नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा कि भूख और कुपोषण से निपटने के लिए उसे सामुदायिक रसोई का एक मॉडल योजना बनानी चाहिए तथा राज्य सरकारों पर इसे अपने स्थानीय परिवेश के मुताबिक लागू करने के लिए छोड़ देना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने भूख और कुपोषण के मद्देनजर पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए देशभर में रियायती दर वाली कैंटीन स्थापित करने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार से मॉडल योजना बनाने को कहा। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक सरकार द्वारा शुरू की गई ‘इंदिरा कैंटीन’ योजना का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्यों को स्थानीय भोजन की आदतों के अनुरूप मॉडल योजना में बदलाव करना पड़ सकता है।
मॉडल बनाते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा सरकार एक मॉडल योजना तैयार कर केंद्र राज्य सरकारों को अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने की संभावना तलाश सकती है। पीठ के समक्ष अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि राज्यों द्वारा भूख से किसी की मौत की सूचना नहीं दी गई है।
पीठ ने उनसे पूछा, राज्यों ने भुखमरी के कारण कोई मौत नहीं होने की सूचना दी है, क्या यह विश्वास योग्य है? पीठ ने कहा कि राज्यों को कुपोषण और भुखमरी से होने वाली मौतों पर दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। पीठ ने अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल से कहा कि केंद्र सरकार को भुखमरी से होने वाली मौतों पर नवीनतम आंकड़े देना चाहिए।
सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी सवाल किया कि चुनावों के दौरान मुफ्त उपहार देने की घोषणा करने वाले राजनीतिक दलों ने भूख और कुपोषण के खिलाफ कुछ क्यों नहीं किया। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने भूख और कुपोषण को दूर करने के लिए देश भर में सामुदायिक रसोई योजना के संचालन के लिए धन की कमी का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र पहले से ही 131 कल्याणकारी योजनाओं को वित्तपोषित कर रहा है।
याचिकाकर्ता की वकील आशिमा मंडला ने अदालत से इस मामले में देश भर में सामुदायिक रसोई के लिए योजना तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का अदालत से अनुरोध किया। शीर्ष अदालत इस मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद करेगी।