- कक्षा में पढ़ाने के साथ ही ऑनलाइन क्लास का बोझ
देवकृष्ण थपलियाल
पौड़ी।कोविड-19 के संकट के धीमे होने के संकेत मिलने लगे हैं। इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों ने अपनी ठप पड़ी तमाम गतिविधियों को धीरे-धीरे सामान्य करना शुरू कर दिया है। सरकार का यह कदम लोगों के खोये आत्मविश्वास को जगाने का प्रयास भी है। इससे लोगों में पसरी उदासीनता और गतिहीनता को दूर करने में मदद मिलेगी। साथ ही, ठप पड़ी तमाम आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों को प्राण वायु मिलेगी। इस संबंध में सरकार को कुछ न कुछ निर्णय लेना ही था। सो, अब जो निर्णय लिए जा रहे हैं, उसमें जनता को पूर्ण भागीदारी निभानी चाहिए। तभी जाकर इस घातक महामारी से निजात मिलेगी। मास्क पहनना, दो गज की दूरी बनाये रखना और हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखना जनमानस की जिम्मेदारी है।
राज्य की सर्वाधिक चर्चित तथा आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चार धाम यात्रा के साथ मुख्य पर्यटन स्थलों को खोलने का क्रम जारी हो गया है। चार धाम यात्रा का सीजन अभी पीक पर है। छोटी-बड़ी दुकानों के खुलने और यातायात को बढ़ावा देने से राज्य में आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी। इससे त्योहारी सीजन में बाजारों में रौनक लौटेगी। केंद्र सरकार ने तमाम विरोध के बावजूद जेईई-नीट का देशव्यापी आयोजन सफलता पूर्ण सम्पन्न किया। इसमें 97 फीसदी उम्मीदवारों ने अपनी उपस्थिति दी थी। तमाम प्रकार की अफवाहों और गलत सूचनाओं के बाद भी राज्य के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में हजारों छात्र-छात्राओं ने अपनी अंतिम वर्ष की परीक्षा भी सफलता पूर्वक दी है। लगभग शत-प्रतिशत परीक्षार्थियों ने इस परीक्षा में अपनी भागीदारी निभाई।
किन्तु अब राज्य के सभी शैक्षणिक संस्थानों को खोलने को लेकर मनमाने निर्णय किये जा रहे हैं। कोरोना वायरस की घातक स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, किन्तु इससे डर कर बैठना भी उचित नहीं है। एक ओर शिक्षण संस्थानों में छात्रों की उपस्थिति स्वैच्छिक बनाया जा रहा है। दूसरी ओर, जो विद्यार्थी विद्यालय आने में असमर्थ हैं, उनके लिए ऑनलाइन कक्षा की व्यवस्था की बात की जा रही है। ऊपरी तौर से यह व्यवस्था शानदार प्रतीत हो रही है, परन्तु व्यवहारिक धरातल पर दोनों बेमानी साबित हो सकते हैं।
पहली बात ये कि ऑनलाइन शिक्षा के मोर्चे पर सरकार के लाख दावों के बावजूद छात्रों को उसका पूरा लाभ मिलने की बात संदेहास्पद है। पहाड़ी इलाकों में बिजली की आंख-मिचैनी से कौन वाकिफ नहीं है। नेटवर्क की समस्या के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। सामान्य तौर पर अपने सगे-संबंधियों की कुशलक्षेम जानने के लिए भी लोगों को घरों के बाहर खेत-खलिहानों में, यहां तक कि रात के समय भी दूर टीलों पर जाकर बात करनी पड़ती है। घर में दो से अधिक बच्चे हों तो मोबाइल को लेकर महाभारत होनी आम बात है। माता-पिता दोनों के पास अगर स्मार्टफोन हो तो काम चल सकता है। ऐसे में गरीब अभिभावकों के बच्चे तो इससे महरूम ही रहेंगे। शिक्षक भी आमतौर पर ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर लकीर पीटने का काम कर रहे हैं। किसी भी शिक्षक के काम का मूल्यांकन करना टेढ़ी खीर है। काफी शिक्षकों ने इस संबंध में केवल सरकार के आदेशों का श्पालनश् किया है। सप्ताह में एक दिन इंटरनेट से ‘पीडीएफ’ डाउनलोड कर उसे अपनी क्लास के बच्चों को भेजने मात्र से उनका काम निपट जाएगा?
छात्रों को स्वैच्छिक उपस्थिति की छूट के कारण शिक्षकों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा। इससे वे या तो अनमने भाव से पढ़ाएंगे अथवा टाल देंगे। शिक्षकों के लिए एक बार विद्यालय/संस्थान में कक्षा लेने के बाद घर में बैठे बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास लेना आसान नहीं होगा। इसे लेकर विरोध शिक्षक पहले ही जता चुके हैं। कामकाजी अभिभावकों के लिए बच्चों को ज्यादा समय तक अपना मोबाइल देना व्यवहारिक नहीं होगा। खासकर कोरोना काल में मां-बाप पहले बच्चों के लिए कमाने की पहले सोचेंगे या फिर उनकी पढ़ाई के बारे में सोचेंगे?
इसीलिए पंजाब, उत्तरप्रदेश और सिक्किम की तर्ज पर सभी शैक्षणिक संस्थानों को अविलम्ब खोला जाना चाहिए। सरकार और अभिभावकों को थोड़े धैर्य और समझदारी से इस चुनौती का मुकाबला करना चाहिए। यह स्पष्ट हो गया है कि परीक्षाओं और कक्षाओं का संचालन सावधानीपूर्वक किया जाना संभव है। कोरोना को लेकर लोगों में जागरूकता के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग की निगरानी बहुत जरूरी है। इसका सही समाधान सबके तालमेल से ही संभव है।