महाकुंभ नगर। महाकुंभ मेले में बांसुरी विक्रेताओं के चेहरे पर खास चमक देखने को मिल रही है। देश के कोने—कोने से आए बांसुरी विक्रेता अपनी कला और उत्पाद के साथ मेले की रौनक बढ़ा रहे हैं।
महाकुंभ मेला में बड़े हनुमान जी मंदिर के पास एक धुन, हजारों आने जाने वालों को अपनी ओर खींच रहा है। धुन ऐसा कि बिना कुछ देर ठिठके कोई आगे बढ़े ही नहीं। बांसुरी की धुन से सबका ध्यान खींचने वाला यह व्यक्ति कोई पेशेवर संगीतकार नहीं बल्कि एक बांसुरीवाला है जो मेले में कुछ कमाई करने तो आया ही है साथ ही उसकी चाहत है कि बांसुरी बेचने का पारंपरिक पेशा आगे बढ़ता रहे। गिटार, स्मार्टफोन के युग में बच्चों के हाथ में भारतीय संस्कृति से जुड़ी बांसुरी भी रहे।
बिहार के छपरा से आये मियां ज़ान खान का परिवार कई पीढ़ियों से बांसुरी बनाने और बेचने का काम करता है। ज़ान खान भी बांसुरियों के बीच ही पले-बढ़े। वह बताते हैं कि- ‘हाईटेक हो चुकी दुनिया में बांसुरियों की बिक्री अब कम हो गई है। पहले बच्चे बांसुरी खरीदते थे तो धंधा चलता था लेकिन अब यह काम बहुत सीमित हो चुका है।’
वह बताते हैं कि, ‘अब खास त्योहारों-पर्वो पर लगने वाले मेलों में ही बांसुरियों को बेचने का काम किया जाता है। बाकी दिनों में छोटा मोटा काम या मजदूरी करता हूं।’
छपरा से बांसुरी बेचने आये रमेश कहते हैं- बाप-दादाओं ने बांसुरी बेची है। परिवार के लोगों की आजीविका चली है। आज भी परिवार में कई लोग बांसुरी बेचते हैं। इसलिए उसे भी अच्छा लगता है। उन्होंने बताया कि, ‘तीन महीना से खाली था, कोई और काम करने से बेहतर था कि बाप-दादाओं के काम को ही आगे बढ़ाया जाए।’ रोज कितनी कमाई हो जाती है इस पर रमेश ने बताया कि पांच सौ से लेकर एक हजार तक वह रोज कमाई कर लेता है लेकिन किसी किसी दिन तीन-चार सौ रुपये की भी बांसुरी नहीं बिकती।’
ज़ान खान के अनुसार, ‘जिस दिन अधिक भीड़ होती है उस दिन कमाई अच्छी हो जाती है। कभी कभार ज्यादा भीड़ होने पर उसके जैसे फेरीवालों को मेला क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है, इससे भी कमाई मारी जाती है।’ उन्होंने बताया कि, ‘मेले में बांसुरी की बिक्री हो रही है, इक्का-दुक्का ग्राहक की मुरली और बंसी खरीदता है।’
बाराबंकी के रामनगर से आये बांसुरी विक्रेता जियालाल ने बताया कि, ‘10 रुपये से लेकर 50 रुपये तक की बांसुरी है।’ वे बताते हैं, ‘मुख्य स्नान के दिन बिक्री बढ़ जाती है, आम दिनों में तो पेट भरने का जुगाड़ ही हो पाता है।’ बांसुरी के अलावा पंछी (बांस का वाद्य यंत्र जिसे बजाने से कोयल की आवाज निकलती है) मेले में बिक रहा है। पंछी की कीमत 20 रुपये है।
बांसुरी, मुरली और बंसी आपस में भाई बहनआमतौर पर हम सब ये जानते हैं कि बांसुरी केवल एक ही प्रकार की होती है, कुछ लोगों के अनुसार बांसुरी श्रीकृष्ण का प्रिय वाद्य यंत्र है. लेकिन, हकीकत में ऐसा नहीं है बांसुरी जैसे ही वाद्य यंत्र उसके दो भाई बहन भी है. जिन्हें बंसी और मुरली नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार श्री कृष्ण को मुरली ही प्रिय थी और वे मुरली का ही वादन करते थे। लेकिन हम से बहुत ही कम लोग इन तीनों के बीच का अंतर जानते होंगे।
बांसुरी में होते हैं 6 सुरलंबे अरसे से संगीत वा बांसुरी कारोबार से जुड़े लखनऊ के अल्लन साहेब एण्ड सन्स के संचालक फराज अंसारीने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत के दौरान बताया कि, ‘वैसे तो तीनों वाद्य एक ही विधा से जुड़े हुए हैं लेकिन बावजूद इन तीनों में कुछ मामूली अंतर हैं। बांसुरी, मुरली व बंसी, तीनों एक ही परिवार के भाई-बहन हैं। अगर बांसुरी की बात करें तो अमूमन इसे इस्तेमाल करने वालों में विधा के छात्र व बच्चे आदि शामिल हैं। वहीं बांसुरी के ऊपरी हिस्से में अरहर, सेमल आदि की लकड़ी की डाट लगी होती है, जिसे उसके ऊपरी सिरे से बजाया जाता है इसमे 6 सुराख (सुर) होते हैं।’
बंसी और मुरली में अंतरअंसारी आगे बताते हैं, ‘वहीं अगर बंसी की बात करें तो इसमें भी 6 सुराख होते हैं. लेकिन इसका वादन शौकिया, पेशेवर व घराना परंपरा के लोग करते हैं। वहीं अगर बात श्रीकृष्ण की प्रिय मुरली की करें तो यह अपने आप में विशेष होती है और इसमें 7 सुर होते हैं. वैसे तो इसका भी वादन किया जाता है लेकिन क्योंकि मुरली का वादन कर श्रीकृष्ण समूची सृष्टि को मोहित करते थे ऐसे में इसका इस्तेमाल पूजा पाठ के कार्यों में किया जाता है। शुरुआती दौर में तो केवल बांस से ही बांसुरी बनाई जाती थी लेकिन आज के आधुनिक युग में तमाम धातुओं का इस्तेमाल भी बांसुरी बनाने में किया जाता है।’