भी कांग्रेस ने दम नहीं छोड़ा है।

ये भी पढ़ेंरू- यूपी चुनाव 2022 से पहले कांग्रेस ने खेला ब्राह्मण कार्ड, गायत्री और मधु त्रिपाठी को पार्टी में किया शामिल प्रियंका गांधी के नेतृत्व में लड़ती हुई कांग्रेस की तस्वीर पेश की जा रही है।

इसी क्रम में पार्टी ने प्रदेश की सभी 402 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारने का फैसला किया है। ये 1985 के बाद पहली बार होगा। अब सवाल उठता है कि पार्टी को कितनी सीटों पर जीत मिलती है।

2017 के चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस को बुरी से बुरी हालत में 20 से ज्यादा सीटें मिलती रही हैं। इस बार 2017 का इतिहास भी दोहरा पायेगी पार्टी या नहीं, ये कहना बहुत मुश्किल है।

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