शिमला: हिमाचल प्रदेश के कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने बताया कि जनजातीय लाहौल स्पिति जिला की लाहौल घाटी में 15 अक्टूबर 2020 को हींग फसल के बीजारोपण की विधिवत शुरुआत की गई तथा हींग फसल का प्रारम्भिक व्यावासायिक उत्पादन अगले 4-5 साल में राज्य के मड़ग्राम, मोबीसेरी, कल्पा तथा पूह के ऊंचे हिमालियन क्षेत्रों में पांच हजार वर्ग मीटर में पायलट आधार हींग को पौधारोपण किया गया है जिससे राज्य में परम्परागत कृषि पद्धति में एक एतिहासिक परिवर्तन की शुरूआत हुई है। राज्य के लाहौल स्पिति, किन्नौर तथा मण्डी जिलों के ऊंचे हिमालयी बर्फीले क्षेत्रों में आगामी पांच सालों में 302 हैक्टेयर क्षेत्र में हींग की खेती कर के देश को हींग उत्पादन में आत्म निर्भर करने के प्रयास किए जाएंगे। इस समय पायलट परियोजना के अन्तर्गत कवर किए क्षेत्रों से सटे नए क्षेत्रों को हींग की खेती की आकलन लाया जाएगा जो कि भौगोलिक, वातावरण तथा तापमान की दृष्टि में खेती उगाने के लिए उपयुक्त हैं। इस पायलट परियोजना की पैदावार की उत्पति के वैज्ञानिक आकलन के लिए पालमपुर सी.एस.आई.आर तथा कृषि विभाग के वैज्ञानिक नजदीकी से आकलन कर रहे हैं। हींग की खेती के लिए न्यूनतम 5 से 10 डिग्री तापमान तथा ऊंचे बर्फीले हिमालयी क्षेत्र अनुकुल माने जाते हैं जहां वार्षिक औसतन 100-350 मिलिमीटर वर्षा दर्ज की जातीहै। इस खेती को सफलतापूर्वक कार्यन्वन के लिए सी.एस.आई.आर पालमपुर के वैज्ञानिक किसानों को तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण तथा अन्य मार्गदर्शन एवं सलाह उपलब्ध करवाएंगे। श्री कंवर ने बताया कि हींग की खेती के सफलतापूर्वक व्यवसायिक उत्पादन से हिमालयी क्षेत्रों में एक नई आर्थिक क्रान्ति का सुत्रपात होगा। हींग की खेती से जुड़े किसानों को बीज, पौधे प्रशिक्षण तथा ढांचागत सुविधाएं राज्य के कृषि विभाग द्वारा मुफ्त प्रदान की जाएगी तांकि किसानों को हींग की खेती के लिए प्रेरित किया जा सके। हींग का उपयोग देश की प्रत्येक गृहणी करती है तथा इसे स्वाद बढ़ाने तथा औषधीय रूप में भारतीय घरों में परम्परागत रूप में सदियों से किया जाता है लेकिन अभी तक इसका आयात अफगानिस्तान तथा ईरान से किया जाता रहा है तथा इसके व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन के प्रयास पहली बार किए जा रहे हैं।