चुनाव लड़ने व समर्थन को लेकर आपस में भिड़े पंडे-पुरोहित

पंडों के 15 सीटों पर चुनाव लड़ने के ऐलान का अंदर से ही विरोध शुरू

  • चारधाम से जुड़ी पंचायतें व मंदिर समितियों ने निर्णय को एक व्यक्ति का बयान बताया
  • चुनाव के दौरान समर्थन व विरोध पर पंडों के बीच बिखराव की चर्चाएं भी तेज

देहरादून। भाजपा को हराने के लिए 15 सीटों पर चुनाव लड़ने के तीर्थ पुरोहितों की महापंचायत के ऐलान का चारधामों से जुड़ी पंचायतों व मंदिर समितियों ने कड़ा विरोध किया है।

उन्होंने कहा है कि तीर्थ पुरोहित महापंचायत कोई राजनीतिक दल नहीं है। यह भी बताया जा रहा है कि आगामी चुनाव में भाजपा का विरोध करने के मामले में पंडे-पुरोहितों में मतभेद भी बढ़ रहे हैं।

आज के समाचार पत्रों में चार धाम तीर्थ पुरोहित हक हकूकधारी महापंचायत समिति की ओर से 15 सीटों पर भाजपा को हराने के लिए चुनाव लड़ने का समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है। इस समाचार को पढ़ने के बाद पंडे पुरोहितों के एक वर्ग ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है।

मंदिर समितियों की ओर से किया गया विरोध

आज जारी एक बयान में कहा गया है कि 15 सीटों पर चुनाव लडने के निर्णय का चार धाम से जुड़ी पंचायतें व मंदिर समितियों की ओर से विरोध किया गया है। गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव व चारधाम महापंचायत के संयोजक सुरेश सेमवाल ने साफ कहा है कि महापंचायत एक गैर राजनीतिक संगठन है और इसका राजनीति से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है।

उन्होंने कहा कि आज 15 सीटों पर चुनाव लड़ने से संबंधित जो समाचार प्रकाशित हुआ है, उस पर उनकी पंचायत कि कोई सहमति नहीं है। यही नहीं बदरीनाथ के ब्रह्म कपाल तीर्थ पुरोहित पंचायत समिति के केंद्रीय अध्यक्ष उमेश सती ने ने भी इस ऐलान का विरोध किया है।

उन्होने कहा है कि उनकी संस्था गैर राजनीतिक है और केवल धार्मिक मामलों में काम करती है। उन्होंने कहा कि समाचार पत्रों में प्रकाशित बयान बयान सिर्फ एक व्यक्ति का व्यक्तिगत बयान है। तीर्थ पुरोहित महासभा यमुनोत्री धाम के अध्यक्ष पुरुषोत्तम उनियाल ने भी चुनाव लड़ने के किसी निर्णय का विरोध ड्ढिया है। उन्होंने कहा है कि महापंचायत पूरी तरह गैर राजनीतिक संस्था है, इसलिए चुनाव लडऩे जैसी बातें एकदम गलत है।

उल्लेखनीय है कि बृहस्पतिवार को ऋषिकेश स्थित भगवान आश्रम में एक पत्रकार वार्ता करके चारधाम तीर्थ पुरोहित हक हकूकधारी महापंचायत समिति के अध्यक्ष कृष्णकांत कोठियाल, मंत्री हरीश डिमरी और कोषाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण जुगडाण व अन्य ने कहा था कि देवस्थानम बोर्ड को भंग नहीं करने के विरोध में तीर्थ पुरोहित भाजपा को हराने के लिए 15 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेंगे।

उन्होंने कहा था कि वैष्णों देवी व अन्य मंदिरों में अधिक आय इसलिए होती है कि वे बारहों महीने खुले रहते हैं। जबकि यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ व बदरीनाथ धाम सिर्फ छह महीने ही खुलते हैं। यह अलग बात है कि चारों धामों के छह महीने को अलग-अलग जोडक़र पूरे 24 महीने होते हैं और चारों धामों की आय मिलाकर भी वैष्णों देवी के 1 परसेंट भी नहीं होती।

इस पत्रकार वार्ता में महापंचायत समिति के पत्रकार वार्ता में विनोद शुक्ला, देवेंद्र कुमार शर्मा, उमेश चंद्र पोस्ती, दिनेश चंद्र डिमरी, अखिलेश कोठियाल, संतोष द्विवेदी, विजय बगवाणी, देवेंद्र डिमरी, दिनेश डिमरी, मोहन प्रसाद डिमरी, रमेश डिमरी, गौरव डिमरी, प्रशांत, दुर्गा प्रसाद भट्ट, धर्मेंद्र डिमरी आदि मौजूद थे। ज्ञात हो कि चारों धामों के तीर्थाटन को व्यवस्थित और सुविधाजनक करने के लिए सरकार ने वैष्णों देवी की तर्ज पर देवस्थानम बोर्ड का गठन किया है।

बोर्ड बनने के बाद धामों में चढऩे वाला चढ़ावा व दान की राशि पर सरकारी नियंत्रण बढऩे की आशंका के चलते इसका विरोध हो रहा है। हालांकि सरकार ने पंडे-पुरोहितों की शंका का समाधान करने के लिए पूर्व सांसद व बदरी-केदार मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी है, लेकिन ध्यानी ने साफ कर दिया है कि बोर्ड सही बना है और पंडे-पुरोहित अपनी आपत्ति के कारण बतायें।

इसके बाद ध्यानी का भी पंडों की ओर से विरोध हो रहा है। देवस्थानम बोर्ड की राजनीति ने पिछले दिनों उत्तराखंड व सनातनी परंपरा को भी शर्मशार किया था, जब पंडों ने केदारनाथ के दर्शन करने पहुंचे पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा व उनके साथ गये आधा दर्जन लोगों को केदारनाथ के दर्शन नहीं करने दिये और बिना दर्शन किये वापस आने पर विवश कर दिया। तब इस घटना की चहुओर भत्र्सना भी हुई थी, कि आखिर कोई किसी को दर्शन से कैसे रोक सकता है। ऐसे में अब एक पंडे-पुरोहित ही आपस में बिखरते दिख रहे हैं।

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