विरान हुआ ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’

-आतंकी दे गए गहरा घाव…
-सैलानियों का भरोसा टूटा तो स्थानीय लोगों के सामने गहराया रोजी-रोटी का संकट
 ममता सिंह

कश्मीर के पहलगाम की हृदय विदारक घटना निशब्द कर गई…मन व्यथित है…बार-बार उस नव दंपत्ति की बोलती तस्वीर…आंखों के सामने घूम रही है जिसमें पति के शव के बगल में बेसुध सी बैठी युवती दिख रही है…ओह, कितना दर्दनाक दृश्य…ऐसे ही वहां विदेशी पर्यटकों सहित दो दर्जन से ज्यादा लोगों को अपनों ने खोया है…और दुनियाभर के सैलानियों को लुभाने वाली पहलगाम घाटी भी अवश्य बेगुनाह मासूम लोगों की चीखों से सिहर उठी होगी।

निःसंदेह, जिस तरह की विभत्स घटना हुई, उसे सुरक्षा एजेंसियों की बड़ी चूक ही माना जाएगा। लेकिन, इस बार कुछ अलग हुआ….इस बार का आतंकी हमला केवल जान-माल की क्षति भर नहीं, बल्कि कश्मीर की आत्मा ‘कश्मीरियत‘ पर सीधा हमला है और पटरी पर आ रही अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की साजिश है!

ऐसे में अब देखने वाली बात यह होगी कि भारत सरकार, राज्य सरकार और सुरक्षा से जुड़ी तमाम एजेंसियां उक्त मामले में किस तरह की रणनीतियां अपनाती हैं। क्योंकि उक्त घटना सभी के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है, तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने विदेश दौरे को रद कर लौट आए हैं। वैसे जिस तरह से वहां की जनता उक्त घटना के बाद सड़कों पर है, वो बताता है कि वहां के लोग अमन और शांति चाहते हैं।

एक सवाल तो यह भी है कि यह भी कैसे संभव हुआ होगा कि बिना किसी जमीनी स्तर पर गठजोड़ के हथियारबंद आतंकी वहां पहुंच गए और ताबड़तोड़ हमले कर फरार हो गए? हालांकि, उक्त एंगल से भी जांच अवश्य हो रही होगी। लेकिन इतना तो तय है कि हमलावरों का मकसद सिर्फ आतंक मचाना था, लेकिन इस बार उनके डायलॉग अलग थे या शायद सोची समझी रणनीति के तहत उन्होंने कहीं हों?

सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि राज्य की कुल जीडीपी में कश्मीर के पर्यटन की हिस्सेदारी 7 से 8 फीसद तक है। यहां पर्यटन उद्योग से सालाना 12 हजार करोड़ रुपये तक का कारोबार होता है। और सिर्फ कश्मीर में पर्यटन से करीब तीन लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हैं। ऐसे में उक्त आतंकी हमले ने न सिर्फ सैलानियों के भरोसे को तोड़ा है, बल्कि घाटी की आर्थिक रीढ़ कहे जाने वाले पर्यटन उद्योग को भी गहरे संकट में डाल दिया है।

बहरहाल, हम सभी उम्मीद करते हैं कि जल्द हालात सामान्य हो, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं दिखता… अब समय आ गया है कि सभी धर्म-संप्रदाय के लोग आपसी वैमनस्य भुलाकर एक स्वर में आतंकवाद के विरूद्ध अपनी एकता प्रदर्शित करें.. क्योंकि आतंकवाद का कोई धर्म कोई मजहब नहीं होता।

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