- तमाम उठापटक के बीच घोषित तिथि पर ही चुनाव की तैयारियां शुरू
- 27 मार्च से 29 अप्रैल तक मतदान और 2 मई को घोषित होंगे परिणाम
आफरीन हुसैन, कोलकाता
West Bengalपश्चिम बंगाल में इस बार के विधानसभा चुनाव 8 चरणों में संपन्न कराने का फैसला चुनाव आयोग ने लिया है। लेकिन इस फैसले से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी काफी नाराज हैं। ममता बनर्जी इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मुख्य रूप से जिम्मेदार मानती हैं। हालांकि, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां 8 चरण में पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव को शांतिपूर्वक संपन्न कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मान रही हैं। इन तमाम उठापटक के बीच चुनाव आयोग द्वारा घोषित तिथि को ही अब पश्चिम बंगाल में चुनाव की तैयारी शुरू कर दी गयी है। पश्चिम बंगाल में मतदाता कुल 23 दिन तक अलग अलग दिन अपने वोट का प्रयोग करेंगे। मतदान की पूरी प्रक्रिया आगामी 27 मार्च से शुरू होकर 29 अप्रैल तक चलेगी। साथ ही, चुनाव परिणाम की घोषणा भी 2 मई को हो जाएगी।
दरअसल, पहली बार पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराए जाएंगे। अतीत में पश्चिम बंगाल में संपन्न चुनावों पर गौर करें तो वर्ष 2006 में कुल पांच चरणों में चुनाव संपन्न हुए थे। वर्ष 2006 में संपन्न हुए चुनाव की शुरुआत 17 अप्रैल से शुरू हुई और 8 मई को खत्म हुई थी। 11 मई 2006 के विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा को भारी सफलता मिली। यह वह दौर था जब वाममोर्चा बिना ज्योति बसु के चुनाव मैदान में उतरी और उसे कामयाबी भी मिली। बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुआई में वाममोर्चा की सरकार भी बनी। उसके बाद वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में 6 चरणों में चुनाव संपन्न हुए। यह चुनाव न केवल वाममोर्चा के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि तृणमूल कांग्रेस के लिए भी काफी अहम भी रहा है। पश्चिम बंगाल की जनता ने वर्ष 2011 के चुनाव परिणामों में वाममोर्चा को पूरी तरह से खारिज कर दिया। इतना ही नहीं, 34 साल से चला आ रहा वामफ्रंट का शासन भी उजड़ गया। वहीं से तृणमूल सत्ता पर काबिज हुई। सरकार बनाने के लिए कुल 148 विधायकों की जरूरत थी, जबकि ममता बनर्जी की पार्टी के पास 185 विधायक थे और अंततः तृणमूल कांग्रेस बंगाल की सत्ता पर काबिज हुई और यह वह साल था जब ज्योति बसु के उत्तराधिकरी और तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य यादवपुर सीट से करीब 17 हजार मतों से चुनाव हार गए थे। उसके बाद से ही तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में और ज्यादा सशक्त हो गयी।
वर्ष 2016 में पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस को जबरदस्त सफलता मिली। मतलब तृणमूल की झोली में 209 और 2 सीटें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के हिस्से में रहीं, यानी दोनों को मिलाकर 211 सीटें मिलीं। विपक्ष पूरी तरह से धराशाई हो गया। कुल 46 सीटें ही विपक्ष लेने में कामयाब रहा जिसमें कांग्रेस 23, सीपीएम 19, फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी के खाते में 2-2सीटें आईं। वहीं, भाजपा को अकेले 27 सीटें मिलीं। इस बार के विधानसभा चुनाव में क्या होगा। यह तो बताना काफी मुश्किल है। लेकिन जिस तरह से आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है उससे एक बात साफ हो गयी है कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के लिए पश्चिम बंगाल का यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा कांग्रेस और वाममोर्चा की भी असली ताकत का पता चलेगा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ साफ कहा है कि भाजपा अपनी ताकत का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल चुनाव में इस्तेमाल करना चाह रही है। वहीं, चुनावी आंकड़ों के विशेषज्ञ पीके यह मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में आवाम की बेटी (ममता बनर्जी) को ही कामयाबी मिलेगी।
सुवेंदू अधिकारी जो हाल ही में तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए हैं, का कहना है कि चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में शांतिपूर्वक चुनाव संपन्न कराने के मकसद से ही 8 चरणों में चुनाव संपन्न कराने का फैसला लिया है। यह तो एकदम सही फैसला है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता श्रमिक भट्टाचार्य का कहना है कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की संभावना है। इसलिए 8 चरणों में चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव संपन्न कराने का फैसला लिया है। सीपीएम के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम और कांग्रेस के नेता अब्दुल मन्नान दोनों कहना है कि पश्चिम बंगाल में बूथ दखल की संभावना है। अतीत में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भी ऐसा ही हुआ है। इसलिए 8 चरणों में ही चुनाव कराने का फैसला उचित है।