पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में मतदान करवाये जाने को लेकर चुनाव आयोग विपक्षी दलों के निशाने पर आ गया है……
रणविजय सिंह
चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का शंखनाद कर दिया है। तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी में मतदान 6 अप्रैल को एक चरण में होगा, जबकि असम में तीन चरणों तथा पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में मतदान करवाया जायेगा। चुनाव की घोषणा के साथ ही पक्ष और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में मतदान करवाये जाने को लेकर चुनाव आयोग विपक्षी दलों के निशाने पर आ गया है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रदेश में आठ चरणों में चुनाव करवाने को गलत ठहराया। उन्होंने ये आरोप भी लगाया कि ये सब बीजेपी का किया-धरा है। वहीं, प्रदेश के अन्य राजनीतिक दलों ने भी चुनाव प्रक्रिया को लंबा खींचने को गलत बताया है। दूसरी तरफ, भाजपा पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर साल भर से शिकायतें कर रही है। बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए पश्चिम बंगाल में ज्यादा से ज्यादा अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की जानी चाहिए, ताकि लोग निर्भीक होकर वोट डाल सकें। चुनाव आयोग ने करीब चार-साढ़े चार महीने पहले बिहार में भी छह चरणों में चुनाव करवाया था। आयोग का तर्क था, कि कोरोना के चलते सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करवाने के लिए चुनाव छह चरणों में करवाये गए थे। उस समय भी विपक्षी दलों के नेताओं ने छह चरणों मे मतदान करवाने पर सवाल उठाये थे, लेकिन शांतिपूर्ण मतदान संपन्न होने पर ये सब सवाल बेमानी हो गये।
बिहार और बंगाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति लगभग एक जैसी ही है। माना जा रहा है कि बंगाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर भाजपा नेताओं की ओर से नकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश की गयी है। इसी कारण चुनाव आयोग ने आठ चरणों में मतदान करवाने की घोषणा की है। एक राज्य में इतनी लंबी चुनाव प्रक्रिया के चलते 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद करने का कानून निष्क्रिय होकर रह जाता है। अक्सर देखने में आया है कि जिन क्षेत्रों में मतदान हो रहा होता है ठीक उसके साथ लगते क्षेत्रों में बड़ी रैलियों को बड़े नेता संबोधित कर रहे होते हैं। इसके पीछे मतदाताओं को प्रभावित करने की मंशा से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन लोकतंत्र में अंतिम और वास्तविक शक्ति मतदाता में निहित है और उसका फैसला ही सर्वोपरि है। ऐसे में संवैधानिक संस्थानों की गरिमा बनायें रखने की जिम्मेदारी तमाम राजनीतिक दलों की भी है। संवैधानिक संस्थानों के मुखियाओं पर देश के 130 करोड़ लोगों के भरोसे को कायम रखने की जिम्मेदारी है। इसलिए उन्हें किसी भी तरह के दबाव में नहीं आना चाहिए। भारत के चुनावी इतिहास को देखते हुए ये यकीन के साथ कहा जा सकता है कि आरोप-प्रत्यारोपों से प्रभावित हुए बिना चुनाव आयोग एक बार फिर निष्पक्ष चुनाव संपन्न करवाने की कसौटी पर खरा उतरेगा।
पांच राज्यों में जहां चुनाव होने हैं उनमें पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सत्ता में है और भारतीय जनता पार्टी चुनौती बनकर उभर रही है। चुनावी मुकाबले की दृष्टि से देखा जाये तो सबसे रोचक टक्कर पश्चिमी बंगाल में ही होगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में से 18 सीटें जीतकर भाजपा नेताओं के हौसले बुलंद हैं। उन्हें लगता है कि जिस तरह दस साल पहले ममता बनर्जी ने लंबे समय से सत्ता पर काबिज वामपंथी दलों को उखाड़ दिया था, उसी तरह अब तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया जा सकता है। कहने का तात्पर्य ये है कि भाजपा पूरी ताकत के साथ बंगाल के चुनाव में उतर रही है। जिस तरह के हालात बन रहे हैं उनमें कांग्रेस और वामपंथी दलों की कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं दिखाई दे रही। दूसरी तरफ, असम में भाजपा की सरकार है और ये पुनः सत्ता में आना चाहती है। जबकि कांग्रेस चार अन्य दलों के साथ गठबंधन बनाकर कड़ी चुनौती दे रही है। कांग्रेस ने एआईयूडीएफ, सीपीआई, सीपीआई (एम एल) और आंचलिक गंगा मोर्चा से गठजोड़ किया है। असम में सीएए और एनआरसी को लेकर आंदोलन भी हुआ था। कुछ समय पहले ही कांग्रेस ने प्रदेश में मिशन-80 शुरू किया था। सीटों को लेकर अगर गठबंधन में कोई टूट नहीं हुई तो इस बार असम भाजपा के साथ से खिसक सकता है।
केरल की बात की जाए तो वहां भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां सत्तारूढ़ वामपंथी पार्टियों को चुनौती देने में सक्षम नहीं दिख रहीं। हालांकि, भाजपा वामपंथ के इस आखिरी गढ़ को ढहाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। लेकिन यहां भाजपा तरकश में तीरों का अकाल पड़ गया लगता है। तमिलनाडु में भाजपा सत्तारूढ़ अन्ना द्रमुक की सहयोगी है। वहां पर द्रमुक और कांग्रेस गठबंधन अन्नाद्रमुक भाजपा गठजोड़ को खासी टक्कर दे सकता है। वहीं, केंद्र शासित राज्य पुदुचेरी में चुनाव की घोषणा से चंद रोज पहले चार कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे देने से नारायणसामी की सरकार गिर गयी थी। वहां भाजपा के सरकार बनाने से इंकार करने के बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इससे पहले राष्ट्रपति ने किरण बेदी को हटकर आरएसएस की पृष्ठभूमि वाली तमिलिसाई सौंदराराजन को उपराज्यपाल पद की शपथ दिला दी गयी। राजनीतिक संकट के दौर में उपराज्यपाल का अकारण हटाया जाना सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि, लंबे समय से उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव चल रहा था। इसके चलते जनकल्याण की कई योजनाएं अटकी हुई थीं, जिससे जनता में किरण बेदी के प्रति रोष बढ़ रहा था और नारायणसामी को जनता की सहानुभूति मिल रही थी। इसी कारण किरण बेदी को हटाया गया। पुदुचेरी के घटनाक्रम से साफ है कि कुछ विधायकों के इस्तीफे दिलवाकर भी चुनी हुई सरकार को गिराया जा सकता है। इस पर दल-बदल विरोधी कानून भी लागू नहीं होता। चुनाव में प्रदेश की जनता की सहानुभूति नारायण सामी के साथ रही तो भाजपा के मंसूबों पर पानी फिर सकता है, लेकिन राष्ट्रपति शासन के तहत चुनाव होने से भाजपा को कुछ फायदा हो सकता है।