श्रद्धांजलि : दो टूक में खरी खरी सुनाने वाले दिनेश जुयाल से जुड़ी मेरी खट्टी मीठी यादे!

डॉ. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
दैनिक हिंदुस्तान में एक छोटा सा कॉलम “दो टूक” प्रतिदिन छपता था,जिसमे सामाजिक विसंगतियों व नेताओं की मनमानी को लेकर तल्ख टिप्पणी चंद शब्दो मे छपती थी,यह दो टूक कोई ओर नही बल्कि दैनिक हिंदुस्तान के तत्कालीन स्थानीय संपादक दिनेश जुयाल लिखते थे,जिन्होंने अमर उजाला व दैनिक हिंदुस्तान में अपना पत्रकारिता का कैरियर बनाया और संपादक के रूप में खूब ख्याति अर्जित की।पत्रकारिता के अभी तक के 35 वर्षों में 10 वर्ष मेरे जीवन के हिंदुस्तान टाइम्स समूह के नाम रहे।ग्रामीण जनता,दैनिक विश्व मानव,दैनिक जागरण और पंजाब केसरी के बाद जब दैनिक हिंदुस्तान में मैंने अपने समय की मशहूर कथाकार शिवानी की बेटी मृणाण पांडे के सानीदय में रुड़की से काम करना शुरू किया तो लगा कि वाकई पत्रकारिता एक मिशन है,प्रतिदिन चंद चुनिंदा खबरें ही भेजनी होती थी और रुतबा उन पत्रकारों से कही ज्यादा होता था,जो पूरे दिन कलम घिसते रहते थे।इसी बीच एक दिन दिनेश जुयाल जी रुड़की में मेरे पास आए और बोले कि दैनिक हिंदुस्तान जल्दी ही देहरादून से अपना संस्करण शुरू कर रहा है,जिसके स्थानीय संपादक का दायित्व उन्हें सौंपा गया है,वे चाहते थे कि हरिद्वार जिले के महत्व पूर्ण नगर रुड़की और आसपास के कस्बों के लिए मैं उनके लिए टीम तैयार करूं।सच बताऊं एक बार तो मुझे यह सुनकर अच्छा नही लगा कि हिंदुस्तान जैसा बड़ा अखबार देहरादून संस्करण निकालने जा रहा है,इससे वह राष्ट्रीय स्वरूप छोड़कर क्षेत्रीय पत्रकारिता में कदम रख रहा था।खैर ,निर्णय हो चुका था,इसलिए मैंने उनके लिए टीम तैयार करने की हामी भर दी।जुयाल चाहते थे कि मैं उनके अखबार में स्टाफ़र हो जाऊं, इसके लिए उन्होंने उस समय के हिसाब से भारी भरकम वेतन का ऑफर भी दिया,मुझे थोड़ा लालच भी आया परन्तु मैं वकालत की कीमत पर पत्रकारिता नही करना चाहता था,इसलिए उनका यह ऑफर ठुकरा दिया लेकिन उन्हें विश्वास दिलाया कि आनरेरी बेस पर ही मैं उनसे जुड़ा रहूंगा।अखबार शुरू करने से पांच छ महीने पहले शुरू हुई संवाददाता नियुक्त करने की प्रक्रिया में दिनेश जुयाल जी ने मुझे खुली छूट दी,मैं जिसे चाहे जितने भी मानदेय या वेतन पर रखूं ,बस टीम बढ़िया हो।मैंने रुड़की में दूसरे अखबारों में काम कर रहे पत्रकारों में से सीमा श्रीवास्तव, दीपक मिश्रा,सुभाष सक्सेना ,अनिल गोयल को रुड़की के लिए ,मनोज शर्मा को मंगलौर, विनय चौधरी को नारसन के लिए चयनित करने के साथ ही झबरेड़ा, लक्सर आदि जगहों पर संवाददाता रखे और उन सबको दोगुने मानदेय या फिर वेतन का ऑफर दिया।एक दिन भारी बारिश में इन सबको को हरिद्वार के एक होटल में ले जाकर इनके इंटरव्यू कराए ,इंटरव्यू से पहले तक इनमें से किसी को भी एक दूसरे के चयन की जानकारी नही थी।इस तरह हमारी एक अच्छी टीम तैयार हुई और हमने प्रतिस्पर्धा के उस दौर में रुड़की में साढ़े चार हजार प्रतियों से नए सफ़र की शुरुआत की।उस दौरान लगभग प्रतिदिन ही दिनेश जी से बातचीत होती और हम उनकी प्रेरणा से हर रोज़ कुछ नया परोस पाते।तभी तो मात्र डेढ़ वर्ष में हमारी प्रसार संख्या दस हजार के पार हो गई।इससे दिनेश जुयाल बहुत खुश हुए ,साथ मिलकर चलने का यह सफ़र आगे बढ़ ही रहा था कि हरिद्वार से सन 2009 में सांसद बने हरीश रावत केंद्र में मंत्री भी बन गए और उन्होंने मुझे अपना प्रवक्ता बना दिया,यह जानकारी जैसे ही दिनेश जुयाल जी को मिली तो उनका फोन आया,नारसन जी ,पता चला है आप मंत्री जी के प्रवक्ता हो गए है!देखिए आपको राजनीति व पत्रकारिता में से किसी एक को चुनना होगा,यह सुनकर मैं हतप्रभ हो गया और मैंने उनसे कहा कि राजनीति में आज से नही, छात्र जीवन से कर रहा हूं।हमारे अखबार की चेयरपर्सन शोभना भरतिया जी जो उस समय राज्य सभा मे थी,का हवाला देकर मैंने अपना बचाव करने की कोशिश की,लेकिन जुयाल जी कुछ सुनने को तैयार नही हुए तो मैंने फोन पर ही उन्हें अखबार छोड़ने का फरमान सुना दिया,वे चाहते थे कि मैं अखबार के बजाए प्रवक्ता का दायित्व छोड़ू,लेकिन मैं हरीश रावत जी के भरोसे को नही तोड़ सकता था ,इसलिए अखबार छोड़ दिया।इस डेढ़ साल में दिनेश जुयाल जी से मुझे बड़े भाई जैसा प्यार मिला,मेरे अंशकालिक संवाददाता होते हुए भी वे मुझे स्टाफ़र से अधिक सम्मान देते थे।मेरे अखबार छोड़ने के 27 दिन बाद उनकी भी संस्थान से विदाई हो गई और इस तरह हम जो कभी एक थे अलग अलग राहों की तरफ चल पड़े।इसके बाद लंबे समय तक दिनेश जुयाल जी से कोई सम्पर्क नही रहा।अचानक अखबार छोड़ने के लगभग तीन साल बाद एक दिन उनका फोन आया,बोले ,”बड़ी मुश्किल से तुम्हारा नम्बर मिल पाया है,आपके लेख पढता रहता हूं, अच्छा लगता है।मैं देहरादून में आईएसबीटी के पास रह रहा हूं, कभी घर आओ।”मैंने जी भाई साहब कहकर फ़ोन रख दिया।लेकिन उंनसे मिलने नही जा सका।अब खबर आई उनके चले जाने की तो अफ़सोस हुआ,कैंसर ने उनकी जान ले ली ,काश,एक बार मुलाकात हो गई होती।कुछ भी हो ,दिनेश जुयाल एक अच्छे पत्रकार, एक अच्छे संपादक, एक अच्छे इंसान थे।उनका जाना हमेशा खलता रहेगा।उन्हें शत शत नमन।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार)
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
पोस्ट बॉक्स 81,रुड़की, उत्तराखंड
मो0 9997809955

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