देहरादून। विरोधाभासों को देखिए और निर्णय लेने की क्षमता का भी आकलन कीजिए। उत्तराखंड में छठी से लेकर 12वीं तक के स्कूल ऑफलाइन पढ़ाई के लिए खुले हुए हैं, लेकिन डिग्री कॉलेज और यूनिवर्सिटी नहीं खुली हैं। यह कमाल का तर्क है कि डिग्री कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले करीब 4 लाख छात्र-छात्राओं को कोरोना का खतरा है, लेकिन स्कूल जाने वाले बच्चों को नहीं है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि उत्तराखंड में डिग्री कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पंजीकृत छात्र-छात्राओं में से लगभग आधे लोगों को वैक्सीन लग चुकी। ऐसे में सरकार चाहे तो वैक्सीन लगवा चुके इन 50 फीसद स्टूडेंटस के लिए ऑफलाइन मोड में इन संस्थाओं को खोल सकती, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। बीते दो महीने से सभी शिक्षक और कर्मचारी भौतिक रूप से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में उपस्थित हो रहे हैं, लेकिन छात्र-छात्राओं के लिए अभी दरवाजे बंद है।
सरकार कह रही है कि सब जगह ऑनलाइन पढ़ाई चल रही, जबकि इसके साथ सच्चाई यह है कि ग्रामीण इलाकों में एक तिहाई से अधिक छात्र-छात्राओं के पास स्मार्टफोन, लैपटॉप और ऐसे अन्य गैजेट उपलब्ध ही नहीं है, जिनके जरिए ऑनलाइन पढ़ाई की जाए। तो फिर इनकी पढ़ाई कहां और कैसे हो पा रही है ? इसका जवाब उच्चाधिकारी ही दे सकते हैं। बीते डेढ़ साल में यह बात पूरी तरह साबित हो चुकी है कि ऑनलाइन पढ़ाई किसी भी रूप में ऑफलाइन पढ़ाई का विकल्प और पर्याय नहीं है।
एक और विरोधाभास देखिए। जिन दिनों ये तमान संस्थाएं ऑफलाइन गतिविधियों के लिए बंद है, उन्हीं दिनों यूनिवर्सिटी द्वारा परीक्षा फॉर्म भरवाए जा रहे हैं और स्टूडेंट्स इन फार्मो की प्रिंट कॉपी कॉलेजों में आकर जमा कर रहे हैं। इसी के समानांतर एडमिशन की प्रक्रिया भी चल रही है। एडमिशन के लिए भी छात्र-छात्राओं की भीड़ डिग्री कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पहुंच रही है। तो फिर इन हालात में यह सवाल खड़ा होगा ही कि आखिर ऑफलाइन कक्षाएं आरंभ कर देने से ऐसा कौन-सा नया खतरा बढ़ जाएगा, जो मौजूदा हालात में मौजूद नहीं है!
निर्णय लेने वाले लोग या तो सारी चीजों को समग्रता में नहीं देख रहे हैं या वे देखना नहीं चाहते। मसलन, सरकार के जिस उच्च अधिकारी के पास उच्च शिक्षा का जिम्मा है, उन्हीं के पास तकनीकी शिक्षा विभाग भी है। रोचक बात यह है कि उत्तराखंड के सभी इंजीनियरिंग कॉलेजों को 23 अगस्त से खोलने का निर्णय लिया गया है और इसके लिए एसओपी भी जारी कर दी गई। शायद सिस्टम में बैठे इन लोगों को लगता है कि इंजीनियरिंग कॉलेज खोलना सुरक्षित है, लेकिन डिग्री कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को खोलना अभी सुरक्षित नहीं है। यह हास्यास्पद स्थिति है।
एक और पहलू देखने लायक है कि विश्वविद्यालय ने विभिन्न उपाधियों के अंतिम वर्ष के स्टूडेंट्स के लिए अगस्त महीने के आखिर से परीक्षा कराने का निर्णय लिया। परीक्षा कार्यक्रम भी घोषित कर दिया गया है। अब सवाल यह है कि यदि परीक्षाएं कराई जा सकती हैं तो फिर ऑफलाइन मोड में कक्षाएं क्यों नहीं हो सकती और यदि ऑफलाइन मोड में कक्षाएं नहीं हो सकती तो फिर ऑफलाइन मोड में परीक्षाएं कैसे हो पा रही है ? विरोधाभासों की संख्या यहीं पर खत्म नहीं होती। सरकार ने कॉलेजों में कक्षाओं के लिए 1 अक्टूबर की तारीख तय की है। वजह, यूजीसी ने 1 अक्टूबर से नया सत्र घोषित करने की बात बात कही, लेकिन उन स्टूडेंटस का क्या होगा जो पिछले सत्रों की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए हैं। क्या इनके लिए भी कक्षाएं 1 अक्टूबर से आरंभ होंगी ? यदि इनकी कक्षाएं 1 अक्टूबर से आरंभ होंगी तो फिर अब अगस्त, सितंबर में एग्जाम किन विषयों का कराया जा रहा है!
आप सारी स्थिति को देखिए तो पता लगेगा कि विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा निदेशालय को जो निर्णय लेने हैं, वे अपने निर्णयों को शासन के निर्देशों की अपेक्षा में लगभग स्थगित रखते हैं। और शासन में जो निर्णय लिए जाने हैं, वहां निर्णय लिए जाने की एक ही प्रक्रिया है कि किसी भी निर्णय को उस वक्त टालते रहो, जब तक कि वह खुद ही निरर्थक ना हो जाए।
यह बात सही है कि बहुत सारे लोग अब भी शिक्षण संस्थाओं को खोले जाने के पक्ष में नहीं हैं। यदि इनकी राय को ध्यान में रखकर उच्च शिक्षण संस्थाएं ऑफलाइन मोड में नहीं खोली जानी हैं तो फिर यह नियम जूनियर हाईस्कूल और इंटर कॉलेजों पर भी लागू होना चाहिए। ऐसा तो बिल्कुल नहीं हो सकता कि कोरोना का सारा खतरा केवल डिग्री कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं तक ही सीमित है और इस खतरे से जूनियर हाईस्कूल और इंटर कॉलेजों के छात्र-छात्राएं ( जिनमें से किसी भी स्टूडेंट को कोरोना की वैक्सीन नहीं लगी है ) इस खतरे से पूरी तरह सुरक्षित हैं।
यहां सवाल एक दो-महीने खराब होने का नहीं है, बल्कि सवाल यह कि महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के वे छात्र-छात्राएं पूरी तरह से पढ़ाई से कटे हुए हैं, जो तुलनात्मक रूप से गरीब परिवारों से आते हैं। सरकारी कायदों की सबसे ज्यादा मार इन्हीं पर पड़ रही है। कोरोना की तीसरी लहर कब आएगी या नहीं भी आएगी, इसके बारे में अलग-अलग अनुमान और अध्ययन सामने आ रहे हैं, लेकिन फिलहाल यह पूरी तरह स्पष्ट है कि उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण बड़ी हद तक नियंत्रित है। अगस्त महीने में बहुत कम केस सामने आए हैं। ऐसे में, नई पीढ़ी को टीकाकरण के साथ-साथ महाविद्यालय तक आने की अनुमति देने पर तत्काल विचार किया जाना चाहिए। ये ही स्टूडेंट्स के हित मे भी है।
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