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रावण

आह! रावण…

सुशील उपाध्याय एक बार फिर रावण जलाया जाएगा। हमारा मन नहीं भरता, बार बार जलाते हैं। रावण जलाते हैं, ताकि हम पर सवाल खड़े ना हो जाएं। रावण जलता है, मन खिन्न और उदास हो जाता है, विद्वता का ऐसा अंत ? या हमारे भीतर के अहंकार का अंत? रावण के साथ ज्ञान, हठ और श्रेष्ठता ग्रंथि की परंपरा का भी दहन हो…
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महात्मा रावण

सुशील उपाध्याय उनकी सुदीर्घ काया, सीने पर लहराती सफेद दाढ़ी, मोटे फ्रेम का चश्मा, लंबे डग भरते पांव और रौबीली आवाज सुनकर पहली निगाह में किसी भी छात्र को डर का अहसास होने लगता था। उनका नाम भी भारी भरकम था-भोपाल सिंह शर्मा पौलत्स्य! सिंह, शर्मा और पौलत्स्य, वे तीनों एक साथ थे। सुबह की प्रार्थना…
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