उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए हुए आंदोलन में इंद्रमणि बडोनी की भूमिका अद्वितीय रही है
आदरणीय इंद्रमणि बडोनी जी के आज 99 वां जन्मोत्सव है
शीशपाल गुसाईं
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए हुए आंदोलन में इंद्रमणि बडोनी की भूमिका अद्वितीय रही है। उन्हें “उत्तराखंड का गांधी” के नाम से जाना जाता है, जो उनकी महान तपस्या और त्याग को दर्शाता है। 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में जन्मे इंद्रमणि बड़ोनी का जीवन सरलता में बसा हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन अभाव में गुजरा, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और विद्या के बल पर देहरादून से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1953 में, जब वह अपने गांव में सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों में संलग्न थे, उन्हें महात्मा गांधी की शिष्या मीराबेन से मिलने का मौका मिला। इस मुलाकात ने उनके जीवन को बदल दिया। बडोनी ने गांधी की शिक्षाओं, विशेषकर सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया। जल्द ही, उन्होंने न केवल अपने क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल की, बल्कि पूरे राज्य में उनके विचारों और नेतृत्व के लिए लोगों का समर्थन भी प्राप्त हुआ।
बडोनी ने उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाया, जिसमें उन्होंने 19 अक्टूबर 1992 को बागेश्वर में आयोजित प्रसिद्ध उत्तरायणी कौतिक में गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने की मांग की। उनकी विषय वस्तु और मनोबल को लोगों ने अनुग्रहित किया, जिससे बड़ोनी की ख्याति और बढ़ी। हालांकि, आज तक गैरसैंण स्थायी राजधानी नहीं बन सका, किन्तु उनके प्रयासों ने उत्तराखंड राज्य आन्दोलन की नींव को सुदृढ़ बनाया। इंद्रमणि बडोनी का जीवन हमें यह सिखाता है कि परिवर्तन की दिशा में किया गया कठिन संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता। उनका कार्य हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है और आज भी उनका नाम राज्य आंदोलन में प्रेरणादायक शक्ति के रूप में लिया जाता है। बड़ोनी की तपस्या और साहस ने उत्तराखंड को एक नई पहचान दी है, और उनकी विचारधारा आगे भी युवाओं को प्रेरित करती रहेगी। बडोनी जी का दृष्टिकोण उत्तराखंड को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित करने का था, जिसका उन्होंने 1979 में उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के गठन के साथ ठोस आधार तैयार किया। उनके द्वारा किए गए प्रयासों ने न केवल उत्तराखंड की राजनीतिक दिशा को प्रभावित किया, बल्कि राज्य के विकास के लिए भी एक दृष्टि प्रस्तुत की।
इंद्रमणि बडोनी का राजनीतिक सफर बहुत ही प्रेरणादायक था। मशहूर नेता बनने से पहले, उन्होंने 1961 में अपने गांव अखोड़ी के प्रधान के रूप में सेवा शुरू की। बाद में, उन्होंने जखोली खंड के प्रमुख का पद भी संभाला। बडोनी ने देवप्रयाग विधानसभा सीट से पहली बार 1967 में विधायक के रूप में चुने जाने के बाद तीन बार इस पद पर चुनाव जीतकर अपने कृतित्व को सिद्ध किया। उनकी नेतृत्व क्षमता और संघर्ष का परिचय तब मिलता है जब उन्होंने उक्रांद के माध्यम से राज्य को अलग करने के लिए 105 दिन की पद यात्रा की, जो कि एक अभूतपूर्व कदम था। इंद्रमणि बडोनी का सपना केवल एक अलग राज्य की स्थापना तक सीमित नहीं था, बल्कि वह उत्तराखंड को एक समृद्ध एवं विकसित राज्य बनाना चाहते थे। उनका ध्यान शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन और रोजगार पर था। वह समझते थे कि एक राज्य के विकास के लिए इन क्षेत्रों में सुधार आवश्यक है। उनकी सोच और दृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए आज की युवा पीढ़ी ने भी जिम्मेदारी उठाई है।
हालांकि इंद्रमणि बडोनी का जीवन 18 अगस्त, 1999 को समाप्त हो गया, लेकिन उनके द्वारा दिए गए विजन और संघर्ष की गूंज आज भी सुनाई देती है। उनका सपना उत्तराखंड को एक ऐसे राज्य के रूप में स्थापित करना था, जो विकास और समृद्धि के रास्ते पर अग्रसर हो। आज का उत्तराखंड उस दिशा में कितना आगे बढ़ा है, यह विचारणीय है। इसलिए, बडोनी की भव्य सोच को संजोते हुए, हमें उनकी विरासत को आगे बढ़ाना होगा और उनके संकल्प को साकार करने की दिशा में प्रयासरत रहना होगा।