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आलेख

पत्रकारों पर हमले व हत्या लोकतंत्र के लिए घातक

अंकित तिवारी पत्रकारों पर हमले व हत्या किसी भी देश में लोकतंत्र के लिए घातक है। दुनिया के कई देशों में इस तरह की वारदातें खतरनाक संकेत दे रही हैं। सभ्य लोकतांत्रिक समाज में इस बात को लेकर गहरी चिंता व्याप्त है। भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में दैनिक जागरण के…
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हिंदी-उर्दू विवाद : … कमबख्त ने ये बात भी उर्दू में कही है!

बादल सरोज पड़ना था ट्रम्प की बांह मरोड़कर टैरिफ कम करवाने की गुण्डई के पीछे ; मुद्दा बनना चाहिए था 144 साल में जैसी नहीं हुई शेयर मार्केट की वैसी गिरावट और छोटे और मंझोले निवेशकों के न जाने कितने लाख करोड़ डूब जाना ; चर्चा होनी चाहिए थी पाताल छूते रोजगार के अवसर और आकाश छूती महंगाई ; मगर भाई लोग…
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राजनैतिक व्यंग्य समागम

हे भागवत जी, कुछ ऐसी भागवत-कथा कहो कि आपका श्रोता सुनते-सुनते सो जाए! : विष्णु नागर खबर है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा की अगले महीने बंगलूरू में होने वाली बैठक में 'हिंदू जागरण' पर चर्चा होगी। यह अत्यंत शुभ विचार है, क्योंकि पिछले साढ़े दस साल से हिंदू को इतना जगाया गया है कि…
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बागेश्वर धाम सरकार में सरकार : साम्प्रदायिकता और कॉर्पोरेट का विधिवत पाणिग्रहण

कई बार वास्तविकता को उजागर करने के लिए उसे शब्दों में सूत्रबद्ध करना जरूरी नहीं होता, परिस्थितिजन्य साक्ष्य काफी होते हैं। कई बार कहे-सुने से ज्यादा, सही तरीके से देखी गई छवियां ही सब कुछ उजागर कर देती हैं। पिछले दिनों छतरपुर के प्रवचनकर्ता धीरेन्द्र शास्त्री के दो समारोहों में प्रधानमंत्री मोदी…
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2025 : चुनौतियों से आगे बढ़ने की जिद का अवसर

संध्या शैली संयुक्त राष्ट्र संघ का अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2025 का आह्वान महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबरी देने का है। लेकिन यह रास्ता कितना लंबा है, यह हाल की कई घटनायें दिखाती हैं। हमारा देश ही नहीं, आज पूरी दुनियां में जिस तरह से दक्षिणपंथी विचारधारा हावी है, उससे यही दिखता है कि जो मंज़िलें…
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दाल देख और दाल का पानी देख!

संजय पराते रोटी के साथ दाल मिलना भी अब नसीब की बात है। आज की ताजा खबर है कि बाजार में दाल का संकट आने वाला है, क्योंकि सरकारी दाल का भंडार खाली है। क्यों खाली है, इस पर टिप्पणी करेंगे ; लेकिन इसका मतलब यह है कि गरीबों को अब दाल-रोटी या दाल-भात खाने का सपना छोड़ देना होगा। हां, दाल की जगह नमक…
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राजद्रोह की धारा या सत्तापक्ष का हथियार

आलेख : राजेंद्र शर्मा इसे भाजपा की धुलाई मशीन का करिश्मा कहना, शायद इसमें निहित हमारी संवैधानिक व्यवस्था के क्षय को कम कर के आंकना होगा। इससे पता चलता है कि नरेंद्र मोदी के राज में राजद्रोह जैसे गंभीर और पटेल नेता के रूप में उभरे, हार्दिक पटेल और जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय की कन्हैया कुमार की…
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गोड़से को आने दो!

राजेंद्र शर्मा, व्यंग्य हम तो पहले ही कह रहे थे – गोडसे को आने दो। गांधी को जाने दो। आखिर, राष्ट्रपिता के नाम पर गांधी को कब तक ढोते रहेंगे। गांधी के चक्कर में देश गोडसे की महत्ता पहचान ही नहीं पा रहा है। इसी दोष को दूर करने के लिए तो मोदी जी शुरू से ही उपेक्षित, भुला दिए गए स्वतंत्रता…
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पढ़ने की संस्कृति : केरल का अनूठा लाइब्रेरी आंदोलन

 हरलीन कौर बीसवीं सदी में किसानों और मज़दूरों के नेतृत्व में ज़मींदारी प्रथा के ख़िलाफ़ अनेक लड़ाइयां लड़ी गईं। ज़मींदारों ने किसानों का उत्पीड़न कई तरीक़ों से किया था, जिनमें किसानों को पढ़ने से वंचित रखना भी शामिल था। इसलिए ज़मींदारों की सत्ता उखाड़ फेंकने के लिए केवल भूमि सुधार के उपाय करना…
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हादसों की आहुति से पूर्ण हुआ प्रचारलिप्सा का महाकुंभ

बादल सरोज जाने-न जाने के संशय से उबरकर आखिरकार पंतप्रधान भी पापमोचक माने जाने वाले कुंभ में डुबकी लगा ही आये। हालांकि अपने बाकी सगे कुटुम्बियों की तरह लुंगी गमछा स्नान करने की बजाय वे गंगा में सपरिधान उतरे, रेनकोट पहन कर नहाने के अपने ही जुमले को अपने पर ही लागू कर दिखाया। अलबत्ता गंगा जल से आचमन…
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