तुम कवि हो या कंडक्टर!
सुशील उपाध्याय ।
अक्सर कुछ ऐसा संयोग होता है कि मुझे दौड़ कर ही बस पकड़नी पड़ती है। हरिद्वार से देहरादून के लिए निकला तो बस में चढ़ने के बाद पहली निराशा इस बात को लेकर हुई कि कोई सीट खाली नहीं थी। हालांकि अब 1 घंटे में बस हरिद्वार से देहरादून पहुंच जाती है, लेकिन दिनभर यूनिवर्सिटी में काम करने…
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