और गैरसैंण जिले की राह ताकते रह गए लोग

गैरसैंण। ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के बाद गैरसैंण जिले के सृजन की राह लोग ताकते रह गए किंतु जनपद सृजन न होने से लोगों की उम्मीदों को झटका लग गया। अब मौजूदा विधान सभा चुनाव में यह मसला एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है।
दरअसल उत्तराखंड राज्य बनने के बाद गैरसैंण स्थायी राजधानी को लेकर ही पहाडी जनमानस आंदोलित रहा है। इसके चलते गैरसैंण जनपद सृजन का मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। वैसे राज्य निर्माण के बाद जब गैरसैंण स्थायी राजधानी का मामला नहीं सुलटा तो गैरसैंण के लोगों ने जनपद सृजन की मांग खड़ी कर दी।

इसके लिए गैरसैंण जिला संघर्ष समिति का भी गठन किया गया। स्थायी राजधानी निर्माण की उम्मीदें परवान नहीं चढी तो लोग वर्ष 2011 से गैरसैंण जिले को लेकर संघर्ष की राह पर उतर पड़े। वर्ष 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने पुरोला, कोटद्वार, रानीखेत तथा डीडीहाट नए जनपदों की घोषणा की तो गैरसैंण के लोग भी जिले की मांग को लेकर उद्वेलित हो उठे।

इसके बाद सरकार ने चारों जिलों की घोषणा को ठंडे बस्ते में डाल दिया। हालांकि 2012 में गैरसैंण जिले के सृजन का मामला बहस का केंद्र बिंदु बना रहा किंतु बात आई-गई हो गई। 2012 में कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आई तो कांग्रेस ने गैरसैंण विधान सभा का कार्ड खेलना शुरू कर दिया। 3 नवंबर 212 को गैरसैंण में कैबिनेट बैठक का आयोजन हुआ तो उसी दिन गैरसैंण में विधान सभा भवन बनाने की ऐतिहासिक घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने की।

3 नवंबर को ही गैरसैंण में आयोजित समारोह में तत्कालीन बदरीनाथ विधायक राजेंद्र सिंह भंडारी ने विधान सभा भवन की घोषणा के साथ ही गैरसैंण जनपद सृजन की मांग भी जोरदार ढंग से उठाई।

इसके तत्काल बाद तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने भी गैरसैंण जनपद की जोरदार वकालत मंच पर ही कर डाली। इसके चलते गैरसैंण जनपद सृजन सियासी चर्चाओं के केंद्र में आ गया। चर्चाओं में आने के तत्काल बाद अल्मोडा जिले की चौखुटिया क्षेत्र पंचायत ने 2014 में गैरसैंण जनपद सृजन का प्रस्ताव पारित किया।

गैरसैंण क्षेत्र पंचायत ने भी लगे हाथों नए जनपद सृजन के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। फिर 9-11 जून 2014 को पहला विधान सभा सत्र गैरसैंण में आयोजित हुआ तो उस वक्त भाजपा ने भी गैरसैंण जनपद सृजन की जोरदार मांग उठाते हुए उसी सत्र में जिला स्वीकृत करने पर जोर दिया।

अल्मोडा के चौखुटिया ब्लाक तथा पौडी जिले की चौथान पट्टी के लोग गैरसैंण जनपद सृजन के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। चमोली जिला पंचायत के सदस्य अवतार सिंह पुंडीर तो इस मामले को लेकर 10 दिन की भूख हड़ताल तक कर गए थे।

विधायक सुरेंद्र सिंह नेगी भी विधायक बनने से पूर्व इस मसले को लेकर जोरदार वकालत करते रहे। 4 मार्च 2020 को बजट सत्र में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी का ऐलान किया तो गैरसैंण जनपद सृजन को लेकर लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ गई।

ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने से गैरसैंण का पक्ष नए जिले के सृजन के लिए मजबूत आधार बन गया। ऐसा इसलिए भी कि सत्र संचालन से लेकर हर तरह की राजधानी में होने वाली गतिविधियों के लिए जिला मुख्यालय गोपेश्वर काफी दूर है।

बहुगुणा विचार मंच के केंद्रीय संयोजक हरीश पुजारी के अनुसार गैरसैंण नए जनपद का सृजन अब ग्रीष्मकालीन राजधानी की बडी जरूरत बन गई है। सरकार को वैसे भी अब गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी क्षेत्र को चौखुटिया तक विस्तारित करना है। इसलिए चौखुटिया तक का क्षेत्र नए जनपद में समाहित होना जरूरी हो गया है।

वर्ष 1997 में मायावती सरकार ने गैरसैंण तहसील का सृजन किया था। 1998 से गैरसैंण तहसील विधिवत संचालित हो रही है। गैरसैंण की विकट भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए अब गैरसैंण के साथ ही आदिबद्री (चांदपुरगढ़ी) तहसील भी अस्तित्व में आ गई है। इसके चलते गैरसैंण जिले की मांग जोरदार ढंग से उठने लगी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी का सरकार फैसला ले सकती है तो गैरसैंण जनपद सृजन में दिक्कत भी नहीं है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि 2011 में चार जिले भाजपा सरकार ने घोषित किए थे।

ऐसे में यदि गैरसैंण जनपद की घोषणा हुई तो चार अन्य घोषित जिलों की मांग भी उठ खडी होगी। गैरसैंण के पैरोकारों का मानना है कि गैरसैंण जनपद का मसला ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के कारण अन्य जिलों की मांग को कमजोर करेगा।

इसलिए गैरसैंण जनपद का सृजन गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के बाद तो होना ही है। इसलिए राजनीतिक दलों को गैरसैंण जनपद सृजन पर मौजूदा चुनाव में अपना इरादा जाहिर कर ही देना चाहिए। हालांकि गैरसैंण, चौखुटिया तथा चौथानपट्टी के लोग गैरसैंण जनपद सृजन की उम्मीदें संजोए हुए हैं किंतु 2011 से वे नए जनपद सृजन की राह ताकते रह गए हैं।

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