Tampering with nature all over the world in the name of developmentविकास के नाम पर पूरी दुनिया में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जाती है। लेकिन हिंदुकुश और हिमालयन क्षेत्र में यह दुनिया के बाकी हिस्सों से कुछ ज्यादा ही होती है। आम तौर पर यह छेड़छाड़ सड़कें बनाने और बिजली परियोजनाओं के लिए की जा रही हैैं। आपको पता होगा कि इसी इलाके में चीन अरबों डॉलर की सड़क परियोजनाएं चला रहा है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक परियोजना गलियारा इसी क्षेत्र में चल रही है। इस परियोजना के तहत बनने वाली सड़क चीन के शिनजियांग प्रांत को अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगी। इस परियोजना के तहत 3000 किलोमीटर लंबी सड़कें, रेलवे और तेल पाइप लाइन बिछाए जाने की संभावना है। इसके साथ ही चीन, तिब्तत में लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे अपने क्षेत्र में आधारभूत ढांचे का तेजी से विस्तार कर रहा है। हाल ही में उसने डोकलाम, अरुणाचल और लद्दाख से सटे इलाकों में तेजी से सड़कों का निर्माण किया है। उसके जवाब में भारत को भी अपने क्षेत्र में तैयारियां करनी पड़ी हैं। भारत भी इन इलाकों में 3400 किलो मीटर की रणनीतिक सीमा सड़कों के निर्माण की योजना पर काम कर रहा है। नेपाल, सिक्किम और भूटान आदि में भी इसी तरह की गतिविधियां चल रही हैं। हम कह सकते हैं कि इस हिमालयन क्षेत्र में किसी और क्षेत्र से ज्यादा सड़कों का निर्माण रणनीतिक तौर पर भी किया जा रहा है।
हिमालयन क्षेत्र को तीसरा धु्रव कहते हैं। उत्तरी अंटार्कटिका और दक्षिणी अंटार्कटिका के बाद विश्व की सबसे ज्यादा बर्फ इसी हिमालय क्षेत्र में है। यहां बड़े-बड़े ग्लेशियर हैं। जलवायु परिवर्तन और इस क्षेत्र में निर्माण कार्यों की वजह से धरती का तापमान बढ़ रहा है और उसकी वजह से ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे इस इलाके के लोग चिंतित भी हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से धरती का जो तापमान बढ़ रहा है उसका सबसे ज्यादा असर हिंदुकुश क्षेत्र पर देखा जा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय समूह द इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउन्टेन डेवलपमेंट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस क्षेत्र में करीब 15000 ग्लेशियर हैं जो प्रति दशक सौ से दो सौ की संख्या में तेजी से कम हो रहे हैं। इसकी वजह से ऊंची चोटियों पर हजारों की तादाद में झीलों का निर्माण हो रहा है। इनके फटने या पानी के बाहर आने से बाढ़ के रूप में भारी तबाही मच सकती है। नेपाल, भूटान और पाकिस्तान में ऐसी कई झीलें खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी हैं। इसमें भी नेपाल की स्थिति ज्यादा खतरनाक है। वहां गांव के गांव इन झीलों के फटने से तबाह हो सकते हैं।
कुछ साल पहले पाकिस्तान में प्रलयकारी बाढ़ आई थी जिससे भयंकर तबाही मची थी। सैकड़ों लोगों की जान गई, हजारों लापता हो गए और लाखों लोग बेघर हो गए। नेपाल में भी जबरदस्त भूकंप आया था जिसका दंश वहां के लोगों को सहना पड़ा था। भारत में भी हिमालयन क्षेत्र को इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं से गुजरना पड़ता है। उत्तरकाशी के भूकंप, केदारनाथ की त्रासदी और अब चमोली में ग्लेशियर फटने की घटना सामने आई है। ताजा घटना रैणी गांव में ग्लेशियर फटने की है। ग्लेशियर टूटने से नदियों में अचानक पानी बढ़ गया और यह पानी तमाम रुकावटों को तहस-नहस करता हुआ आगे बढ़ा। पानी के प्रवाह से ऋषि गंगा तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट का बांध टूट गया। दरअसल, यहां दो बिजली परियोजनाएं चल रही थीं। एक रैणी में जहां 2020 में बिजली बनाने का कार्य शुरू हो चुका था। यहां 13 मेगावाट बिजली बनाई जाती थी। दूसरा तपोवन में एनटीपीसी का एक हाइड्रो प्रोजेक्ट निर्माणाधीन था। इस हिमस्खलन के कारण रैणी बिजली परियोजना तो नष्ट हो ही गई, तपोवन में बन रही सुरंग में भी हजारों टन मलबा भर गया है। अब राहत दल उस मलबे को सुरंग से बाहर निकाल रहे हैं। मलबे के साथ लाशें भी निकल रही हैं। जो लोग वहां काम कर रहे थे और अचानक आए मलबे में फंस गए उनमें से उन लोगों के अब उसमें से बचने की बहुत कम उम्मीद है।
पहाड़ों में हिमस्खलन और भूस्खलन का कारण जलवायु परिवर्तन के साथ ही हिमालय क्षेत्रों में चलाई जा रही निर्माण की गतिविधियों को भी माना जा रहा है। बिजली उत्पादन के लिए इन इलाकों में बांध तो बनाए ही जा रहे है, सड़कों को निर्माण भी किया जा रहा है। इन परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर पहाड़ों में विस्फोट किया जाता है जिससे पूरा पहाड़ ही हिल जाता है। इस क्षेत्र में हिंदुओं के चार प्रमुख धर्म स्थल स्थित हैं। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री। इन चारों धामों तक पहुंचने के लिए पहले ही सड़कें बनाई जा चुकी हैं। बद्रीनाथ और गंगोत्री तक तो सीधे सड़क जाती है, जबकि केदारनाथ और यमुनोत्री के काफी पास तक सड़क बनाई जा चुकी है। इस क्षेत्र में धार्मिक आस्थावान लोगों के साथ ही पर्यटक भी खूब आते हैं। लेकिन ये रास्ते सिर्फ गर्मियों में छह महीने ही खुले रहते हैं। सर्दियों में बर्फ पड़ते ही ये रास्ते बंद हो जाते हैं।
भारत सरकार ने पर्यटकों की आमद सर्दियों में भी बनाए रखने के लिए पीछे इन सड़कों को चौड़ा करने की मुहिम शुरू की। उसका स्थानीय लोगों और ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी काफी विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट तक बात पहुंची। लेकिन एक बार जब सरकार तय कर लेती है तो किसी का वश कहां चलता है। इन सड़कों को चौड़ा करने का अभियान चल पड़ा। बड़े पैमाने पर पचास हजार से भी ज्यादा पेड़ काटे गए। उनका मलबा जब नीचे फेंका गया तो उससे भी बहुतेरे पेड़ नष्ट होंगे। इस तरह हम कह सकते हैं कि लाखों पेड़ नष्ट हुए। अभी इस प्रोजेक्ट पर काम चल ही रहा है। सड़कें बनाई ही जा रही हैं। इसी बीच चमोली में रैणी में हिमस्खलन हुआ है और तबाही मची है। यह कोई इत्तेफाक नहीं है कि हिमालय में भी ज्यादातर घटनाएं उसी इलाके में घटी हैं जहां निर्माण कार्य हुए हैं। चमोली, बद्रीनाथ के रास्ते में है तो उत्तरकाशी, गंगोत्री के रास्ते में। केदारनाथ में तो केदारनाथ हैं ही।
रैणी में हिमस्खलन के बाद अब सब कुछ सामान्य हो गया है। बस अपने पीछे वह तबाही छोड़ गया है। ऋषि गंगा एक छोटी नदी है जो दूसरी छोटी नदी धौली गंगा में जाकर मिल जाती है। धौली गंगा आगे चलकर इसी इलाके में चमोली जिले में ही गंगा की प्रमुख नदी अलकनंदा में मिल जाती है। ऋषि गंगा की धार बहुत पतली है। आप देखें तो कह नहीं सकते कि ये नदी इतना प्रलय मचा सकती है। पर इसने मचा दिया। इसकी प्रमुख वजह है हमारा बिना सोचे समझे विकास करना। इस घटना को तो खास तौर पर माना जाना चाहिए कि यह हमारे अविवेक पूर्ण विकास का नतीजा है। सड़क चौड़ीकरण के अलावा भी हम देखें तो पाएंगे कि यहां बिजली प्रोजेक्ट एक दूसरे से सटे हुए हैं। एक की सुरंग खत्म नहीं होती कि दूसरे की शूरू हो जाती है। विकास की यह कैसी मार है इसे आप इस क्षेत्र में प्रस्तावित, निर्माणाधीन और चल रही परियोजनाओं को देखकर समझ सकते हैं। इस क्षेत्रमें मलारी-जेलम, जेलम-तमक, मरकुड़ा-लाता, लाता-तपोवन, तपोवन-विष्णुगाड़, विष्णुगाड़-पीपलकोटी आदि योजनाएं हैं। इस हिमस्खलन से जिस परियोजना के सुरंग में मलबा भरा है वह तपोवन-विष्णुगाड परियोजना ही है। इस परियोजना का विरोध वहां के स्थानीय नेता अतुल सती 2003-2004 से ही लगातार करते रहे पर किसी ने नहीं सुनी।
इस घटना के बाद से स्थानीय लोगों में पहाड़ के इस तरह के विनाशकारी विकास को लेकर स्थानीय लोगों के मन में आक्रोश है। हालांकि, राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने घटनास्थल का दौरा कर लोगों से सीधा संपर्क बनाया और ट्वीट के जरिए भी अपील की कि लोग इस घटना को विकास से जोड़कर न देखें।