पक्ष, प्रतिपक्ष और किसान

Pros, cons and peasants

सरकार और किसानों को एक बार फिर बातचीत का सिलसिला शुरू करना चाहिए। संसद का बजट सत्र जारी है। बजट सत्र में एक बार फिर तीनों कृषि कानूनों पर व्यापक बहस और विचार विमर्श के बाद इनमें उचित बदलाव किये जा सकते हैं, जिससे किसानों को नुकसान की आशंका ना रहे…

धर्मपाल धनखड़

महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद में दिये अभिभाषण में 26 जनवरी को लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज के अपमान की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। साथ ही, उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को किसान के हित में बताया। राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार की ओर से बनाये गये तीनों कृषि कानूनों से दस करोड़ से ज्यादा छोटे किसानों को लाभ भी तुरंत मिलने लगा है। सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, किसानों से लागत से डेढ़ गुना ज्यादा एमएसपी पर अन्न की खरीद कर रही है और खरीद केंद्रों की संख्या में भी इजाफा किया जा रहा है। अभिभाषण के दौरान पंजाब से कांग्रेस के एक सांसद ने किसानों के समर्थन में नारे भी लगाये। कांग्रेस समेत समूचे प्रतिपक्ष ने किसानों की मांगों के समर्थन में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया। भारतीय लोकतंत्र की ये खूबसूरती है कि इसमें प्रतिपक्ष की भावनाओं को भी सम्मान दिया जाता है। स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा के मुताबिक, प्रतिपक्ष को राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार नहीं करना चाहिए था। किसानों की मांगों के समर्थन में किसी अन्य तरीके से विरोध दर्ज करवाना चाहिए था।विपक्षी दलों ने लाल किले पर 26 जनवरी को कुछ किसानों के राष्ट्रीय ध्वज के समानांतर एक धर्म का झंडा फहराये जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना को सरकार की साजिश करार दिया है। किसान दो महीने से तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने और एमएसपी कानून बनाने की मांग को लेकर राजधानी दिल्ली के विभिन्न बार्डरों पर गांधीवादी ढंग से शांतिपूर्ण धरना दे रहे थे। किसानों और सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत भी हुई। लेकिन दोनों पक्षों की हठ के चलते कोई सहमति नहीं बन पायी। गणतंत्र दिवस पर लाल किले की घटना के बाद किसान नेता शांति बनाये रखने के लिए आंदोलन का तरीका बदलने पर विचार कर रहे थे। दो किसान संगठनों ने खुद को आंदोलन से अलग करने की भी घोषणा कर दी थी। इससे आंदोलन को काफी धक्का पहुंचा था और किसान नेता धरना खत्म का बार्डर खाली करने को सहमत दिखे रहे थे।लाल किले की घटना से दु:खी और हतप्रभ किसान नेता कोई फैसला लेते, उससे पहले ही गाजीपुर बार्डर पर पुलिस प्रशासन किसान नेता राकेश टिकैत की गिरफ्तारी के लिए पहुंच गये। टिकैत धरना खत्म करके गिरफ्तारी देने को भी तैयार हो गये थे। इस बीच कुछ अराजक तत्वों ने पुलिस की मौजूदगी में किसानों के साथ मार पीट शुरू कर दी। आरोप है कि ये असामाजिक तत्व लोनी के भाजपा विधायक की अगुआई में आये थे। इस पर राकेश टिकैत की रूलाई फूट गयी और उन्होंने किसानों से जो भावुक अपील की उसके बाद ना केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बल्कि हरियाणा के गांव-गांव में खाप पंचायतें हुईं और रातों-रात लाखों की संख्या में लोग ट्रैक्टर-ट्रालियों से गाजीपुर बार्डर पर पहुंचने लगे। राकेश टिकैत के समर्थन में मुजफ्फरनगर में किसानों की विशाल पंचायत हुई। नरेश टिकैत ने पंचायत में आये लोगों का धन्यवाद किया और उन्हें शांति बनाये रखने की अपील के साथ घर लौटने को कहा। इसी बीच सिंघू बार्डर पर भी पुलिस की मौजूदगी में ही एक संगठन का बैनर लिए कुछ युवकों ने धरने पर बैठे किसानों पर पथराव किया और लाठियों से हमला कर दिया। पुलिस को भी अंतत: लाठीचार्ज करनी पड़ी। इसमें पुलिस के कुछ जवानों के साथ किसान भी घायल हुए। इस हमले की अगुआई का आरोप भी किसान नेताओं ने भाजपा से जुड़े एक नेता पर ही लगाया है। उधर, टीकरी बार्डर पर भी स्थानीय लोगों के नाम पर इकट्ठा हुए कुछ लोगों ने किसानों का धरना खत्म करवाने के लिए नारेबाजी की। बाद में उन्हें पुलिस प्रशासन ने समझा-बुझाकर कर वापस भेज दिया। धरने पर बैठे किसानों पर हमले की घटनाओं के बाद हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से उमड़े जनसमूह के साथ ही बार्डर के नजदीकी गांवों के लोग भी आंदोलनकारी किसानों के साथ बड़ी संख्या में जुड़े हैं। कांग्रेस समेत विपक्ष के तमाम नेता अब खुलकर किसानों को समर्थन देने पहुंच रहे हैं। हरियाणा से इनेलो के एकमात्र विधायक अभय सिंह चाौटाला ने कृषि कानूनों के विरोध में और आंदोलन के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है। दीपेंद्र हुड्डा, जयंत चाौधरी समेत कई बड़े नेता गाजीपुर बार्डर पर राकेश टिकैत से मिलने पहुंचे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और अब तक मौन रही बसपा सुप्रीमो मायावती तथा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी किसान आंदोलन को समर्थन देने की घोषणा की है। अब ये केवल किसानों का आंदोलन ना रहकर विपक्ष का भी आंदोलन बन गया है। तमाम जद्दोजहद के बाद एक बार फिर किसान आंदोलन मजबूती के साथ खड़ा हो गया है और किसान बिना अपनी मांगों को मनवाये वापस नहीं लौटने को संकल्पित हैं। दूसरी तरफ, बजट सत्र में दिये राष्ट्रपति के अभिभाषण से साफ जाहिर है कि सरकार भी कृषि कानूनों के मामले में पीछे कदम हटाने को तैयार नहीं है। ऐसे में यदि टकराव होता है तो ये ना तो देश, ना सरकार और ना किसानों के हित में होगा। बातचीत के जरिए हर समस्या का समाधान हो सकता है। सरकार और किसानों को एक बार फिर बातचीत का सिलसिला शुरू करना चाहिए। संसद का बजट सत्र जारी है। बजट सत्र में एक बार फिर तीनों कृषि कानूनों पर व्यापक बहस और विचार विमर्श के बाद इनमें उचित बदलाव किये जा सकते हैं, जिससे किसानों को नुकसान की आशंका ना रहे।

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