आह! रावण…
सुशील उपाध्याय
एक बार फिर रावण जलाया जाएगा।
हमारा मन नहीं भरता, बार बार जलाते हैं।
रावण जलाते हैं, ताकि हम पर सवाल खड़े ना हो जाएं।
रावण जलता है, मन खिन्न और उदास हो जाता है, विद्वता का ऐसा अंत ? या हमारे भीतर के अहंकार का अंत?
रावण के साथ ज्ञान, हठ और श्रेष्ठता ग्रंथि की परंपरा का भी दहन हो…
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