नहीं रहे ‘पर्यावरण गांधी’ सुंदरलाल बहुगुणा

देहरादून। चिपको आंदोलन के प्रणेता एवं विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे। कोरोना संक्रमण की चपेट में आने के बाद पिछले कई दिनों से ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उपचार चल रहा था। 94 वर्षीय सुंदरलाल बहुगुणा ने शुक्रवार (21 मई) को एम्स में अंतिम सांस ली।

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि चिपको आंदोलन को जन जन का आंदोलन बनाने वाले सुंदरलाल बहुगुणा जी का निधन न केवल उत्तराखण्ड और भारतवर्ष बल्कि समस्त विश्व के लिये अपूरणीय क्षति है। उन्होंने कहा कि ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान देंए और शोकाकुल परिजनों को धैर्य व दुख सहने की शक्ति प्रदान करें।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी पर्यावरणविद् और पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक सराकारों और पर्यावरण के क्षेत्र में आई इस रिक्तता को कभी नहीं भरा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि हम सभी मिलकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लें, यही सही माइनों में उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

आप पिछले कई सालों से हिमालय में वनों के संरक्षण के लिए लड़ रहे थे। चिपको आंदोलन के प्रमुख सदस्य होने के साथ साथ आपने 1980 के दशक से शुरू होकर 2004 के शुरू में एंटी टिहरी डैम आंदोलन की अगुवाई भी की। यह बात भी काबिलेगौर है कि आपने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को भी अपना समर्थन दिया था। भले ही आज सुंदरलाल बहुगुणा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन पर्यावरण संरक्षण की उनकी सोच को आगे बढ़ाने की दरकार है।

‘पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है’ : बहुगुणा

आपके अगुआई में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में साल 1973 में प्रारम्भ हुआ पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन ‘चिपको आन्दोलन’ का घोषवाक्य था-
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
उक्त पंक्तियों से सहज ही समझा जा सकता है कि आधुनिक प्रचार माध्यम न होते हुए भी एक छोटे से गांव से पर्यावरण को लेकर छेड़ी गई मुहिम देखते ही देखते देश-दुनिया में सुविख्यात हो गया।
‘पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है’, आपकी इन बातों से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह आप पर्यावरण संरक्षण के पक्षधर थे। आज जब चारों तरफ कोरोना का कहर है और आक्सीजन की कमी के कारण कोरोना से जंग जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है, ऐसे में आपका कथन कि पर्यावरण हमारी स्थाई सम्पत्ति है, प्रासंगिक है और सभी के लिए संदेश भी कि पर्यावरण की उपेक्षा करके विकास की चाह किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं।

 

1 Comment
  1. Shivangi Singh says

    Prasiddh paryavaranvid, Sh. Bahuguna ji ka jana ek shati hai. Dukhad.Vinamr shraddhanjli.

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