…तो फिर अस्तित्व में लौट आएगी बीकेटीसी

गोपेश्वर। तो क्या चारधाम देवस्थानम बोर्ड के अस्तित्वहीन होने के बाद अब श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी)  अस्तित्व में आएगी। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के शुक्रवार को चारधाम देवस्थानम बोर्ड से 59 मंदिरों को मुक्त करने के ऐ लान से तो इसी तरह के संकेत मिल रहे है।
बताते चलें कि चारधाम देवस्थानम बोर्ड बनने से पूर्व तक श्री बदरीनाथ तथा केदारनाथ मंदिरों का संचालन 1939 में बने एक्ट के तहत श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के द्वारा संचालित हो रहा था। इसी तरह गंगोत्री तथा यमुनोत्री मंदिरों का संचालन स्थानीय लोगों की समिति के माध्यम से चल रहा था। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड के अस्तित्व में आने के बाद 89 साल पुरानी बीकेटीसी का अस्तित्व इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया था।

2019 उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम बोर्ड पारित हुआ था

इसके साथ ही गंगोत्री तथा यमुनोत्री मंदिरों  की व्यवस्था भी गुजरे जमाने की बात होकर बोर्ड के अधीन आ
गई थी। दरअसल राज्य में हिंदुओो के प्रसिद्ध   धाम बदरीनाथ तथा केदारनाथ की यात्रा प्रबंधन व्यवस्था वर्ष
1939 से श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति  के द्वारा संचालित हो रही थी। इसी तरह यमुनोत्री तथा
गंगोत्री मंदिरों की प्रबंधन व्यवस्था स्थानीय लोगों द्वारा   संचालित की जा रही थी।
राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए उत्तराखंड चार धाम  देवस्थानम बोर्ड से संबंधित
विधेयक विधान सभा से पारित करवाया था और 15 जनवरी 2020 को इस आशय का गजट नॉटिफिकेशन भी जारी कर दिया था। देवस्थानम बोर्ड के गठन के साथ ही मुख्य कार्यकारी अधिकारी   के पद पर अखिल भारतीय स्तर के आईएएस अधिकारी रविनाथ रमन की नियुक्ति के साथ हीफरवरी 2020  में समूची व्यवस्था बोर्ड के अधीन आ गई थी।

 ब्रिटिश हुकूमत ने श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति का गठन किया था

इसके चलते वर्ष 1939 से चली आ रही श्री बदरीनाथ केदारनाथ  मंदिर समिति का अस्तित्व भी समाप्त हो गया। अंग्रेजी हुकूमत के दौर में पूजा और प्रशासनिक व्यवस्था बनाए जाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति का गठन किया था। देवस्थानम प्रबंधन विधेयक बनने के बाद बीकेटीसी भी इतिहास के पन्नों में सिमट गई। बीकेटीसी की प्रशासनिक व्यवस्था  के लिए पहले सचिव/मुख्य कार्याधिकारी प्रताप सिंह चौहान रहे थे। बीकेटीसी के 81 साल के इतिहास में 30   से अधिक मुख्य कार्याधिकारी यहां तैनात रहे। हालांकि बीकेटीसी 1941 में धरातल पर उतरी थी। 1964 में   सचिव का पद समाप्त कर मुख्य कार्याधिकारी का पद सृजित किया गया था। सनातन धर्मी को समिति का  अध्यक्ष बनाए जाने की व्यवस्था अंग्रेजी हुकूमत के दौर में भी थी जो बोर्ड बनने से पहले तक इसी विधान पर   चलती रही। सरकार ने उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम बोर्ड का गठन किया तो इसमें बदरीनाथ, केदारनाथ,   यमुनोत्री, गंगोत्री समेत 59 मंदिरों को बोर्ड के अधीन लाया गया। वैसे विधेयक के पारित होने के बाद हक   हकूकधारी एक्ट की खिलाफत करते आ रहे हैं किंतु सरकार बोर्ड को लेकर रोलबैक को तैयार ही नहीं हुई।
बीकेटीसी के अधीन काम कर रहे करीब 700 अधिकारी और कर्मचारी भी बोर्ड में समायोजित हो गए थे।
इसके चलते बीकेटीसी के अधिकारी कर्मचारी बोर्ड के अधीन काम कर रहे थे। हालांकि राज्य सरकार का
दावा  था कि देवस्थानम बोर्ड से चार धाम यात्रा व्यवस्था और सुदृढ होगी। इससे पुजारियों तथा
हकहकूकधारियों के   हकहकूक कतई प्रभावित नहीं होंगे। फिर भी हकहकूकधारी हैं कि सरकार के इस
फैसले से भविष्य को लेकर   आशंकित रहे। राज्य में गठित उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम बोर्ड तिरूपति
तिरूमाला देवस्थानम ट्रस्ट तथा श्री  माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर गठित किया गया।यह अलग बात है कि तिरूपति तिरूमाला तथा   वैष्णो देवी में हकहकूकधारियों के हक हकूक प्रभावित होने के खतरे नहीं थे। हालांकि चार धाम देवस्थानम  बोर्ड में हेमकुंड साहिब तथा पीरान कलियर को शामिल नहीं किया गया है तो इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि  केवल हिंदू मंदिरों को ही सरकारी नियंत्रण में क्यो लिया
गया। इसी बात को हकहकूकधारी मुद्दा बनाए रहे। अब सीएम तीरथ सिंह रावत द्वारा बोर्ड के अधीन 51 मंदिरों को मुक्त करने की घोषणा से तो चारधाम देवस्थानम बोर्ड अस्तित्वहीन हो जाएगा। इसके चलते अब एक बार फिर बीकेटीसी अस्तित्व में लौट आएगी।

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