न घर-घर सिंदूर, न हर-हर मोदी!

राजेंद्र शर्मा

इन विरोधियों को क्या कहें, बताइए खामखां में अच्छे-भले ‘‘घर-घर सिंदूर’’ प्रोग्राम में ही भांजी मार दी। घर-घर सिंदूर को लेकर ऐसी हाय-हाय मचायी, ऐसी हाय-हाय मचायी कि मोदी पार्टी को प्रोग्राम ही छोड़ना पड़ गया। प्रोग्राम छोड़ने तक बात रहती, तो फिर भी गनीमत थी। बेचारों को अपने ही प्रोग्राम को फेक न्यूज बताना पड़ा – ऐसा तो कोई प्रोग्राम कभी बनाना तो दूर, किसी ने सोचा तक नहीं था।

फेक न्यूज, जिसे बेचारों के अपनों ने ही फैलाया था। और अपने तो अपने ही होते हैं। फेक न्यूज फैलाने से पहले भी अपने थे और फेक न्यूज फैलाने के बाद भी अपने हैं। और क्यों न रहते अपने, उन्होंने फेक न्यूज फैलाने की गलती मान भी तो ली थी। दरअस्ल न्यूज भले फेक थी, पर उसके पीछे नीयत नेक थी। और बदनीयती की रीयल न्यूज से तो नेक नीयत वाली फेक भली। जैसे ऑपरेशन सिंदूर में कराची बंदरगाह की तबाही की न्यूज, पाकिस्तान के पांच से पच्चीस तक शहरों पर कब्जे की न्यूज, पाकिस्तान में फौज में तख्तापलट की न्यूज, वगैरह-वगैरह। हरेक न्यूज फेक थी, पर नीयत एकदम नेक थी — देशभक्ति से लबालब। सिर्फ खबर देने का मोह छोड़कर खबरिया चैनल, वास्तव में संस्कृति और संस्कृत में गोते खा रहे थे और पुरानी सीख पर चलते जा रहे थे — सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यं अप्रियम्। यानी सत्य बोलो तो वही जो सुनने वाले यानी श्रोता/दर्शक के मन भाए ; सुनने वाले के मन न भाए, ऐसा सत्य बोलो ही मत। यानी श्रोता/दर्शक के मन भाए, ऐसी फेक न्यूज देना, श्रोताओं के मन को न भाने वाली रीयल न्यूज देने से ज्यादा सवाब का काम था।

मोदी जी की पार्टी कहती है, तो घर-घर सिंदूर के प्रोग्राम की न्यूज फेक ही होगी, पर अकेले मोदी की रगों में गर्म सिंदूर दौड़ने की रीयल न्यूज से तो प्रीतिकर थी।

असल में मोदी जी ने तो अपनी ब्लड रिपोर्ट पेश कर दी कि उनकी नसों में अब खून की जगह गर्म सिंदूर दौड़ता है, पर विरोधियों ने उसमें भी फच्चड़ फंसा दिया। और कुछ नहीं मिला, तो कहने लगे कि यह तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा यानी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो गया। एक अकेला सब पर भारी तक तो फिर भी ठीक था, पर रगों में सिंदूर दौड़ने के मामले में तो मोदी जी शब्दश: अकेले हैं — एकोह्म द्वितीयोनास्ति यानी एक अकेला, दूसरा कोई नहीं। सुरक्षा के लिए खतरे की बात यह थी कि अगर खुदा न खास्ता कभी खून-वून चढ़ाने की जरूरत पड़ जाए, तो क्या होगा? ऐसा दूसरा कहां से लाएंगे, जिसकी रगों में भी सिंदूर दौड़ता हो!

वैसे ‘‘घर-घर सिंदूर’’ प्रोग्राम में इस सवाल का भी जवाब छुपा हुआ था। सोचने की बात है – आखिर, घर-घर सिंदूर प्रोग्राम में, हर घर में सिंदूर किसलिए पहुंचाया जाना था? क्या, घर-घर में औरतों को अपनी मांग भरने के लिए सिंदूर देने के लिए? हर्गिज नहीं। यह तो कोरी अफवाह थी, जो मोदी जी के विरोधियों ने फैलायी थी। यह विरोधियों की फैलायी फेक न्यूज थी। इसी के सहारे तो विरोधियों ने यह प्रचार करना शुरू कर दिया था कि यह सभी सधवाओं की मांग में मोदी जी के नाम का सिंदूर लगवाने का प्रोग्राम था। शोर मच गया कि जिस मांग में लगाना था, उसमें सिंदूर लगवाया नहीं गया, ये बाकी सभी महिलाओं की मांग में किस अधिकार से सिंदूर भरने चले हैं। इसे भारतीय संस्कृति विरोधी से लेकर न जाने क्या-क्या घोषित कर दिया गया। नतीजा यह कि मोदी जी की पार्टी को फेक न्यूज कहकर, घर-घर सिंदूर के प्रोग्राम से ही पीछा छुड़ाना पड़ गया।

लेकिन, वैसा कुछ नहीं था। मोदी जी की पार्टी तो घर-घर सिंदूर की डिबिया पहुंचाना चाहती थी, ताकि वक्त-जरूरत के लिए हर घर में, हमेशा सिंदूर रहे। इस सिंदूर का मांग में भरने वाले सिंदूर से कोई लेना-देना ही नहीं था। यह तो रगों में बहने-बहाने वाला सिंदूर था। आइडिया यह था कि सब, जी हां स्त्री-पुरुष सब, चुटकी-चुटकी सिंदूर गर्म कर के नसों में दौड़ाने की प्रैक्टिस करेंगे, ताकि और कुछ नहीं, तो ज्यादा से ज्यादा ऑपरेशन सिंदूर-2 आने तक, दो-चार करोड़ लोगों की नसों में तो सिंदूर दौड़ने लग ही जाए। यानी नसों में सिंदूर दौड़ने के मामले में मोदी जी का निर्विवाद नेतृत्व का नेतृत्व और एकदम अकेलापन भी नहीं। रगों में दौड़ने वाले सिंदूर की उपलब्धता से, राष्ट्र भी सुरक्षित। लेकिन, विरोधियों ने सब चौपट कर दिया। घर-घर सिंदूर योजना ही कैंसिल करा दी। रगों में दौड़ते सिंदूर के साथ, मोदी जी निपट अकेले और राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में।

पर मोदी जी के विरोधी देश में ही थोड़े ही हैं। मोदी जी का मामला विश्व स्तर का है, सो विरोधी भी विश्व भर हैं। देखा नहीं कैसे बेचारे का जी-7 का न्यौता आते-आते अटक ही गया था। और अब आखिरी वक्त पर, प्रोग्राम से सिर्फ एक हफ्ता पहले न्यौता आया भी है, तो सुना है कि कनाडा के प्रधानमंत्री, करनी को इसकी सफाइयां देनी पड़ रही हैं कि मोदी जी को न्यौता दिया, तो दिया क्यों? और अगला सफाइयां भी कैसी-कैसी दे रहा है। कह रहा है कि भारत पांचवां सबसे बड़ा बाजार है, सो न्यौतना तो बनता था। भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के केंद्र में है, न्यौतना तो बनता था, आदि, आदि। अगले को सिंपली यह कहना मंजूर ही नहीं हुआ कि विश्व गुरु जी हैं, न्यौतना तो बनता ही था।

लगता है कि विश्व गुरु की गद्दी तो आते-आते वैसे ही रह गयी है, जैसे सुरक्षा परिषद की सीट। उल्टे सारी दुनिया कह रही है कि पाकिस्तान के साथ झगड़े में, न पड़ौसी न दूर के नातेदार, हमारे साथ खड़ा होने वाला कोई नहीं है। न मोदी जी की झप्पियां-पप्पियां काम आयीं, न विदेश मंत्री जयशंकर की आंखों की लेजर लाइट। और तो और, बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों को करीब तीन दर्जन देशों में भेजा, उसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। ऐसा कोई मिलने ही नहीं आया, जिससे कोई फर्क पड़ता हो। और तो और, बंबइया फिल्मी गाने सुनने तक के लिए कोई नहीं आया, बेचारों को अपने गाने खुद ही गाने भी पड़े और सुनने भी पड़े।

नरेन्दर का सरेंडर 

विष्णु नागर

मोदी जी की लोगों ने ग़लत छवि बना रखी है कि वे बहुत बोलते हैं। आज बोलते हैं और कल उसे भूल जाते हैं या केवल बोलने के लिए बोलते रहते हैं।आज दो बार बोला और आज का काम खत्म! कल तीन बार बोला और कल का काम खत्म!

इस ओर बहुत ध्यान नहीं दिया गया कि नरेन्दर मोदी सैकड़ों बातों पर कुछ नहीं बोलकर भी बोलते हैं। और जो नहीं बोलते हैं, उसे कोई माई का लाल उनके मुंह से बुलवा नहीं सकता। अब जैसे कभी उनके परम मित्र रहे ट्रंप जी — जिनकी विजय के लिए भारत में खूब यज्ञ-हवन-पूजा-पाठ आदि हिंदुवादियों ने करवाया था — दस बार से अधिक कह चुके हैं कि अमेरिका से व्यापार का लालच दिखाकर मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाया है। विपक्ष बार- बार कह रहा है कि मोदी जी, ट्रंप जी ये बार- बार क्या बकवास कर रहे हैं।एक बार तो कह दो कि यह झूठ है, यह ग़लत है। एक बार तो कह दो कि यह मोदी को हटाने का षड़यंत्र है, कि ट्रंप, पाकिस्तान की भाषा बोल रहा है। मगर ट्रंप, ट्रंप है, राहुल गांधी तो हैं नहीं, इसलिए उनकी जबान बंद रहेगी! ट्रंप ये बात बीस क्या, पचास बार भी बोले, इनकी उपस्थिति में जी-7 सम्मेलन में भी बोले, तो मोदी जी कुछ नहीं बोलेंगे। बोदी अखबार और गोदी चैनल इसे उनकी’ दूरदर्शिता ‘ बताकर उनकी तारीफ़ में कसीदे पढ़ेंगे।

विपक्ष ने इनका नाम नरेन्दर मोदी से सरेंडर मोदी कर दिया है, फिर भी मोदी जी को इससे अंतर नहीं पड़ता। उनका मौनव्रत नहीं टूटता। उन्होंने सरेंडर को नरेन्दर साबित करने की कोशिश नहीं की! मोदी जी मानते हैं कि नाम में क्या रक्खा है। सरेंडर हो या नरेन्दर, है तो मोदी ही!

इसी तरह जब अमेरिका ने भारत के गैरकानूनी प्रवासियों को हथकड़ी-बेड़ी में वापस भेजा, मोदी जी की ट्रंप जी से मुलाकात की, उसके बाद भी भेजा, तब भी मोदी जी ने अपनी इस ‘दूरदर्शिता ‘ का चोला नहीं उतारा। सरेंडर करना ही पसंद किया। मनमोहन सिंह को मोदी जी – मौन मोहन सिंह कहा करते थे — वह इस कोटि के मौनी बाबा न थे। वह आज प्रधानमंत्री हुए होते, तो बोले बिना न रहते। उनका किसी अडानी से घरेलू और व्यापारिक रिश्ता नहीं था। उनके खून में व्यापार नहीं था। वह किसी ट्रंप की जीत का नारा अमेरिका में लगाकर नहीं आए थे!

मोदी जी भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जो ट्रंप कुछ भी कहे, कुछ भी करे, कितनी भी बेइज्जती करे, व्यापार समझौते के नाम पर भारत से कुछ भी लूट ले जाए, मौन ही रहेंगे। ट्रंप ने भारत से आयातित चीजों पर सौ प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की बात कही, तो मोदी जी मौनी रहे। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियन विकास बैंक और विश्व बैंक ने पाकिस्तान को अरबों डालर का ऋण दे दिया, चुप रहे। यूं तो कहते रहे कि पाकिस्तान इसका उपयोग आतंकवाद को बढ़ाने के लिए करेगा, मगर जब इस पर वोट करने की बारी आई तो हमारे प्रतिनिधि को चुप रहने के लिए कहा गया। सरेंडर होता रहा। भारतीय छात्रों का अमेरिका ने वीसा रद्द किया, तो भी सरेंडर जी मौन रहे।

ऐसी ‘दूरदर्शिता’ वह चीन के संदर्भ में भी दिखाते रहे हैं, आगे और भी दिखाएंगे। चीन ने भारत की हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है। इस बारे में तीन साल पहले उनका आखिरी बयान आया था कि न कोई घुसा है, न कोई घुसा बैठा है।चीन खुश हुआ कि अहा, यह तो भारत में हमारे बहुत काम का बंदा है। हमसे भी आगे जाकर यह हमारा बचाव‌ करनेवाला है। चीन ने इस बयान का जमकर लाभ उठाया। यह बयान‌ दुनिया को सुनाया, अपने लोगों को सुनाकर ताली बजवाई। थाली वहां होती नहीं और मोदी जी ने कभी थाली का महत्व चीन को बताया नहीं, तो उन्होंने थाली नहीं बजाई वरना वे थाली भी बजा सकते थे! चीन में ऐसी प्रथा नहीं है वरना चीन उन्हें भारत में अपना राजदूत नियुक्त कर देता! चीन ने देखा कि यह सरेंडरव्रती है, तो उसने पाकिस्तान को भारत से लड़ने के लिए आधुनिकतम लड़ाकू विमान दिए, मिसाइलें दीं और भारत के खिलाफ इनका इस्तेमाल करने की इजाजत दी, मगर मोदी का मौनव्रत नहीं टूटा!

छोटी आंखों वाले गणेश जी की मूर्ति के आयात पर वह बोले, मगर चीन का नाम लेने की चूक नहीं की। पुराने जमाने की हिंदू औरतें अपने पति का नाम नहीं लेती थीं, पर पड़ोसन के पति का नाम ले लेती थीं। खैर। इनके पड़ोस में पाकिस्तान है, उसके लिए कुछ भी वह उसका नाम लेकर बोल सकते हैं और बोले हैं और आगे भी बोलते रहेंगे। इस मामले में चुप रहना सनातन के हितों के विरुद्ध है।

नरेन्दर का सरेंडर देश के अंदर भी सुविख्यात है। दस साल पहले गोहत्या के नाम पर अखलाक की हत्या पर एक बार वह बोले थे। उसके बाद से उन्होंने जब भी बात मुसलमानों की आई, उन्होंने सरेंडर ही सरेंडर किया या उन्हें कपड़ों से पहचाना। उन्हें लगा कि इस तरह की घटनाओं पर बोलना सनातन के हितों के विरुद्ध जा सकता है। उनकी छवि इससे बिगड़ कर धर्मनिरपेक्ष बन सकती है, तो फिर वह न बोले। उन्हें मरने दिया, पीट-पीट कर अधमरा करने दिया और जब ऐसे अपराधी जेल से जमानत पर छूटे तो उनका स्वागत- सत्कार करने का भरपूर मौका भी दिया! जब नोटबंदी करके देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना था, तो अपनी ईमानदारी और नेक इरादों की डुगडुगी पीटने के लिए कालेधन के खिलाफ भी बोले, मगर फिर नहीं बोले! फिर काला ही सफेद हो गया। इतनी लिचिंग हुई, नहीं बोले। मस्जिदों के नीचे मंदिर ढूंढ़े जाते रहे, नहीं बोले। गुंडों ने हिंदुत्व की कमान ऊपर से नीचे तक संभाल ली, नहीं बोले। अपनी शांति भंग नहीं होने दी, अपनी गद्दी को असुरक्षित नहीं होने दिया। इनकी गद्दी के लिए ‘हिंदू खतरे’ में आ गए, ताकि ये खतरे में नहीं आएं! नरेदर अगर सरेंडर नहीं करता, तो गद्दी सरेंडर करनी पड़ती!

नरेंदर तुम सरेंडर करो, ट्रंप तुम्हारे साथ है।
नरेन्दर तुम सरेंडर करो, शी जिनपिंग तुम्हारे साथ है।

(इस व्यंग्य-समागम के लेखक राजेंद्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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