भाजपा का चुनावी समर, विरोधी स्वर के बीच सत्ता की आस

धामी के सामने सत्ता परिवर्तन की रवायत तोड़ने और अपनी सीट बचाने की चुनौती

  • उधमसिंह नगर जिले के पंजाबी वोटर इस बार होंगे निर्णायक भूमिका में

डॉ. श्रीगोपाल नारसन, रुड़की।

अब से लगभग 5-6 महीने पहले उत्तराखंड में सत्ता की कमान संभालने वाले मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के लिए साल 2022 का चुनाव सबसे बड़ी चुनौती बन गया हैं। धामी के सामने न सिर्फ सत्ता परिवर्तन की रवायत को तोड़ने की चुनौती है, वहीं उनके लिए अपनी सीट को बचाए रखना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है, क्योंकि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद रहते हुए अब तक मात्र एक नेता ही अपनी विधायकी बचा सके थे, बाकी सबको हार का सामना करना पड़ा है।

यह विडंबना ही है कि एक तरफ उत्तराखंड सरकार कोविड-19 से बचाव के लिए एसओपी जारी कर फिर से मास्क पहनने, दो गज की दूरी बनाने और सैनेटाइजर का उपयोग की सलाह दे रही है। साथ ही, सलाह न मानने पर पुलिस लोगों के चालान भी बड़ी संख्या में कर रही है।

वहीं, पुन: सत्ता की चाहत में हल्द्वानी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हजारों लोगों की रैली में भाग लेते हैं और खुलेआम कोविड नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती है। क्या कानून बनाने वालों को कानून का पालन न करने की छूट मिली हुई है।

यह सवाल हर कोई उठा रहा है। वहीं, चुनाव के मोड पर करोड़ों की योजनाओं के शिलान्यास आम जनता को भ्रमित करने के लिए किए जा रहे हैं। जबकि, राज्य की मूलभूत समस्याओं से मौजूदा सरकार अब भी अनभिज्ञ बनी हुई है।

उत्तराखंड के दो दशक के राजनीतिक इतिहास में साल 2002 में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो कोई भी मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी सीट बचाने में सफल नहीं रहा है। अलबत्ता उपचुनावों जरूर जीत हुई है। ऐसे में 2022 का चुनाव मुख्यमंत्री धामी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है।

आपको बता दें, उत्तराखंड में 21 साल के राजनीतिक सफर में अब तक चार बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और यह पांचवा चुनाव साल 2022 में होने जा रहा हैं। पिछले चार चुनाव रिकार्ड को देखें तो हर पांच साल में कांग्रेस और भाजपा के बीच बारी-बारी से सत्ता परिवर्तन होता रहा है। चूंकि, मौजूदा समय में भाजपा सत्ता में है, इसलिए अब तक की रवायत के हिसाब से कांग्रेस के सत्ता में आने की उम्मीद की जा रही है।
हर पांच साल बाद सत्ता बदलने की चली आ रही परंपरा के तहत भाजपा विरोधी वातावरण बनने और कांग्रेस के पक्ष में युवाओं तक का सुर हो जाने से घबरा कर भाजपा ने अपनी ही सरकार के दो मुख्यमंत्रियों को बदल कर तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर धामी को जुलाई 2021 में कमान सौंपी थी।

भाजपा उन्हें युवा मुख्यमंत्री के रूप में राज्य में प्रोजेक्ट कर रही है, हालांकि सत्ता में आने के बाद से वे चुनावी घोषणाओं को छोड़ कर कोई भी प्रभाव अपना नहीं जमा पाए। और अब उनकी परीक्षा 2022 के चुनाव में होने जा रही है। जिसमें उन्हें सत्ता के साथ-साथ अपनी सीट को भी बचाने की चुनौती है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी भाजपा सरकार और केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने के बजाए कांग्रेस को कोसने में अपना समय लगा रहे हैं। जो उनके लिए आलोचनाओं का आधार बनता जा रहा है।

जब 9 नवम्बर साल 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन उत्तरांचल के रूप में हुआ तो विधायकों की संख्या बल पर भाजपा की अंतरिम सरकार बनी थी, जिसके प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी बनाए गए थे।

लेकिन भाजपा ने 2002 के चुनाव से ठीक पहले नित्यानंद स्वामी को उनके पद से बिना किसी खास कारण के हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बना दिया था और उन्हीं के अगुवाई में भाजपा चुनावी मैदान में उतरी थी जिसका परिणाम भाजपा को अपनी करारी हार के रूप में भुगतना पड़ा।

यानी भगत सिंह कोश्यारी अपनी सत्ता को नहीं बचा सके थे, लेकिन वे अपनी सीट बचाने में सफल रहे। साल 2002 में कांग्रेस सत्ता में आई तो कांग्रेस को विजयश्री का ताज पहनाने वाले तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत के बजाय नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बन गए और पांच साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहे।

लेकिन नारायण दत्त तिवारी ने साल 2007 में विधानसभा चुनाव में नहीं उतर कर किनारा कर लिया जिससे कांग्रेस ने अपनी सत्ता गंवा दी थी। इस चुनाव में उत्तराखंड में भाजपा की सत्ता के वापसी के साथ ही पूर्व सैन्य अधिकारी भुवनचंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने, लेकिन दो साल के बाद साल 2009 में भाजपा ने उन्हें भी उनके पद से हटा कर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था।

उस समय भ्रष्टाचार के तमामों आरोपों की बीच साल 2012 के चुनाव से छह महीने पहले भाजपा ने फिर भुवनचंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बना दिया था।
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा दूसरी बार बनाए गए मुख्यमंत्री खंडूड़ी के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी, लेकिन खंडूड़ी भाजपा को न सत्ता दिला पाए और न ही अपनी कोटद्वार सीट को बचा पाए।

साल 2012 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की तो फिर से मुख्यमंत्री का ताज हरीश रावत के बजाए विजय बहुगुणा को दे दिया गया। लेकिन वे केदारनाथ प्राकृतिक आपदा में राहत कार्यों को नहीं संभाल सके। जिस पर साल 2014 में विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर कांग्रेस ने हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया।

मुख्यमंत्री ने हालांकि विकास कार्यों को गति देने, आपदा राहत कार्यों में जी भरकर मेहनत की और 2017 का विधानसभा चुनाव हरीश रावत के अगुवाई में ही लड़ा गया। लेकिन हरीश रावत दुर्भाग्य से कुमाऊं की किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव हार गए। वहीं, कांग्रेस भी सत्ता से दूर हो गई।

साल 2017 में भाजपा 70 में से 57 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत पाकर सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत बनाये गए। लेकिन त्रिवेंद्र सरकार में उनके कई फैसलों के चलते विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष के लोग भी असंतुष्ट होते चले गए। जिस पर चार साल के बाद भाजपा ने उनका इस्तीफा लेकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन तीरथ भी अपनी कुर्सी पर बहुत ज्यादा दिन नहीं टिक सके और 4 जुलाई को पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया गया।

इससे साफ है कि राज्य में प्रधानमंत्री की घोषणाओं के अनुरूप न तो डबल इंजन चल पाया और न ही भाजपा के चुनावी वायदे ही पूरे हुए। जिसके चलते साल 2022 के विधानसभा चुनाव अब धामी के अगुवाई में ही लडे जाने की भाजपा ने घोषणा की है, जबकि कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की अगुवाई में चुनाव मैदान में कूद चुकी है। ऐसे में धामी को अपनी सीट और सत्ता दोनों को बचाने की चुनौती है।

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी उधमसिंहनगर की खटीमा विधानसभा सीट से दूसरी बार के विधायक हैं और माना जा रहा है कि वह इस बार भी खटीमा सीट से किस्मत आजमाने के लिए उतर रहे हैं। तभी तो सत्ता के सिंहासन पर बैठते ही धामी ने अपनी सीट के लिए विकास के लिए सरकारी खजाना खोल दिया था।

पिछले एक महीने में करीब 400 करोड़ रुपये की विकास की सौगात वे अपनी सीट पर दे चुके हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हल्द्वानी की अपनी जनसभा में उधमसिंहनगर को पानी, सड़क का तोहफा दिया है। वहीं, यदि देखा जाए तो 2017 के विधानसभा चुनाव में धामी मात्र तीन हजार वोटों से कांग्रेस उम्मीदवार भुवन कापड़ी से चुनाव जीते थे।

ऐसे में खटीमा सीट पर इस बार मुख्यमंत्री धामी के लिए जीत आसान नहीं है, क्योंकि किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर उधमसिंह नगर जिले में ही रहा है। इसके अलावा लखीमपुर खीरी घटना का भी सियासी असर इसी जिले में सबसे ज्यादा दिख रहा है, क्योंकि यहां पंजाबी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं।
वहीं, उधमसिंहनगर जिले के कद्दावर नेता यशपाल आर्य भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं। ऐसे में पुष्कर धामी के लिए खटीमा सीट को बचाए रखना आसान नही होगा। तभी तो धामी को अपनी सत्ता और सीट दोनों को बचाए रखना के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है।

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