टेंशन नहीं फैशन की तरह अपनायें मास्क

डाॅ एन.एस.बिष्ट

देहरादून। यह आज भी अटकलबाजी का विषय है कि क्या कोरोना वायरस भी स्वासतंत्र के अन्य वायरसों की तरह मीयादी होगा कि नहीं ? हालांकि यह सच है कि कोरोना का प्रसार शीतकाल में तेजी से होता है तथा इससे होने वाली मृत्युदर अधिक होती है।

गर्मियों के उच्च तापमान, आद्रता और पराबैंगनी किरणों के आधिक्य के चलते वायरस अस्थिर होता है और कोरोना तथा स्वासतंत्र के वायरस संक्रमण के मामलों में कमी आती है।

सर्दियों का कम तापमान कम आद्रता और कम पराबैंगनी विकिरण वायरस को स्थायित्व प्रदान करता है। शुष्कता की वजह से बलगम की बूंदिकायें छोटे वातकणों में टूट जाती है और बंद कमरों की हवा में ज्यादा देर तक तैर सकती हैं। यह प्रक्रिया वायुजनित प्रसार का कारण बन जाती है।

शीत ऋतु के दौरान लोगों के घरों अंदर रहने, मुझे खिड़कियां बंद रखने की प्रवृत्ति होती है। शरीर के स्तर पर शीत में ठहराव के साथ-साथ कई तरह से इम्यूनिटी रोग-प्रतिरोधकता में कमी आने लगती है। स्वासतंत्र की इम्यूनिटी उसके कफ की तरलता और कोशिकाओं द्वारा वायरसरोधी अणुओं के उत्पादन पर निर्भर करती है।

सर्दियों में श्ल़ेशमा से लगी कफ अथवा बलगम की परत सूख जाती है जिससे सूक्ष्म पपनियों द्वारा रोगकणों को बाहर धकेलने में कमी आती है। कम तापमान में विष्णुरोधी रसायन कम पैदा होते हैैं । शीतकाल में होने वाली विटामिन-डी की कमी भी वायरसरोधी इन्टरफेराॅन के उत्पादन में कमी लाती है।

कुल मिलाकर शीतकाल का ठंडा और शुष्क वातावरण न केवल वायरस को स्थायित्व देता है बल्कि श्वासतंत्र की प्रतिरोधकता को कम कर देता है जिससे कि फ्लू और कोरोना जैसे वायरस आसानी से संक्रमण फैला पाते हैं जाड़ो के इस रूखे और कठोर मौसम में संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी है कि मफलर के फैशन के साथ ही मास्क का परिधान भी प्रचलन में लाया जाय।

ऐसा इसलिए कि मास्क के  प्रयोग से मुंह और विशेषकर नाक की हवा गर्म रहती है, तापमान और नमी का क्षय रूक जाता है। मास्क कई प्रकार से स्वासतंत्र के इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है।

कफ को पतला रखने में मदद करने के साथ साथ यह विषाणुरोधी रसायनों के उत्पादन को बढ़ाता है। मुंह तथा नाक की त्वचा की तैलीयता को बनाये रखता है।ये सब लाभ वायरस के आवागमन को रोकने के इतर और ऊपर हैं। एलर्जी और दमा रोग में मास्क कितना सहायक है – वो तो आम चिकित्सकीय जानकारी में शामिल है जरूर है तो मास्क को मेडिकल उपकरण न मानने की। वरन मास्क को एक आवश्यक परिधान की तरह अपनाने की। चश्मा अगर पहनावा का फैशन बन सकता है, मफलर यदि स्टाइलिश हो सकता है- तो महामारी से लड़ाई और शीत से जीत में प्रयुक्त होने वाला मास्क भी आधुनिकता में जुड़ सकता है आधुनिकतावाद को और मजबूत कर सकता है।

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