तालिबान के ‘शेरू’ का दून से चार दशक पुराना नाता
तालिबान के प्रमुख नेताओं में शामिल है शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई
- अस्सी के दशक में भारतीय सैन्य अकादमी में प्राप्त किया सैन्य प्रशिक्षण
- 1982 में पास आउट होने के बाद बतौर लेफ्टिनेंट अफगान नेशनल आर्मी में हुआ था शामिल
देहरादून । अफगानिस्तान पूरी तरह तालिबान के कब्जे में है। वहां पर शरिया कानून लागू करने का ऐलान हो चुका है और तालिबान सरकार का गठन भी जल्द होने वाला है। अफगानिस्तान के मौजूदा हालात देख भारत समेत पूरी दुनिया स्तब्ध ही नहीं बल्कि चिंतित भी है। अब सभी की नजर इस बात पर है कि आखिर किसकी अगुवाई में तालिबान की सरकार गठित होती है। इस बात को लेकर पिछले दो-तीन दिन से तालिबान के कुछ प्रमुख नेताओं की काफी चर्चा भी हो रही है। तालिबान के इन टॉप कमांडरों में से एक है 6 0 वर्षीय शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई जिसका करीब चार दशक पहले देहरादून से नाता रहा है। तब उन्हें ‘शेरू’ नाम से पहचाना जाता था।
जी हां, आपको ये बात जानकर हैरानी होगी। पर बात सौ फीसद सही है। वर्तमान में तालिबान में सेकंड इन कमांड पोजीशन पर तैनात और प्रमुख वार्ताकार यह शख्स अस्सी के दशक में देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) का कैडेट रहा है। अकादमी में डेढ़ साल की प्री-मिलिट्री ट्रेनिंग पूरी करने के बाद ये वर्ष 1982 में पास आउट होकर अफगान नेशनल आर्मी में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुआ था। बताया जाता है कि अफगान रक्षा अकादमी के लिए आयोजित हुई परीक्षा में सफल रहने के बाद आईएमए के लिए उसका चयन हुआ था। अकादमी में सैन्य प्रशिक्षण के दौरान बैचमेट्स उन्हें शेरू नाम से बुलाते थे। भगत बटालियन की कैरेन कंपनी में तब 45 कैडेट सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे। इसी बैच में शामिल रहे मेजर जनरल (सेनि) डीए चतुर्वेदी बताते हैं कि अन्य कैडेटों की तुलना में स्तानिकजई मजबूत कद-काठी और लंबा था। 20 साल की उम्र में ही उसने रौबदार मूंछ रखी हुई थी। उस समय वह किसी कट्टरपंथी विचारधारा से घिरा नहीं था। वह एक औसत अफगान कैडेट था जो अकादमी में प्री-मिलिट्री ट्रेनिंग प्राप्त कर रहा था।
अकादमी से पास आउट होने के बाद वह बतौर लेफ्टिनेंट अफगान नेशनल आर्मी में शामिल हुए और 14 साल तक आर्मी में तैनात रहे। तब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। वर्ष 1996 में सेना छोड़ने के बाद वह तालिबान में शामिल हो गए। तालिबान को 2001 में सत्ता से हटाए जाने के बाद वह कतर की राजधानी दोहा में रह रहे हैं। स्तानिकजई को कट्टर धार्मिक नेता कहा जाता है। वर्ष 2015 में उन्हें तालिबान के दोहा स्थित राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख बनाया गया। जिसके बाद उन्होंने अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता में भी हिस्सा लिया। इसके अलावा वह अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते में भी शामिल रहे। स्तानिकजई जातीय रूप से पश्तून है। तालिबान की नई सरकार में अब उन्हें किस पद पर रखा जाएगा फिलहाल इसकी जानकारी सामने नहीं आई है।
सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा व तेज तर्रार
तालिबान के अन्य प्रमुख नेताओं में शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई ऊर्फ शेरू को अधिक तेज तर्रार व समझदार माना जाता है। इसकी वजह यह कि अन्य की तुलना में वह ज्यादा पढ़े-लिखे हैं। भारत में उन्होंने अंग्रेजी सीखी थी। राजनीतिक विज्ञान में मास्टर डिग्री भी उन्होंने हासिल कर रखी है। इसके अलावा सेना में रहते हुए कई कोर्स भी किए हुए हैं। यही नहीं पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी उन्होंने ट्रेनिंग ली हुई है। जबकि तालिबान के अन्य नेताओं ने अफगानिस्तान या पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ाई की हुई है।
71 की जंग के बाद से अफगान कैडेटों को मिल रही ट्रेनिंग
भारतीय सैन्य अकादमी में देश के अलावा 30मित्र देशों के कैडेटों को भी सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद अफगानिस्तान के कैडेटों को भी अकादमी में प्री-मिलिट्री ट्रेनिंग मिलनी शुरू हुई। तब से अब तक अफगानिस्तान के एक हजार से अधिक कैडेट सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर पास आउट हो चुके हैं। वर्तमान में भी अस्सी अफगान कैडेट आईएमए में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। हालांकि अफगानिस्तान में बदली परिस्थितियों के बीच इन सभी का भविष्य फिलवक्त अधर में हैं।