ना ये धर्म है और ना संसद!
सुशील उपाध्याय
धर्म संसद। जिसने भी यह शब्द गढ़ा होगा, उसकी भावना वैसी तो कतई नहीं रही होगी, जैसी हरिद्वार में हुई कथित धर्म संसद से ध्वनित हो रही है। इसमें दो शब्द हैं, धर्म और संसद। धर्म यानि धारण करने योग्य शुभ मार्ग और संसद यानि सभ्यजनों का ऐसा समूह जो सर्वहित में विमर्श के लिए एकत्र हुआ हो।…
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