सत्यनारायण मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार
सिंधु जल समझौते के निलंबन और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत के कड़े जवाब से दबाव में आए पाकिस्तान ने अब बातचीत की पेशकश करके वैश्विक मंच पर अपनी छवि को बचाने की कोशिश शुरू कर दी है। लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के अलावा किसी अन्य मुद्दे पर चर्चा नहीं होगी। क्या यह पाकिस्तान की कूटनीतिक चाल है या शांति की ओर बढ़ा कदम? आइए, इस जटिल भू-राजनीतिक ड्रामे के परदे के पीछे की कहानी को समझें।
पाकिस्तान की बैकफुट रणनीति: वैश्विक मंच पर छवि सुधार की कोशिश
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने 26 मई 2025 को तेहरान में ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत के साथ “सभी लंबित मुद्दों” पर बातचीत की इच्छा जताई। इसमें सिंधु जल समझौता, कश्मीर, व्यापार और आतंकवाद जैसे मुद्दे शामिल थे। यह बयान तब आया है जब पाकिस्तान पानी की गंभीर कमी, आर्थिक संकट और भारत के साथ हाल के सैन्य संघर्षों में मिली हार के बाद दबाव में है।
पाकिस्तानी विश्लेषकों के अनुसार, शहबाज सरकार की यह पेशकश एक “डैमेज कंट्रोल” रणनीति का हिस्सा है। भारत द्वारा 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में सिंधु जल समझौता स्थगित करने और 7 मई से 10 मई 2025 तक चले चार दिवसीय सैन्य संघर्ष में ऑपरेशन सिंदूर के तहत 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के बाद पाकिस्तान की स्थिति कमजोर हुई है। इस्लामाबाद अब वैश्विक समुदाय, खासकर अमेरिका, सऊदी अरब और ईरान जैसे सहयोगियों के सामने खुद को “शांति समर्थक” के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है।
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि इस्लामाबाद ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में भारत के “आक्रामक रुख” की शिकायत दर्ज की है। साथ ही, पाकिस्तान ने मध्यस्थता के लिए ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों से संपर्क साधा है। 17 मई 2025 को ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड लैमी और अमेरिकी विदेश विभाग के बयानों से संकेत मिलता है कि पश्चिमी देश दोनों पक्षों के बीच तनाव कम करने के लिए “विश्वास-निर्माण उपायों” की वकालत कर रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान की यह रणनीति भारत के सख्त रुख के सामने कमजोर पड़ती दिख रही है।
भारत का अडिग रुख:
आतंकवाद और पीओके पर कोई समझौता नहीं
भारत ने पाकिस्तान की बातचीत की पेशकश को सशर्त स्वीकार करने का संकेत दिया है, लेकिन उसकी शर्तें साफ हैं: बातचीत केवल आतंकवाद और पीओके पर होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मई 2025 को राजस्थान में एक रैली में पाकिस्तान को चेतावनी दी थी, “अगर पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देता रहेगा, तो उसे पानी की हर बूंद और हर पैसे के लिए भीख मांगनी पड़ेगी।” यह बयान भारत की रणनीति को स्पष्ट करता है, जिसमें आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस और पीओके को भारत का अभिन्न हिस्सा मानने की नीति शामिल है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 23 मई 2025 को डेनमार्क में एक साक्षात्कार में कहा, “पाकिस्तान को पहले आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई करनी होगी। ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेनाओं ने 22 मिनट में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया। यह भारत की ताकत और संकल्प का प्रतीक है।” भारत ने किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को सिरे से खारिज कर दिया है, इसे “द्विपक्षीय मामला” करार देते हुए।
भारत ने व्यापारिक और कूटनीतिक स्तर पर भी पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया है। सभी व्यापार मार्गों पर प्रतिबंध और आयातों की कड़ी जांच ने पाकिस्तान की पहले से चरमराई अर्थव्यवस्था को और कमजोर किया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 20 मई 2025 को अपनी रिपोर्ट में भारत-पाक तनाव को पाकिस्तान के लिए “आर्थिक जोखिम” बताया, जिससे इस्लामाबाद की मुश्किलें और बढ़ गई हैं।
शक्ति संतुलन का खेल
पाकिस्तान की बातचीत की पेशकश को वैश्विक शक्तियों के संदर्भ में भी देखा जा रहा है। चीन, जो पाकिस्तान का प्रमुख सहयोगी रहा है, ने हाल के तनाव में तटस्थ रुख अपनाया है। 18 मई 2025 को बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय ने दोनों पक्षों से “संयम और संवाद” की अपील की, लेकिन भारत के साथ अपने बढ़ते व्यापारिक हितों को देखते हुए कोई ठोस पक्ष नहीं लिया। रूस ने भी दोनों देशों के बीच शांति की वकालत की है, लेकिन भारत के साथ अपने रक्षा और ऊर्जा समझौतों को प्राथमिकता दी है।
पाकिस्तान की कोशिश है कि वह वैश्विक मंच पर भारत को “अड़ियल” और खुद को “शांति चाहने वाला” दिखाए। लेकिन भारत के सैन्य और कूटनीतिक दबदबे ने इस रणनीति को कमजोर किया है। ऑपरेशन सिंदूर और सिंधु जल समझौते के निलंबन ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य और आर्थिक स्थिति को कमजोर किया, बल्कि भारत को क्षेत्रीय शक्ति के रूप में और मजबूत किया है।
शांति की राह या कूटनीतिक चाल?
पाकिस्तान की बातचीत की पेशकश को कई विश्लेषक एक कूटनीतिक चाल मान रहे हैं, जिसका मकसद आर्थिक और जल संकट से उबरने के लिए समय हासिल करना और वैश्विक समुदाय में अपनी छवि सुधारना है। लेकिन भारत का सख्त रुख और आतंकवाद के खिलाफ उसकी जीरो टॉलरेंस नीति ने इस्लामाबाद को बैकफुट पर ला दिया है।
विश्लेषकों का मानना है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों पर ठोस कार्रवाई नहीं करता और पीओके पर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं करता, तब तक सार्थक संवाद की संभावना कम है। भारत की रणनीति क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने के साथ-साथ अपनी संप्रभुता और सुरक्षा को प्राथमिकता देती है। दूसरी ओर, पाकिस्तान की वैश्विक मंच पर कथित “शांति की पेशकश” केवल समय हासिल करने और आर्थिक संकट से बचने की कोशिश प्रतीत होती है।
आने वाले दिन यह तय करेंगे कि क्या यह पेशकश दक्षिण एशिया में शांति की नई शुरुआत करेगी या यह एक और कूटनीतिक नौटंकी साबित होगी। लेकिन एक बात साफ है: भारत का अडिग रुख और क्षेत्रीय प्रभाव इस भू-राजनीतिक खेल में उसे मजबूत स्थिति में रखता है।