IIT गुवाहाटी की क्रांतिकारी खोज: मात्र 20 रुपये में 1000 लीटर साफ पानी, फ्लोराइड और आयरन से मुक्ति

सत्यनारायण मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार
गुवाहाटी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो भारत के ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में स्वच्छ पेयजल की समस्या को हमेशा के लिए हर कर सकती है! यह सामुदायिक जल शोधन प्रणाली भूजल से 89% फ्लोराइड और 94% आयरन हटाने में सक्षम है, वह भी सिर्फ 20 रुपये प्रति 1000 लीटर की लागत पर। यह प्रणाली प्रतिदिन 20,000 लीटर पानी को शुद्ध कर सकती है, जिससे लाखों लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध हो सकता है।

वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई

IIT गुवाहाटी के रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैत के नेतृत्व में पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च एसोसिएट्स डॉ. अन्वेषण, डॉ. पियाल मंडल और रिसर्च स्कॉलर मुकेश भारती की टीम ने इस अभूतपूर्व तकनीक को विकसित किया है। इस शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित ACS ES&T Water जर्नल में प्रकाशित हुए हैं, जो इसकी विश्वसनीयता को और मजबूत करते हैं।

क्यों जरूरी है यह तकनीक?

फ्लोराइड, जो दंत उत्पादों, कीटनाशकों, उर्वरकों और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग होता है, प्राकृतिक रूप से या मानवीय गतिविधियों के कारण भूजल में मिल सकता है। अधिक मात्रा में फ्लोराइड युक्त पानी पीने से स्केलेटल फ्लोरोसिस जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है, जिसमें हड्डियां सख्त हो जाती हैं और जोड़ों में जकड़न आती है, जिससे चलना-फिरना दर्दनाक हो जाता है। भारत में राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और गुजरात जैसे कई राज्यों में भूजल में फ्लोराइड की उच्च सांद्रता एक बड़ी समस्या है।

कैसे काम करती है यह प्रणाली?

IIT गुवाहाटी की यह प्रणाली चार चरणों में काम करती है, जो इसे लागत-प्रभावी और ऊर्जा-कुशल बनाती है:
एयरेशन (वातन): एक विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया एयरेटर पानी में ऑक्सीजन मिलाता है, जिससे घुले हुए आयरन को हटाने में मदद मिलती है।
इलेक्ट्रोकोएगुलेशन (विद्युत संयोजन): पानी एक इलेक्ट्रोकोएगुलेशन इकाई में जाता है, जहां एल्यूमीनियम इलेक्ट्रोड के माध्यम से हल्का विद्युत प्रवाह पारित किया जाता है। यह प्रक्रिया चार्ज्ड धातु कण (आयनों) को रिलीज करती है, जो प्रदूषकों को आकर्षित कर बांध लेती है।
फ्लोकुलेशन और सेटलिंग (जमाव और अवसादन): चार्ज्ड आयन प्रदूषकों के साथ मिलकर बड़े गुच्छे बनाते हैं, जो फ्लोकुलेशन चैंबर में गाढ़े होकर नीचे बैठ जाते हैं।
फिल्ट्रेशन (निस्पंदन): अंत में, पानी कोयला, रेत और बजरी की बहु-स्तरीय फिल्टर से गुजरता है, जो शेष अशुद्धियों को हटा देता है।

क्या कहते हैं प्रोफेसर पुरकैत?

प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैत ने इस तकनीक के बारे में बताया, “इलेक्ट्रोकोएगुलेशन प्रक्रिया में, एक विद्युत संभावन (पोटेंशियल) लागू करके एल्यूमीनियम या आयरन जैसे बलिदानी एनोड को घोल में कोएगुलेंट प्रजातियां उत्पन्न करने के लिए विघटित किया जाता है। साथ ही, कैथोड पर हाइड्रोजन गैस उत्पन्न होती है। ये कोएगुलेंट निलंबित ठोस पदार्थों को एकत्र करने और घुले हुए प्रदूषकों को सोखने या अवक्षेपित करने में मदद करते हैं। इलेक्ट्रोलिसिस के दौरान उत्पन्न हाइड्रोजन और ऑक्सीजन बुलबुले हवा के बुलबुलों के साथ मिलकर प्रदूषक कणों को सतह पर ले जाते हैं। एल्यूमीनियम इलेक्ट्रोड ने आयरन, आर्सेनिक और फ्लोराइड को हटाने में विशेष रूप से प्रभावी साबित हुआ है।”

वास्तविक परिस्थितियों में शानदार प्रदर्शन

शोध टीम ने इस प्रणाली का 12 सप्ताह तक वास्तविक परिस्थितियों में परीक्षण किया और लगातार उत्कृष्ट प्रदर्शन दर्ज किया। परिणामों से पता चला कि यह प्रणाली 94% आयरन और 89% फ्लोराइड को हटाने में सक्षम है, जिससे पानी भारतीय मानकों के अनुसार सुरक्षित पेयजल स्तर पर आ जाता है।

कम लागत, लंबी उम्र

इस प्रणाली की सबसे बड़ी खासियत इसकी लागत-प्रभावशीलता है। मात्र 20 रुपये में 1000 लीटर पानी शुद्ध किया जा सकता है, जो इसे ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों के लिए आदर्श बनाता है। यह तकनीक न्यूनतम देखरेख की आवश्यकता रखती है और इसकी अनुमानित आयु 15 वर्ष है, जिसमें हर छह महीने में इलेक्ट्रोड बदलने की जरूरत पड़ती है। शोध में इलेक्ट्रोड की आयु का अनुमान लगाने की एक विधि भी प्रस्तावित की गई है, जिसमें समय पर रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए एक अंतर्निहित सुरक्षा कारक शामिल है।

असम में पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत

असम के लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सहयोग से, इस तकनीक को काकती इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा चांगसारी, असम में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है। यह परियोजना स्थानीय समुदायों के लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

भविष्य की योजनाएं

प्रोफेसर पुरकैत ने इस शोध के भविष्य के दायरे के बारे में बताया, “हम इस इकाई को सौर या पवन ऊर्जा से संचालित करने और इलेक्ट्रोकोएगुलेशन प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न हाइड्रोजन गैस का उपयोग करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। रीयल-टाइम सेंसर और स्वचालित नियंत्रण जैसी स्मार्ट तकनीकों को एकीकृत करके हम इस प्रणाली को और प्रभावी बनाने की योजना बना रहे हैं, विशेष रूप से दूरदराज और वंचित क्षेत्रों के लिए।”
इसके अलावा, शोध टीम इस प्रणाली को अन्य जल शोधन विधियों के साथ जोड़कर इसके प्रदर्शन को और बेहतर करने की दिशा में काम कर रही है, ताकि यह एक विकेन्द्रीकृत जल शोधन समाधान बन सके।

IIT गुवाहाटी: नवाचार का गढ़

1994 में स्थापित IIT गुवाहाटी ने 2019 में अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे किए। वर्तमान में, संस्थान में 11 विभाग, नौ अंतर्विषयी शैक्षणिक केंद्र और पांच स्कूल हैं, जो इंजीनियरिंग, विज्ञान, स्वास्थ्य सेवा, प्रबंधन और मानविकी जैसे प्रमुख विषयों को कवर करते हैं। संस्थान में 455 संकाय सदस्य और 8,600 से अधिक छात्र हैं।
NIRF ‘इंडिया रैंकिंग्स 2024’ में IIT गुवाहाटी ने इंजीनियरिंग संस्थानों में 7वां, ‘समग्र’ श्रेणी में 9वां और ‘अनुसंधान’ श्रेणी में 10वां स्थान बरकरार रखा है। इसके अलावा, टाइम्स हायर एजुकेशन (THE) इम्पैक्ट रैंकिंग्स 2024 में SDG 9 (उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचा) में वैश्विक स्तर पर 87वां स्थान और QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स 2025 में ‘रिसर्च साइटेशन्स पर फैकल्टी’ श्रेणी में वैश्विक स्तर पर 32वां स्थान प्राप्त किया है।

जनता के लिए एक वरदान

यह तकनीक न केवल असम, बल्कि पूरे भारत के उन क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो सकती है, जहां भूजल में फ्लोराइड और आयरन की समस्या गंभीर है। यह कदम स्वच्छ पेयजल के अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण छलांग है।

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