रुडक़ी। सांप के डंसने पर शीघ्रता से कुशल एवं योग्य चिकित्सक को दिखाना चाहिए। यदि जल्दी ही मरीज कुशल चिकित्सक की देखरेख में पहुंच जाता है तो उसके बचने की 90 प्रतिशत तक संभावना बढ़ जाती है। चिकित्सकों की मानें तो केवल 20 प्रतिशत सांपों के डसने पर ही मौत की संभावनाएं अधिक रहती हैं, जबकि 80 फीसदी सांपों के डसने पर मरीज को बचाया जा सकता है, बशर्ते परिजन झाड़ फूंक करने वालों के पास मरीज को न ले जाकर कुशल चिकित्सक के पास ले जाएं। बरसात के मौसम में सर्पदंश का खतरा मंडराने लगता है। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में सांप के डसने की घटनाएं सामने आने लगी हैं। जिले में औसतन साल भर में करीब 15 से 20 मरीज ही सर्पदंश से संबंधित आते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि सांप के डंसने पर अधिकांश लोग झाड़ फूंक के चक्कर में पडक़र समय बर्बाद करते रहते हैं। इससे मरीज की जान को अधिक खतरा रहता है। बारिश का दौर शुरू होते ही सांप नजर आने लगते हैं। इसके साथ ही सांप के डसने की घटनाएं भी सामने आने लगती हैं। झाड़ फूंक करने वालों से केवल वे ही मरीज बचते हैं, जिनको नॉन पॉइजनिंग सांपों ने डंसा होता है। जहरीले सांपों के डसने पर मरीज को पैरालिसिस, हार्ट फेल आदि की समस्या होने पर ही मौत हो जाती है। चिकित्सक साबिर के अनुसार बारिश का दौर शुरू होते ही सांप नजर आने लगते हैं। सर्पदंश के इलाज को लेकर तरह-तरह की बातें कही जाती हैं। उन्होंने बताया कि यदि स्थिति स्पष्ट हो जाए कि किस प्रकार के सांप ने डसा है और अगर एक घंटे के भीतर मरीज चिकित्सक के पास पहुंच जाए तो उसे बचाया जा सकता है। डॉ. विनय कुमार ने बताया कि सांप की पहचान न होने पर डॉक्टरों को लक्षणों का इंतजार करना पड़ता है। इसी वजह से कुछ लोग तो सांप को मारकर बोरे में भरकर ले जाते हैं, लेकिन ऐसा करने की जगह आप सांप का फोटो भी खींचकर डॉक्टर को दिखा सकते हैं। उन्होंने बताया कि सर्पदंश वाले अधिकांश मरीजों में मौत का सबसे बड़ा कारण तुरंत इलाज न मिलना होता है। हमारे देश में सांपों की लगभग 236 प्रजातियां पाई जाती हैं।