अल्पसंख्यकों के हित में नहीं है नया वक्फ कानून

हन्नान मोल्ला

वक्फ अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है धार्मिक कार्यों और धर्मार्थ के लिए संपत्ति का दान किया जाना। जब हजरत मोहम्मद के अनुयायियों ने उन्हें एक संपत्ति दान में दी, तो उन्होंने इसे अल्लाह के नाम पर दान देने के लिए वक्फ बनाने का आदेश दिया। इस संपत्ति से अर्जित धन का उपयोग गरीब मुस्लिमों, विधवाओं, छात्रों, मस्जिदों, मदरसों व अनाथालयों के निर्माण पर किया गया। इस प्रकार, विभिन्न देशों में लाखों-लाख वक्फ संपत्तियों जुटाई जा सकी। एक बार वक्फ हो जाने पर वह संपत्ति अल्लाह की संपत्ति हो जाती है, न तो इसे लौटाया जा सकता है, न दान दिया जा सकता है और न ही बेचा जा सकता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अल्पसंख्यक विरोधी संगठन है, जो तमाम तरीकों से अल्पसंख्यकों पर कुठाराघात करने में जुटा हुआ है। एक व्यक्ति ने व्हाट्सएप पर पोस्ट किया कि कैथोलिक चर्च के पास करोड़ों एकड़ जमीन है। जब ईसाई समाज ने इसके खिलाफ आवाज उठाई, तो इस पोस्ट को डिलीट कर दिया गया। लेकिन एक बात पक्की है कि आने वाले दिनों में अल्पसंख्यकों की संपत्तियां निशाने पर रहेंगी। देश भर में फैलाया गया कि वक्फ के पास रेलवे के बाद देश में सर्वाधिक संपत्तियां हैं। बताया जा रहा है कि देश में सबसे ज्यादा जमीन रेलवे और रक्षा विभाग के पास है। इसके बाद वक्फ बोर्ड का नंबर आता है, जिसके पास 9.4 लाख एकड़ जमीन होने का दावा किया जा रहा है। चौथा नंबर कैथोलिक चर्च ऑफ इंडिया का है, जिसके पास दो से तीन लाख एकड़ जमीन है।

*वक्फ के पास है 9.4 लाख एकड़ जमीन*

वक्फ एसेट मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के अनुसार, दिसम्बर 2022 तक वक्फ बोर्ड के पास लगभग 8.72 लाख अचल संपत्तियां दर्ज थी। वक्फ के पास कुल जमीन 9.4 लाख एकड़ से अधिक होने का अनुमान है। यह आंकड़ा बढ़ता रहा है, क्योंकि 2009 में यह लगभग 4 लाख एकड़ था। वक्फ की संपत्तियों में मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान, अन्य धार्मिक और सामुदायिक उपयोग की जमीनें शामिल हैं। वक्फ का मतलब ही दान है, यानी वक्फ बोर्ड के पास जो चल और अचल संपत्ति है, वे दान की हैं। मुस्लिम बादशाहों के समय जमींदारों, दरबारियों और नवाबों ने तमाम संपत्तियां वक्फ को दान में दे दी थी। ब्रिटिश शासन में 1914 में वक्फ एक्ट पारित होने के बाद ये संपत्तियां इसलिए भी दान में दी गई थी, ताकि इन पर टैक्स कम लगे और इन्हें जब्त होने से भी बचाया जा सके। लेकिन आजादी के बाद 1954 और 1995 में भारत सरकार ने जो वक्फ कानून बनाए, उसमें वक्फ को बहुत कुछ करने की आजादी गई। जिस भी संपत्ति को वक्फ अपनी बताता था, वह उसकी हो जाती थी। इस तरह वक्फ की संपत्तियां बढ़ती गई।

कॉर्पोरेट और भू-माफिया देश भर में संपत्तियों, खास तौर से वक्फ की संपत्तियों, पर नजर गड़ाए हुए हैं। मुंबई में अंबानी ने गैर-कानूनी रूप से वक्फ की नौ संपत्तियां खरीदी हैं। अमीरों और कॉरपोरेटों को ज्यादा से ज्यादा इस प्रकार की संपत्तियां खरीदने में आसानी रहे, इसी बात को ध्यान में रखते हुए नया वक्फ कानून बनाया गया है। मोदी सरकार के आने के बाद से अल्पसंख्यकों की तकलीफ बढ़नी शुरू हुई है। तमाम उत्पीड़न के साथ ही उनके धर्म स्थलों और वक्फ की संपत्ति को खुर्द-बुर्द करने की कोशिश जारी है। उनके खानपान को लेकर सवाल उठाए गए, उनके लिबास को लेकर सवाल उठाए गए। सीएए लाने की कवायद को भी ऐसे ही देखा जाना चाहिए। सरकार की हर कोशिश है कि देश में धर्म और संप्रदाय के आधार पर ध्रुवीकरण हो जाएं। वक्फ की संपत्तियों को लेकर जो नया कानून बना है, उसका विरोध समूचे देश में देखने को मिल रहा है, मुस्लिम समुदाय तो इसका विरोधी है ही।

*बाई यूजर प्रावधान किया खत्म*

मुस्लिमों के खिलाफ लगातार एक नैरेटिव सेट करने का काम किया जा रहा है। जैसे : एक देश लेने के बाद के बाद भी भारत में कितनी प्रॉपर्टी पर मुस्लिम वक्फ के नाम पर काबिज है। यह पूरी तरह सही नहीं है। नए कानून में वक्फ बाई यूजर का प्रावधान खत्म कर दिया गया है। इससे आने वाले समय में विपरीत असर धर्म विशेष पर हो सकता है। अभी तक क्या होता था, ट्रस्ट जिस धर्म का हो, उसी धर्म के लोग उसे सम्हालते हैं। तो सिर्फ वक्फ बोर्ड में गैर-इस्लामी लोगों को शामिल करने के पीछे की आखिर मंशा क्या है?

लोकतांत्रिक देश में वक्फ बोर्ड का चुनाव भी बड़े लोकतांत्रिक तरीके से होता था। उसमें एमपी, एमएलए, हाईकोर्ट के दो वकील, वक्फ बोर्ड के निर्वाचित दो प्रतिनिधि, एक सामाजिक कार्यकर्ता और संयुक्त सचिव स्तर का एक सरकारी अफसर होते थे — लेकिन ये सभी मुस्लिम होते थे और यही लोग फिर वक्फ बोर्ड का चेयरमैन चुनते थे। लेकिन नए कानून में सभी का मुस्लिम होना जरूरी नहीं है। मुस्लिम होने की शर्त खत्म कर दी गई है, तभी तो लगता है कि नए कानून में अब निर्वाचित वक्फ बोर्ड को नॉमिनेटेड बोर्ड में बदलने का मकसद है। बहरहाल, कानून को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया गया है। सभी को भरोसा है कि इंसाफ होगा और लोकतांत्रिक देश में किसी भी धर्म के साथ कानून सम्मत ही सुलूक होगा। सरकार को जो काम करने चाहिए, वह तो नहीं करती है, लेकिन जिन कामों में सरकार की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए, वह काम यह सरकार जोर-शोर से करती है। वक्फ मजहबी मामला है, उसमें सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उसे कैसे मैनेज किया जाएं, यह मजहबी लोगों पर छोड़ देना चाहिए।

‘राष्ट्रीय सहारा’ से साभार। लेखक अखिल भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से कई बार सांसद रह चुके हैं। संपर्क : 98681-80859)

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